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________________ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA ६८ तीर्थ करने जाते हुए क्रोधी पुत्र ने माता को कडवी तुंबड़ी दी और कहा कि हर एक तीर्थ में इस तुंबड़ी को स्नान करवाना। उसने भी यात्रा की और हर स्थान पर तुंबडी को नहलाया और आकर माता को वापिस दी। माता ने उसकी सब्जी बनाई और पुत्र को परोसी। पुत्र कहता है - माँ सब्जी तो कडवी है। मां कहती है - तीर्थ में नहलायी है ना? 'हाँ' उसके उपरांत भी कडवाहट नहीं गई ? पुत्र - 'नहीं माताजी।' 'यदि बेटा तीर्थयात्रा करने जाये और हृदय में से कषायविषय की कडवाहट न निकाले तो उसकी यात्रा भी इस कडवी तुंबडी जैसी होती है। पुत्र समझ गया और जीवन में कडवाहट दूर करने के लिए प्रयत्नशील बना। __इसी प्रकार तीर्थयात्रा करने में विनय, विवेक, नम्रता, सज्जनता, जिनभक्ति, सम्यग्दर्शन, व्रत, नियम, सदाचार, अभक्ष्य त्याग, रात्रिभोजन त्याग, विकार विकृति से दूर रहना, त्याग तप, समर्पण आये, फिर शक्य हो तो श्रमणत्व के सन्मुख हो, प्राप्त करे। आदि आये तो तीर्थयात्रा करे ऐसा बने और तीर्थयात्रा की महिमा बढ़े। नहीं तो तीर्थश्वा' 'तीर्थ के कौओ' जैसा हो। परन्तु जीवन को निर्मल बनाना चाहिए यदि नहीं हो सके तो तीर्थ यात्रा सफल नहीं होती, तीर्थयात्रा की महिमा भी नहीं बढ़ती। उपरांत तो सुविधा, धूमने-फिरने का स्थान, मौज-शौक के स्थान रूप बन जाती है। ऐसा हो तो तीर्थ से तिरने की बजाय डूबे, और तीर्थ को भी बिगाड़े। ऐसा हो तो बहुत ही अविनय होता है। इससे ज्ञानीयों को तीर्थ की अविनय नहीं करना चाहिए' उसी प्रकार पूजा में रखकर आत्मा को जागृति का आलंबन दिया है। सभी कोई वैसी तीर्थयात्रा को प्राप्त हो और वैसे भाव प्राप्त करने के लिए यह श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन का दर्शन, स्तवन, ध्यान करो यही अभिलाषा। २०५२ श्रावण सुदी ५ सोमवार १९-८-९६ २, ओसवाल कॉलोनी, जैन उपाश्रय सुमेर क्लब रोड़, जामनगर जिनेन्द्र सूरि अंदर प्रथम पृष्ठ चित्र - (१) चौदह स्वप्न (२) अष्ट महाप्रातिहार्य (३) अष्ट मंगल (४) अष्ट प्रकारी पूजा (५) पंच कल्याणक पूजा, (६) बारह व्रत पूजा (७) सत्तर भेदी पूजा के प्रकार। अंदर द्विनीय पृष्ठ चित्र- (१) २४ तीर्थंकर (२) नवपद मंडल (३) नमस्कार महामंत्र (४) श्री गौतम स्वामी एक नोट इस तीर्थ दर्शन पुस्तक में मंदिरों की प्रतिकृति में ध्वजा चढ़ाने के लिए सीढ़ियां रखी हई दिखती है। वह बराबर नहीं है। एक घंटे के कार्य के लिए वर्ष भर सीढ़ियों का बोझ रहता है। पक्षी चरक करते हैं, मरण मृतक आदि लाये आदि से अविनय होता है। इससे जो सीढ़िया एकत्रित की वह बराबर नहीं है पालख रहे तो बांधने का खर्च करे सीढ़ी रखकर उपर चढ़ जाये और सांकल में डोरी डालकर नीचे से आदेश वाले डोरी खींचे तो ध्वजा उपर चढ़ जाय ऐसा करना वह कल्याणकारी और हितकारी है।
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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