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________________ । प्रभु के च्यवन कल्याणक की एक झलक हाथी देवलोक के भव का आयुष्य पूर्ण कर माता की कुक्षि में प्रभु का पधारना च्यवन कहलाता है। प्रभु के पधारने से माता को श्री तीर्थंकर नामकर्म के प्रभाव से चौदह महास्वप्नों के स्पष्ट दिव्य दर्शन होते है। स्वप्न पाठकों उसका फल इस प्रकार बताते है- “हे माता आपकी रत्नकुक्षि से - - गंधहस्ती के जैसे गुणों रूपी सुगंध के धारक वृषभ पृथ्वी का पालन करने में समर्थ सिंह विषय कषाय रूपी दुर्गुणों को जीतने में पुरुषसिंह समान लक्ष्मी केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी के धारक : फूलों की दो माला - देशविरति एवं सर्वविरति धर्म के प्ररुपक चन्द्र चन्द्र के समान शीतलता फैलाने वाले सूर्य सूर्य के समान केवलज्ञान से जगत को प्रकाशित करने वाले ध्वज विश्वमंगल की विजय पताका लहराने वाले कलश कामकुंभ के समान सर्व जीवों के मनोवांछित पूरक पद्मसरोवर पद्मसरोवर के जैसे ज्ञानानंद सरोवर में केवल कमला रूप रत्नाकर समुद्र के जैसे केवलज्ञानादि अनंतगुण रूप रत्नों के धारक देव विमान समवसरण रूप उत्तम विमान में बिराजने वाले रत्नों की राशि अनंतानंत गुण रूप रत्नों की राशि निधूम अग्नि शिखा - कर्मरूपी इंधन को ध्यान रूपी अग्नि से जलाकर सिद्धशीला में अखंड ज्योत रूप अवस्थित रहने वाले ऐसे तीर्थंकर रूप पुत्र रत्न का जन्म होगा।" परमात्मा की माता को अन्य माता के जैसी वेदना या अशुभ परिणती नहीं होती है। परमात्मा की माता को जिनबिंब को जिनबिंब भरवाने के.पौषधशाला एवं उपाश्रय बंधवाने के.पंचकल्याणक की उजवणी द्वारा प्रभु की प्रीति-भक्ति करने के दोहद उत्पन्न होते हैं। परमात्मा के प्रभाव से माता की आत्म चेतना विश्वमंगल के भाव से विभषित बन जाती है। प्रभ की माता सर्व जीवों के द:ख दारिद्र. दर्भाग्य दर करने के लिए सर्व इच्छित वस्तुओं का दान देती है। इस प्रकार परमात्मा की माता अत्यन्त हर्ष एवं अहोभाव से गर्भकाल व्यतीत करती है। P पद्मनंदी
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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