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________________ बिहार विभाग सविता t Sidne श्री बिमलनाथजी टोंक पादुका (२९) उन्तीसवीं टोंक दूसरे श्री अजितनाथ प्रभु की है। वह चैत्र सुदी पंचमी को १००० मुनियों के साथ मोक्ष गये हैं। (३०) तीसवीं टोंक बाईसवें श्री नेमिनाथ प्रभु की है। प्रभुजी गिरनार तीर्थ से मोक्ष पधारे हैं। दर्शनार्थ यहां चरण स्थापित किए हैं। यहां से आगे दो टोंक दिखती है वह सर्वोच्च अंतिम टॉक है। जिसका शिखर ३०-४० मील दूर से दिखता है। (३१) यह इक्तीसवीं टोंक तेईसवें श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी की है इसको मेघाडंबर टोंक भी कहते हैं। इस टोंक पर दो मंजिल का शिखरबंदी मंदिर है। नीचे की मंजिल में श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी के चरण स्थापित हैं। पार्श्वनाथ भगवान श्रावण सुदी अष्टमी को यहां तेतींस मुनियों के साथ मोक्ष पधारे हैं। इन प्रभुजी के नाम से इस पहाड का सर्व साधारण जगत में भी पार्श्वनाथ पहाड नाम पड़ा है। इस टोंक पर से चारों तरफ नजर करने पर मनोहर दृश्य दिखते हैं। श्री अजितनाथजी टोंक - पादुका (५१९ यह शिखर बादलों के साथ बात करता हुआ लगता है। वनस्पति से भरपूर है और अनेक जडीबूटियों का यह भंडार गिना जाता है। यात्रीगण पार्श्वनाथ प्रभुजी, पारसनाथ बाबा, पारसनाथ महादेव कहकर संबोधित करते हैं। पोष दशमी पर्व ( गु. मागशर वद १०) को प्रभुजी के जन्म कल्याणक के दिन जैनेतर भी भारी संख्या में आते हैं। यहां से दर्शन आदि करके मधुवन की तरफ जा सकते हैं। थोडी दूर डांक बंगला है। वहां से दायीं तरफ निमिया घाट का रास्ता है । और बायीं तरफ मधुवन का रास्ता है । मधुवन आकर फिर से भोमियाजी के दर्शन करके विश्राम करना होता है। यहां पहुंचते दोपहर के ३-४ बज जाते हैं। यहां हर वर्ष मगशिर वद १० को तथा फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को मेला लगता है। जैन जैनेतर भारी संख्या में आते हैं। मधुवन में आठ श्वेताम्बर मंदिर, दो दादावाड़ी है और भोमियाजी का मंदिर है। दिगंबर बीसपंथी के आठ तथा दिगंबर तेरापंथी के नौ मंदिर हैं।
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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