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________________ दूर करी ते दीजिए,अणाहारी शिवसंत॥" "ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा।" अर्थ : हे प्रभो! एक भव से दूसरे भव में जाते समय अनंती बार अणाहारी पद प्राप्त किया है, लेकिन अब जन्म-मरण के दुःखों से मुक्त कर शाश्वत अणाहारी पद दीजिए। प्र.: नैवेद्य पूजाक्यों करते हैं? उ.: आहार संज्ञा एवं रस लालसा को तोड़ने के लिए प्रभु के सामने मिठाई से भरा आहार का थाल धरकर नैवेद्य पूजा करते हैं। फल पूजा करने की विधि * उत्तम तथा ऋतु के अनुसार श्रेष्ठ फल चढ़ाएँ। * श्रीफल को फल के रूप में चढ़ाया जा सकता है। * . सड़े, गले; उतरे हुए फल, बोर, जामुन , जामफल(पेरु), सीताफल जैसे तुच्छ फल चढ़ाने लायक नहीं हैं। * फलों को सिद्धशीला पर ही चढ़ाएँ। फल पूजाकादोहा:- “इंद्रादिक पूजाभणी, फल लावेधरी राग। पुरुषोत्तम पूजीकरी, माँगे शिवफल त्याग॥" .. "ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा।" अर्थ : प्रभु पर भक्ति राग से, इन्द्रादि देव प्रभु की फल पूजा करने हेतु अनेक प्रकार के उत्तम फल लाते हैं और पुरुषोत्तम प्रभु की उन फलों द्वारा श्रद्धा से पूजा करके, उनसे मोक्ष की प्राप्ति रूप फल मिल सके, ऐसी त्याग धर्म की, चारित्र धर्म की माँग करते हैं अर्थात् मोक्षफल रूपी दान माँगते हैं। यहाँ द्रव्य पूजा पूर्ण हुई । अब भाव पूजा की शुरुआत प्रमार्जना त्रिक से होती हैं। तीसरी निसीहि एवं प्रमार्जना त्रिक * तीसरी निसीहि बोलकर पुरुष खेस तथा स्त्रियाँ साड़ी के पल्लू से तीन बार भूमि की प्रमार्जना कर खमासमणा दें।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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