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दान का महत्त्व और उद्देश्य
इसीलिए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने कहा था -
“यदी तुम प्राप्त करना चाहते हो तो अर्पित (दान) करना सीखो।"
इसलिए जिस व्यक्ति को विश्वास होता है, वह मुक्त मन से दान के बीज बोता है। चाहे वह नकद धन के रूप में मिले या पुण्यवृद्धि के कारण, सुखसाधन प्राप्ति के रूप में मिल जाता है।
ईरान का महादानी राजा साइरस अपने दान के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था । वह प्रतिदिन राज भण्डार से बहुत-सा धन दान दे दिया करता था। एक दिन उनके यहाँ दूसरे देश का एक अति धनाढ्य राजा आया । उसने साइरस की यह दान प्रवृत्ति देखी तो उसे बहुत बुरा लगा। उसने कहा - "अगर आप इस तरह अपना धन लुटाते रहे तो एक दिन खजाना खाली हो जायेगा । वक्त जरूरत पर आपको कौन मदद देगा ?" . साइरस बोला - "मुझे पक्का विश्वास है कि मुझे जब और जितने रुपयों
की जरूरत होगी, तब उतने ही रुपये प्रजा अवश्य देगी । अगर आपको विश्वास न हो तो मैं कल ही आपको बताऊँ।"
अतिथि राजा बोला - "आप एक लाख खरब रुपये माँगिये।"
राजा ने घोषणा करवाई कि "कल मुझे एक लाख खरब रुपयों की जरूरत है।" बस, घोषणा की देर थी, तुरन्त ही प्रजाजनों ने अपने प्रिय राजा के लिए अपनी थैलियाँ खाली करनी शुरु कर दीं। बहुत-से लोगों ने राजा के लिए हीरे, पन्ने, माणक, मोती और सोने के आभूषण भेंट दिये । कुछ ही दिनों में सबकी जोड़ लगाई गई तो रकम एक लाख खरब रुपये से ऊपर पहुंच चुकी थी। राजा साइरस ने अतिथि राजा से कहा – “देखिये, राजन् ! मेरी प्रजाने मेरी मांग पूरी कर दी है। यह रकम एक लाख खरब रुपयों से काफी अधिक है। अगर मैं प्रतिदिन की लाखों की आमदनी संचित करके रखता तो मुझे उसके संचय, रक्षा व व्यय की कितनी चिन्ता करनी पड़ती। फिर प्रजाजन मुझसे ईर्ष्या करते । इस दान ने तो मुझे निश्चिंत बना दिया है।" साइरस ने प्रजा के द्वारा दी गई वह सम्पत्ति भी दान कर दी।
यह है निश्चिंतता और समय पर अर्थ-प्राप्ति के अमोघ उपाय-दान का