SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०६) $24 मंदिर में उपर के भाग में प्राचीन प्रतिमाजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी दायें ऋषभदेवजी बाचें अभिनंदन स्वामी मूलनायक श्री विशालनाथजी (विहरमान जिन) यह तीर्थ पटना शहर में बाड़े की गली में है। आज का पढ़ना शहर प्राचीन काल में कुसुमपुर पुष्पपुर आदि नामों से जाना जाता था । श्रेणिक राजा के पुत्र कोणिक के पुत्र उदय वि. सं. पूर्व ४४४ के आसपास यह शहर बसाया है। मगध देश की यह राजधानी बनी थी। उदयन के बाद राजा महायक्षनंद ने कलिंग पर चढाई कर प्रतिमा लाए और खारवेल राजा ने चढाई कर मगध से यह जैन प्रतिमाएं फिर कलिंग ले गए थे। उसका वर्णन खंडगिरि उदयगिरि गुफाओं के शिलालेख में है । श्री जंबूस्वामी के प्रशिष्य यशोभद्रसू. म. का जन्म यहीं हुआ था श्री संभूति विजय और भद्रबाहु स्वामी भी यहीं हुए हैं। स्थूलिभद्रजी भी यहीं हुए हैं। उन्होंने संभूति गुरु के पास दीक्षा ली थी। श्री चंद्रगुप्त राजा भी चाणक्य की मदद से वहां राजी बने थे। श्री स्थूलभद्र तथा सेठ सुदर्शन के यहां स्मारक हैं। जो गुलमर बाग़ में डेढ़ कि.मी. दूर हैं। "आर्य रक्षित सू. म. ने यहां चार अनुयोग किए थे। वाचक उमास्वामीजी ने यहीं तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की है। पादलिप्तसू. म. ने राजा मुरुंड को यहीं जैन बनाया था। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग २ 2 2.3 कापी कापो हे पाश्र्व प्रभुजी मारां दुःखडां आज, मारा दुःखडा आज कापो, मारा दुःखडां आज । कापो. राय अश्वसेन पिता तुमारा, वाराणसी भूप सार, वामा माताना जाया तमे छो, सर्प लंछन जयकार । कापो. दीक्षा लेई प्रभु कर्म खपावी, केवल ने वरनार, चोत्रीश अतिशय छाजे तुजने, बार गुण धरनार । कापो. मेघनादे प्रभु देशना आपे, भवि दुःख हरनार, अहवी देशना वेरजेर भूली, सांभले पर्षदा बार । कापो. पूर्व पैर थी कमट वरसावे, वरसाद एक धार, आवे नागेन्द्र प्रभु कष्ट जाणी, सेवा करे सुखकार । कापो. " गुरुकर्पूर सूरि अमृत गुणे, पाश्र्वं वरे शिवनार, पाये पड़ी ने जिनेन्द्र विनवे, आपो सेवा, श्रीकार कापो. पुष्पचूला रानी को दीक्षा देने वाले क्षीण जंघा वाले अर्णिकापुत्र आचार्य को नदी पार करते हुए देव ने नाव डुबा दी और पानी में पड़े आचार्य शरीर को पानी लगते अपकाय की विराधना को विचारते हुए केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष गये। उनकी खोपड़ी में पाटल वृक्ष पैदा हुआ और उसके उपर पक्षी बैठे तो स्वयं जीवात उसके मुंह में गिरे। ऐसा घूमने आये राजा ने देखा और उस पाटल वृक्ष के उपर पाटलीपुत्र नगर बसाया। ऐसा अधिकार आता है। सातवीं सदी तक यहां जैनों का अधिकार था । १७वीं सदी में आगरा के कुंरपाल और सोनपाल यहां संघ लेकर आए थे तब तीन जिन मंदिर थे उसी प्रकार महतीहण जाति के जैन उस समय रहते थे । १८वीं सदी में जहांगीर बादशाह के मंत्री सेठ हीराचंद यहीं रहते थे। उन्होंने एक जैन मंदिर तथा दादावाड़ी बनवाई थी। आज पटना बिहार की राजधानी है। दूसरा पार्श्वनाथजी का मंदिर है बायीं तरफ मुकुट श्रीफल सहित बने हुए श्री अभिनंदन स्वामी है । पटना सिटी स्टेशन से यह मंत्र १ कि.मी. है। २०० मीटर तक कार, बस जा सकती है। रहने के लिए मंदिर के पास कोठी है। स्थान- बारहगल पटना सिटी (बिहार)
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy