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श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा । * मेरु शिखरे नवरावे, ओ सुरपति मेरुशिखरे नवरावे, .
जन्मकाल जिनवरजी को जाणी, पंच रूपे हरि आवे, ओ सुरपति मेरुशिखरे नवरावे । “ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर, श्री जिन ने नवरावतां, कर्म थाये चक-चूर ।।"
अंग चूछणे की विधि * मलमल के कपड़े के उचित प्रमाण वाले तीन अंगलूछणें रखें। * हर महीने मंदिर में अंगलूछणे बदलने की व्यवस्था करें। * मौन धारण कर अंगलूछणा करें एवं प्रतिदिन अंगलूछणे को साफ करें। * देवी-देवताओं के उपयोग में लिए गये अंगलूछणों का उपयोग प्रभुजी के लिये न करें। * पाट पोछने तथा अंग पोछने के लिये अलग-अलग कपड़े रखें एवं अलग-अलग धोकर अलग अलग सुकाए।
प्रभु को विलेपन करने की विधि * बरास जैसे उत्तम द्रव्यों से विलेपन करें। * दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों का उपयोग करते हुए विलेपन करें। नवाँगी पूजा के अनुसार विलेपन करें। * प्रभुजी को नाखून का स्पर्श न हो इसका ध्यान रखें। * प्रभुजी के मुख के अलावा अन्य स्थानों जैसे हृदय, छाती, पैर, हाथ आदि पर विलेपन करें। चंदन पूजा कादोहा- “शीतल गुण जेहमा रह्यो,शीतल प्रभु मुख रंग,
. . आत्मशीतल करवाभणी, पूजो अरिहाअंगा" “ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय
___ श्रीमते जिनेन्द्राय चंदनं यजामहे स्वाहा' अर्थ - हे प्रभु! अनादिकाल से मेरी आत्मा इन कषायों के धधकते संताप की अग्नि में जल रही है, अत: आपकी इस चंदन पूजा के प्रभाव से मेरे कषाय उपशांत हो।
प्रभु की केसर पूजा करने की विधि * पूजा करने की अंगुली (अनामिका) के सिवाय कोई भी अंग प्रभुजी को स्पर्श न हो, इसका विशेष ध्यान रखें।