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वास्तुशास्त्र
वायव्य
उत्तर
ईशान
दिशा यंत्र
पश्चिम
पूर्व (EAST) - शुभ पश्चिम (WEST) - अशुभ दक्षिण (SOUTH) - अशुभ उत्तर (NORTH) - शुभ
नैऋत्य
दक्षिण
अग्नि
* रसोई घर : रसोई घर हमेशा अग्निकोण में हो। रसोई घर का मुँह पूर्व की ओर हो तो घर में बीमारियाँ नहीं आती। रसोई घर की खिड़की पूर्व एवं दक्षिण में हो। घर में चावल, अनाज, खाने-पीने का सामान वायव्य दिशा या उत्तर दिशा में रखें। गैस, स्टोव, बिजली का सामान अग्निकोण में रखें।
* शयन कक्ष : पलंग के सामने दर्पण नहीं होना चाहिए। ड्रेसिंग टेबल खिड़की के सामने नहीं होना चाहिए। दरवाज़े की तरफ पाँव करके नहीं सोना चाहिए। यदि शयन कक्ष में तिजोरी या अलमारी हो तो उसका दरवाज़ा दक्षिण की ओर नहीं खुलना चाहिए। चोरी होने का भय रहता है। दरवाज़ा हमेशा उत्तर या पूर्व की ओर खुलना चाहिए। घर के मुखिया का शयन कक्ष नैऋत्य में होना चाहिए।
* सीढ़ियाँ-सीढ़ियाँ हमेशा नैऋत्य कोण में बनायें जो दक्षिण से पश्चिम की ओर लाये, या पश्चिम या उत्तर में भी हो सकती है। सीढ़ियों की संख्या विषम (ऑड) होनी चाहिए। जैसे 5, 7, 9
आदि। सीढ़ियों के बीच में 9 इंच का अंतर होना चाहिए। सीढ़ियों के नीचे शयनकक्ष या पूजागृह कभी नहीं बनाना चाहिए। सीढ़ियों के नीचे गोदाम बना सकते है।
* टॉयलेट - रसोई और टॉयलेट आमने-सामने नहीं होना चाहिए। टॉयलेट और स्नानगृह दोनों साथ में नहीं होना चाहिए। यह दक्षिण या पश्चिम में होना चाहिए। टॉयलेट कभी भी ईशान या पूर्व में न बनाये। स्नान करते समय मुँह हमेशा पूर्व की तरफ हो। दक्षिण या पश्चिम की तरफ मुँह करके नहाने से अनेक बीमारियों से पीड़ित होना पड़ता है।
* ईशान कोण बहुत पवित्र माना जाता है। कचरा कभी भी ईशान में न रखें। मुख्य द्वार से सभी द्वार छोटे होने चाहिए। प्रवेश द्वार पर ॐ, स्वस्तिक, अष्टमंगल, तोरण, मांगलिक वचन, मांडवे, रंगोली हमेशा शुभ रहती है। इससे बुरी आत्माएँ, बुरी नज़र घर में प्रवेश नहीं करती है।