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________________ अश्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग ५. श्री शिरपुर तीर्थ PROHimalad शिरपुर जैन मंदिरजी मूलनायक श्री पद्मप्रभ स्वामी इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं. १९६२ में महा सुद ५ को पू. आ. श्री चंद्रसागर सूरीश्वरजी म. के द्वारा हुई है। आरस के प्रतिमाजी ५ नीचे ५ उपर शिखर में है। धातु के ५३ प्रतिमाजी है। जैनों के ८० घर है, ५०० की संख्या है। स्टेशन नरकाना, ता. शिरपुर, जि. धुलिया पिन - ४२५४०५ मूलनायक श्री पद्मप्रभ स्वामी सिद्धाचल वासी प्यारो, लागे मोरा राजिंदा, ईणेरे डुंगरीये झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर बिराजे मोरा राजिंदा। सि. काने कुंडल माथे मुगट बिराजे, बांहे बाजुबंध छाजे, मोरा राजिंदा। सि, चौमुख बिंब अनोपम छाजे, - अद्भुत दीठे दुःख भांजे मोरा राजिंदा। सि. चुवा चुवा चंदर ओर अगरजा, केसर तिलक विराजे, मोरा राजिंदा। सि. ईण गिरि साधु अनंता सिद्धा, कहेतां पार न आवे, मोरा राजिंदा। सि. ज्ञानविमल प्रभु अणी पेरे बोले, आ भव पार उतारो। मोरा राजिंदा। सि. सिद्धाचलगिरि भेंट्यारे, धन्य भाग्य हमारा। ओ आंकणी ओ गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा, रायण रूख समोसर्या स्वामी, पूर्व नवाणुंवारा रे। धन्य १ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा. अष्ट द्रव्य शं पूजो भावे, समकित मूल आधार रे। धन्य२ भावभक्ति शुं प्रभु गुण गातां, अपना जन्म सुधारा, यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंचगति वारा रे। धन्य ३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा, पतित उद्धारण बिरुह तुमारूं, ओ तीरथ जगसारा रे, धन्य ४ संवत अढार त्यासी मास अषाढो, वदी आठम भोमवारा, प्रभुजी के चरणे प्रतापके संघमें, खीमारतन प्रभु प्यारारे, धन्य ५
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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