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________________ श्री श्वेतांबर जैन नीर्थ दर्शन : भाग - 2 सन् १९१२ सं. १९६८ जेठ वदी ६ को इन दोनों महानुभावों के निवृत्ति लेने पर अलग-अलग कमेटी बनी और दक्षिण भारत के संघो द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि सभा निर्मित होती है। और उसमें से कार्यवाहक समिति होती है। जो इस तीर्थ की व्यवस्था संभालती है। सन् १९४२ से १९४५ पहाडी के उपर के जिनालयों का जीणोद्धार हुआ। सन् १९४९ में पू. आ. श्री विजय वन्धि सूरीश्वरजी महाराज की निया में जिनालय में निमार प्रतिमाजीओं की पुनः प्रतिष्ठा करने में आई। दक्षिण भारत में पहाड़ पर यह एक तीर्थ होने से उन्होंने दक्षिण काशजा' नाम दिया। सन् १९७० में पू.प. श्री रंजनविजयजीम की निश्रा में तीर्थ शताब्दी महोत्सव खूब धूमधाम से मनाया उस समय सेट श्री कस्तुरभाई लालभाई पधारे और उनका कमेटी ने सम्मान किया था। सन् १९८० में तलहटी में धर्मशाला में श्री मलिक पार्श्वनाथजी की नयन रम्य प्रतिमाजी की भव्य मंडप में प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय भटकर सूरीश्वरजी महाराज के द्वारा हुई है। इस तीर्थ में हर वर्ष तीन मेले लगते हैं। (१) कार्तिक पूर्णिमा (२) पोष दशमी (३) चैत्री पुनम । पहाड़ उपर के जिन मंदिर की ध्वजा वर्ष में ३ बार धूमधाम से चढाई जाती है। (१) माह सुदी ७ (२) माह वदी १३ (३) जेट सुदी ११ । यहां छरी पालित संघ सर्वप्रथम सन् १९३८ में कराड से कुंभोजगिरि पू. आ. श्री विजयरामचंद्रसूरीश्वरजीम की निश्रा में आया सन् १९६६ में पू. पं. श्रीरंजनविजयजी गणिवरकी निश्रा में निपाणी से तथा पू. आ. विजय सुबोधसू. म.पू. आ. श्री विजय प्रेम सू.म.तथा पू. विजय लब्धि सू. म. की निश्र में सन् १९७५ में कराड से आए प. मु. श्री जयंत वि. म. (मधुकर) की निश्रा में १९७८ में पंचमढ़ी से पू. आ. श्री विनयभद्रंकर सूरीश्वरजी म. की निश्रा में १९८०-८१ बैंगलोर, कराड और कोल्हापुर से पू. आ. श्री विबुध प्रभसूम की निश्रा में १९८१ ईचलकरंजी से पू. आ. श्री जयलक्ष्मी सू.म. की निश्रा में सन् १९८५ गदग से तथा पू. आ. श्री विजय मित्रानंद पू. म. की निश्रा में १९८६ में कराड से इस प्रकार अनेक संघ आये हैं। उपद्यान आदि हुए हैं। नवाणु यात्राएं हुई हैं। दीक्षाएं हई हैं। धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। म. कुंभोजगिरि तीर्थ जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैन श्वे. मंदिर पो. बाहुबली ता. हातकणांगले जि. कोल्हापुर। कुंभोजगिरि जैन मंदिरजी (पहाड़ पर) मुख्य प्रवेशद्वार
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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