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मेरा शरीर बाहर नहीं आ सकता था। तभी एक राक्षस चिमटा लेकर आया और चिमटे से पकड़कर मुझे बाहर खींचा। आप ही सोचो मुझे कितना दर्द हुआ होगा? अभी तो मैं इस दर्द से उभरा भी नहीं था उतने में एक राक्षस ने आकर मुझे ऐसी उलाहना देते हुए कहा “हे दुष्ट ! तुझे रात्रि भोजन करने में बहुत मजा आता था। ले उसकी सजा।" ऐसा कहकर गरम-गरम लावा मेरे मुँह में डाल दिया। फिर पुनः कहा “हे पापी ! तुझे कंदमूल खाने में खूब स्वाद आता था, पावभाजी-सेंडवीच बहुत टेस्टी लगते थे। ले, खा यह सेन्डवीच।" ऐसा कहकर गरम-गरम पत्थर के टुकड़े मेरे मुँह में डाल दिये।
उसने मुझे याद कराया। “हे दुष्ट ! माँ-बाप की सेवा करने के बदले पत्नी के बहकावे में आकर उनके साथ मारपीट करता था। ले, चख अब उसका मजा।" और फिर भीम जैसी गदा लेकर मुझे मारने लगा। भाई ! उस शस्त्र के एक ही प्रहार से किसी भी मनुष्य की मौत हो जाये। परन्तु यहाँ तो मुझे ऐसे प्रहार बार-बार झेलने पड़ रहे है। इससे मुझे बेहद पीड़ा हो रही है। यहाँ शरीर पारे जैसा होता है। काटो तो टुकड़ेटुकड़े हो जाता है तथा उन टुकड़ों को पुन: जोड़ो तो इकट्ठा हो जाता है अर्थात् पुनः जीवित हो जाता है।
तुम्हें मालूम है यहाँ की गर्मी कैसी है ? नहीं ना! हाँ, तुम्हें तो मालूम भी कैसे होगा? तो सुनो अपने देश की टाटा फेक्टरी मालूम है ? जहाँ लोहा पिघलाया जाता है। नरक की इस गर्मी की तुलना में उस भट्टे की गर्मी तो मुझे गुलाबी सर्दी जैसी प्रतीत होती है। शायद तुम सोचोंगे कि यहाँ की गर्मी यदि ऐसी है तो यहाँ सर्दी कैसी होगी? तो सुनो! जो कोई मुझे हिमालय के एवरेस्ट पर खुले शरीर रख दे तो मैं आराम से वहाँ सो जाऊँ। यानि वो सर्दी यहाँ की सर्दी के सामने तो कुछ भी नहीं। सच बात तो यह है कि यहाँ खून को जमा दे ऐसी सर्दी होती है। काँप गए ना तुम? यह सब तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ ताकि तुम स्वयं को नरक की उन तकलीफों से बचाने के लिए वहाँ धरती पर भूल से भी कोई गलत कार्य न करो। मेरे शरीर की कोई आकृति नहीं है। बस मिट्टी के पिण्ड जैसा मनुष्य हूँ, जिसे करोड़ों रोग लग गये है। यहाँ नरक के जीव को पाँच करोड़ अड़सठ लाख नव्वाणु हजार पाँच सौ चौरासी रोग होते हैं। तुम ही सोचो इतनी बिमारियों से भरा जीवन कैसा
होगा?
वहाँ की वैतरणी नदी जैसी यहाँ खून की नदी बहती है तथा पेड़ ऐसे हैं जिन्हें छूने से शरीर से खून बहने लगता है। यानि ये वृक्ष काँटेदार करवत जैसे हैं। तुझे डर तो लग रहा होगा पर यह सब तुझे बताना जरुरी हैं। एक बात और हमारी आधुनिक युग की स्त्रियाँ जो गर्भपात करवाने से नहीं झिझकती, उन्हें यहाँ सबसे बड़ी सज़ा मिलती हैं। उनका यहाँ पेट फाड़ा जाता है। मुंह में गर्म शीशा डाला जाता है। इसके उपरांत भवोभव तक वे नि:संतान रहने की सज़ा पाते है। इस काम की अनुमोदना करने वाले भी यही सज़ा पाते हैं।