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________________ महाराष्ट्र विभाग मूलनायक श्री आदिश्वरजी यह मंदिर घर मंदिर में से मनोजकुमार बाबुलालजी की प्रेरणा से फिर से बना। सं. २०४५ माह वदी १ रविवार २२१-७९ को पू. आ. श्री विजय लब्धि सूरीश्वरजी महाराज के समुदाय के पू. आ. श्री विजयभद्रंकर सूरीश्वरजी म. पू. आ. श्री विजय पुण्यानंदसूरीश्वरजी महाराज के द्वारा हुई है। शत्रुजयने दादा और यह मूर्ति एक जैसी लगती है। नागपुर से ६५ कि.मी. वर्धा से १२ कि.मी. है। पिन - ४४२१०४ (जि. वर्धा) संभव जिनवर विनंति, अवधारो गुण ज्ञातारे; खामी नहि मुज खीजमते, कदिय होशो फलदातारे। संभव -१ कर जोडी उभो रहुं, रात दिवस तुम ध्यानेरे, जो मनमां आणो नहि, तो शं कही थाने रे। संभव-२ खोट खजाने को नहि, दीजे वांछित दानोरे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाघे सेवक वानोरे। संभव -३ काललब्धि मुजमति गणो, भावलब्धि तुम हाथेरे; लडथडतुं पण गजबचुं, गाजे गयवर साथेरे, संभव-४ देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जांचुरे; वाचक जस कहे सांई शुं, फलशे ओ मुज सांचुरे। संभव -८ ४६. श्री वैजापुर तीर्थ shapraववान श्रीसूपाचनाय भगवान श्री आदेश्वर मगवान मूलनायक श्री संभवनाथजी वैजापुर जैन मंदिरजी मूलनायक श्री संभवनाथजी यहां २०४० चैत्र वदी५ को पू. आ. श्री विजय त्रिलोचन सूरि म. के शिष्य पू. मु. श्री कर्मजीत विजयजी म. के द्वारा प्रतिष्ठा हुई है। विहार का रास्ता है। जमीन श्री प्रतापमल नयनसुख संचेती ने दी है।
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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