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दान : अमृतमयी परंपरा उलट-पलटकर कहा – “यह तो घाटे का व्यापार है।"
"नहीं, ऐसा नहीं है। अगर इस पुस्तक की एक साथ १० हजार प्रतियाँ छपाई जायें तो घाटा नहीं है। परन्तु १० हजार प्रतियाँ छपवाने के लिए मेरे पास रुपये नहीं हैं । अतः ईश्वरीय प्रेरणा होते ही मैं आपके पास आया हूँ ।" उपेन्द्रबाबू ने कहा।
__ चित्तरंजन बाबू - "लेकिन इसके सम्बन्ध में मेरी ख्याति नहीं है । उसमें मैं यश भी नहीं चाहता । कलकत्ता में लगभग २०० जमींदार दानवीर हैं, उन्हें क्यों नहीं पकड़ते ?"
उपेन्द्रबाबू - "उनके हृदय चित्तरंजन बाबू जैसे विशाल और उदार नहीं है। उनके मकानों के जीने चढ़ते-चढ़ते जूतों के तलिये घिस गये हैं।"
दासबाबू – “कलकत्ते के धनवानों के लिए ऐसा मत कहिए।"
यों कहते हुए उन्होंने टेबल की दराज में से चैक बुक निकालकर उसमें कुछ लिखकर एक चैक उपेन्द्र बाबू के हाथ में दे दिया । उपेन्द्रबाबू चैक पढ़ते. ही क्षणभर स्तब्ध रह गये। फिर उन्होंने कहा - "यह तो ५० हजार रुपये का
चैक है। इतनी बड़ी रकम के लिए धन्यवाद ! परन्तु यह रकम वापस कब देनी होगी ? रकम का ब्याज भी निश्चित हो जाये और दस्तावेज भी लिखा लिया
जाय।"
"यह सब खटपट रहने दो। मुझे न रकम वापस चाहिए, न ब्याज और दस्तावेज की जरूरत है।" दासबाबू ने कहा ।
उपेन्द्रनाथ सिर्फ ५ मिनट में ५० हजार का चैक दान के रूप में पाकर देखते ही रह गये। इस अर्थराशि से उन्होंने रवीन्द्र ग्रन्थावली, रमेशचन्द्र ग्रन्थावली, योगेन्द्र ग्रन्थावली वगैरह ३६ ग्रन्थावलियाँ प्रकाशित कराकर सस्ते दामों में आम जनता को दी।
यह है धन के सदुपयोग द्वारा जीवन को सफल बनाने का ज्वलन्त उदाहरण । सचमुच हमारे देश में ऐसे अनेक उदार महानुभाव हुए हैं, जिन्होने अपना सर्वस्व देकर देश का और अपना गौरव बढ़ाया है।
दान सिर्फ दान नहीं, हृदय में अनेक गुणों का आदान भी है।