________________
२२४
- दान : अमृतमयी परंपरा प्राचीनकाल में श्री हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल राजा को, श्री हीरविजयसूरि जी ने अकबर बादशाह को प्रतिबोध देकर कई बार :अमारिपटह' की उद्घोषणा करवाई थी। कई जगह अमुक पर्व, तिथि या दिन को अगते पलाये जाते थे । यानी उन दिनों में कोई भी व्यक्ति किसी जीव का कत्ल नहीं कर सकता था
और न शिकार कर सकता था। उन दिनों में माँस की दुकानें भी बन्द रखी जाती थीं।
आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी की प्रेरणा से अकबर बादशाह ने पर्युषण पर्व के दिनों में १२ दिन तक अमारिघोषणा के गुजरात देश, मालव देश, अजमेर, दिल्ली, फतेहपुरसीकरी और लाहौर देश इन पाँच राज्यों सम्बन्धी तथा एक सर्व साधारण यों ६ फरमान जारी किये थे।
एकबार आचार्यश्री का उपदेश सुनकर अकबर बादशाह को अपने आप पर बहुत पश्चात्ताप हुआ, उसने संसार सागर से तरने का उपाय पूछा तो आचार्यश्री ने तीन उपाय बताये - (१) सब जीवों पर दया करना, (२) सब जीवों पर क्षमा रखना, (३) सबकी सेवा करना । फिर बादशाह ने जब पापों से छुटकारे का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा - (१) किसी भी जीव को बेड़ी में डालने आदि का बन्धन न करना । (२) नदी, सरोवर आदि में जाल डलवाकर मछलियों वगैरह को न पकडवाना । (३) चिडियों की जीभ न खाना आदि । बादशाह ने ये बातें मंजूर की।
इस प्रकार मरते हुए या मारे जानेवाले प्राणियों की रक्षा करके अनेक जैन-मुनियों, आचार्यों आदि ने अभयदान का महान् कार्य किया ।
___ अभयदान का चौथा पहलू है – संकट, दुःख, रोग या आफत में पड़े हुए प्राणी को उस अवस्था से मुक्त कराकर उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देनादिलाना । वास्तव में अभयदान के इस लक्षण पर जब हम विचार करते हैं तो ऐसा अभयदाता अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता और न ही किसी प्रकार के सुखों की चिन्ता करता है।
इससे आगे अभयदान का पहलू है - अपराध या श्राप आदि किसी कारण से शंकित, भयभीत प्राणी को क्षमादान करना । क्षमादान भी अभयदान का एक प्रकार है, जो प्राणी जीवन के लिए बहुत अनिवार्य है। किसी जबर्दस्त