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प्र.: प्रभु के चार निक्षेप समझाओ ?
उ.: नाम निक्षेप
स्थापना
द्रव्य
भाव
इन चार निक्षेपों से की गई पूजा एवं स्तवना महाफल को देती है।
प्र.: प्रतिमाजी के कितने प्रकार है और कौन-कौन से है ?
प्रभु का नाम ।
: प्रभु की मूर्ति ।
: प्रभु के पूर्वभव एवं सिद्ध होने के बाद की अवस्था । : समवसरण में बिराजमान तीर्थंकर प्रभु ।
उ.: प्रतिमाजी के 2 प्रकार है। (1) अरिहंत अवस्था वाले जो आठ प्रातिहार्यों से युक्त होते है यानि परिकर सहित की प्रतिमा। (2) सिद्ध अवस्था वाले - जो मात्र प्रतिमा हो किन्तु परिकर न हो ।
प्र.: चैत्यवंदन करते समय जिन भगवान का चैत्यवंदन कर रहे हैं, उन्हीं भगवान का चैत्यवंदन स्तवन, स्तुति बोलना या दूसरे भी बोले जा सकते है ?
• उ.: मूलनायक आदि जिन भगवान को उद्देश्य में रखकर चैत्यवंदन कर रहे हैं, यदि उन भगवान का चैत्यवंदन आदि मुँह पर आता है तो वह ही बोलें। यदि उन भगवान का नहीं आता हो तो पुस्तक से देखकर बोलने के बजाय दूसरे अन्य किसी भी भगवान का बोल सकते हैं क्योंकि ज्ञानादि गुणों से सभी जिनेश्वर परमात्मा एक जैसे ही हैं।
प्र.: मंदिर में पूजा दर्शन करने जाते समय पैर में जूते या स्लीपर पहन सकते हैं ?
उ.: मंदिर में पूजा-दर्शन करने जाते समय खुले पैर ( जूते या स्लीपर पहने बिना) ही जाना चाहिए। यह भी तीर्थंकर परमात्मा का विनय है । इन्द्र महाराजा भी जब प्रभु का च्यवन अपने अवधिज्ञान से जानते है तब अपने सिंहासन से उठकर अपने पैर की मोजड़ी उतारकर सात-आठ कदम आगे आकर शक्रस्तव ( नमुत्थुणं) द्वारा परमात्मा की स्तुति करते हैं । अतः मंदिर जाते समय जूते या स्लीपर पहनने योग्य नहीं हैं। प्र.: एक बार मंदिर में चढ़ाई गई बादाम, चावल आदि मंदिर में चढ़ा सकते है ? उ.: एक बार मंदिर में चढ़ाई गई बादाम, चावल आदि खरीदकर पुन: मंदिर में नहीं चढ़ा सकते।
प्र.: पूजा करने वाले ही तिलक कर सकते हैं या सभी कर सकते हैं ? तथा तिलक क्यों करना चाहिए?
उ.: प्रत्येक व्यक्ति को तिलक करना जरुरी है। जिनेश्वर प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य करने के प्रतीक रूप में तिलक किया जाता है। अपनी दो भौएँ के बीच में आज्ञा चक्र है, उस पर तिलक करने से आज्ञा चक्र
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