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________________ वर्ना यह सब असम्भव था। मेरा पत्र पढ़कर तुम कोई गलत कार्य मत करना। वर्ना बाद में मेरी तरह पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। यहाँ के दुःखों से मुक्त बनकर मुझे भी शीघ्र ही परमात्मा की शरण मिले, ऐसी आप मेरे लिए प्रार्थना करना। अरे बाप रे, परमाधामी आ रहे हैं। बस यही समाप्त करता हूँ।" - तुम्हारा ही एक अभागा भाई इस प्रकार नरक में वेदना का कोई पार नहीं और कोई सहानुभूति बताने वाला भी नहीं। यहाँ तो मात्र परमाधामी कृत वेदना की एक झलक बताई है। बाकि वहाँ की अपार वेदना का वर्णन न तो कोई कर सकता है और न ही कोई सुन सकता है। कहानी - दो भाई थे। दोनों भाईयों के बीच अतिशय प्रेम था। बड़ा भाई सुंदर आराधना कर देवलोक में गया। छोटा भाई मौज-शौक से 18 पापस्थानक का सेवन कर नरक में गया। देवलोक में गए हुए भाई ने अवधिज्ञान से अपने भाई को नरक में अत्यंत वेदना को सहन करते हुए देखा। यह देख उसे दया आ गई। उसका भ्रातृ प्रेम उसे नरक में खींच ले गया। नरक में जाकर देव ने उसे अपना परिचय दिया। छोटे भाई ने नरक की वेदना से छुटकारा पाने के लिए अपने भाई से देवलोक में साथ ले जाने की विनंती की। देव ने अत्यंत प्रेम से उसे हाथ में उठाया। हाथ में उठाते ही उसका शरीर पारे की तरह गिरने लगा। बहुत कोशिश करने पर भी देव उसे नरक की वेदना से उबार न सका। अंत में निरुपाय बन देव रोते-बिलखते भाई को नरक में ही छोड़कर चला गया। NRO नव तत्त्व जीव को संसार से पार उतरने में नवतत्त्व का ज्ञान अति आवश्यक एवं उपयोगी है । नवतत्त्वों के नाम एवं व्याख्या 1.जीव- जो चेतनामय एवं ज्ञानादि गुणों वाला है। कर्मों का कर्ता एवं भोक्ता है। विभाव अवस्था में राग-द्वेष आदि करता है वह जीव है। विविध अवस्थाओं की अपेक्षा से जीव के 14 भेद हैं। 2.अजीव- जगत में छ: द्रव्य हैं। उसमें से एक जीवद्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य अजीव है। वे इस प्रकार है - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल। धर्मास्तिकाय - गति करने में सहायक है। अधर्मास्तिकाय - स्थिति में सहायक है। आकाशास्तिकाय - अवगाहना देता है। पुद्गलास्तिकाय - जो भी दिखाई देता है वह प्राय: पुद्गल द्रव्य ही है। वर्ण, गंध, रस, स्पर्श इसके लक्षण है। 083)
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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