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________________ 129101100010190100012 श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 १७. श्री हासमपुरा तीर्थ हासमपुरा जैन मंदिरजी मूलनायक श्री अलौकिक पार्श्वनाथजी उज्जैन से १३ कि.मी. यह तीर्थ है। प्रतिमा वास्तव में अलौकिक है। झलते दिखे ऐसे सर्प के फण हैं। पैर में नागनागिन की जोड़ी है। बाजु बंध भी खुदे हुए हैं । ४५ ईंच की प्रतिमाजी है। यह प्रतिमा और मंदिर १००० वर्ष से भी ज्यादह के हो ऐसा लगता है । यह मूर्ति ५०० वर्ष महादेव के रूप में पूजित भोयरे में थी एक मुसलमान को स्वप्न आया और उसने • प्रतिमा बाहर निकाली। पू. हीर सू. म. के शिष्य पू. सेन सू. म. यहां पधारे ठाकुर जैन बने और मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा वि. सं. १६४९ में कराई वो भी पुराना मंदिर है। पास में भी जुड़ा मंदिर है। जहां यह प्रतिमाएं थी वो वहीं रखी है और वहां पू. पाद आ. भ. श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. की प्रतिमा रखी है। यह प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय भुवन भानु सू. म. के शिष्यरत्न पू. मु. श्री नयरत्न विजयजी म. की निश्रा में सं. २०३६ वै. सुद ७ ता. ३-५-७९ को हुई है। उपर नीचे छोटे ४-४ कमरे की धर्मशाला तथा पुरानी भोजनशाला है। अभी नवीन विशाल भोजनशाला पर धर्मशाला तथा विशाल उपाश्रय और उपर आराधना भवन का निर्माण हुआ है। पू. आ. भ. श्री विजय राजतिलक सूरीश्वरजी महाराज इस प्रदेश में अनेक प्रतिष्ठाओं आदि के लिए पधारे तब तीर्थ का उद्धार करने के लिए प्रेरणा दी थी। पू. आ. श्री जिनेन्द्रसूरीश्वरजी म. की निश्रा में यहां सर्वप्रथम उपद्यान सेठ मगनलाल वीरचंदजी की तरफ से हुआ बहुत उत्साह होने पर जिन मंदिर का जीर्णोद्धार कर एक पुरानी भोजनशाला और मैदान में भव्य जिनालय का निर्माण निश्चित हुआ पू. आ. श्री की निश्रा में खनन विधि और शिलास्थापन विधि हुई और दो वर्ष में गर्भगृह पूर्ण करने Osm मूलनायक श्री अलौकिक पार्श्वनाथजी की और मूलनायकजी आदि की प्रतिष्ठा की दृष्टि से शीघ्रता से जीर्णोद्धार कार्य हो रहा है। उपर की टेकरी में से धातु की प्रतिमाजी १२वीं सदी के मिले हैं। और वह श्री विक्रमराजा का महल था ऐसा कहा जाता है। उज्जैन का यह भाग था। यह मंदिर तथा प्रतिमाजी भी दसवीं सदी पूर्व की होना संभव है। प्रतिमा के उपर, पास और मंदिर में भी अनेक बार सांप आकर रहता बाहर से भी आचार्य आते तब सांप आगे चलता। सांप के सामने भक्ति गीत आदि गाने पर बैठा रहता। प्रतिमाजी को शहर में ले जाने की बात होने पर सांप आगे आकर बैठा। स्थानीय ठाकुर भव्य भी प्रतिमाजी यहीं रहे ऐसे भाव से मना करते आज हजारों भव्य जीव वर्ष में यात्रा करने आते हैं। पोष दशमी को मेला लगता है। पास में उज्जैन स्टेशन है। अवंति पार्श्वनाथजी उज्जैन से १३ कि.मी. है। श्री अलौकिक पार्श्वनाथ जैन श्वे. तीर्थ ट्रस्ट मु. हासमपुरा पो. तलोद (जि. उज्जैन) ट्रस्ट रजि. नं. ५५ (म. प्र. ) फोन ६१०२४५ / ६१० २४६ 桌來來來來來來來來來來來來觋來來來來來來來來來來來來來來 樂樂樂樂樂樂樂樂媒履
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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