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________________ ७४ दान : अमृतमयी परंपरा दाता यह देखेगा कि इस दान का पात्र कौन है ? उसकी योग्यता स्थिति और आवश्यकता कितनी है और किस वस्तु की है ? इस दान से उसके आलस्य, अन्याय या विलास का पोषण तो नहीं होगा? इसीलिए श्री शंकराचार्य ने भी आगे चलकर केवल 'संविभागः' के बदले 'दान यथाशक्ति-संविभागः ।' - जैसी जिसकी शक्ति (योग्यता, क्षमता, आवश्यकता, स्थिति आदि) है, उसके लिए तदनुसार यथोचित विभाग करना दान है, कहा । इस अर्थ के अन्तर्गत समाज के इस ऋण को अदा करने की प्रक्रिया भी आ जाती है। व्यक्ति माता, पिता, पडौसी, गुरु, मित्र, परिवार, जाति, धर्म, संघ आदि की सेवा के कारण पुष्ट . होता है, अतः उनकी सेवा करने तथा समाज के उस ऋण को अदा करने की प्रक्रिया को दान कहा जाता है। इस लक्षण में न तो गरीबों की अप्रतिष्ठा है और न ही धनिकों के अंहत्व का पोषण है। इससे यह भी फलित होता है कि जो अनुचित विभाजन हो गया हो, विषमता आ गई हो, उसे मिटाने के लिए समुचित विभाजन करना दान की प्रक्रिया है, इसी का समावेश 'दानं सम्यग् विभाजनम्' के अन्तर्गत हो जाता है। दान का परिष्कृत अर्थ शंकराचार्य के अनुसार पूर्वोक्त सभी उद्देश्यों एवं स्वत्व-विसर्जन की प्रक्रिया को चरितार्थ करता है। संविभाग के अनुसार एक घटना इस प्रकार है। ___ महाराष्ट्र के संत एकनाथ के जीवन का एक प्रसंग है । एक बार उनके यहाँ श्राद्ध था । भोजन तैयार हो गया। वे घर के द्वार पर खड़े होकर निमन्त्रित ब्राह्मणों की प्रतीक्षा कर रहे थे। इतने में उस ओर से ४-५ चमार जाति के लोग निकले । एकनाथ के घर में बने मिष्ठान तथा सुस्वादु भोजन की महक से उनका मन ललचाया । वे आपस में बाते करने लगे। उनकी बातें एकनाथ के कानों में पड़ी । उनका दयाद्र हृदय पसीज गया । मन में विचार आया कि इस भोजन के सच्चे अधिकारी तो ये हैं । गीता में कहा है - "दरिद्रान् भर कौन्तेय । मा प्रयच्छेश्वरे धनम् ।" - दरिद्रों का भरण-पोषण करना चाहिए। उन्होंने अपनी पत्नी गिरिजाबाई को बुलाकर कहा – “इन बेचारों ने कभी उत्तम भोजन का स्वाद नहीं लिया । मैं चाहता हूँ कि श्राद्ध के लिए बना हुआ भोजन इनको दे दिया जाये। ये लोग भोजन करके तृप्त होंगे। इनकी आत्मा को सुख मिलेगा।"
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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