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श्री श्वताबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-२
जिन! रागे देरासर आएँ, तुमारी जय बोलुं। नमी भावना भावे भावु, अंतर वात हुं खोलुं । (अंचली)
साखी पापी मारी जिंदगी, पापो आपथी दूर; दया करी आ दासने राखोने चरण हुजूर।
अंतर वात हुं खोलुं.....जिन. त्हारे दासो छ घणा, म्हारे मन तुं अक; क्रोडो कष्टे नहिं तर्जु, प्रभु ओवी छे म्हारी टेक।
अंतर वात हुँ खोलुं.....जिन. शिव पद प्रभुजी आपजो, तोडी भवनो पास; चार गतिने चूरजो, प्रभु अहवी अमारी आश।
अंतर वात हुँ खोलुं.....जिन. सिद्धाचलना साहिबा, नामे आदि जिणंद नेह नजर करीनाथजी, मने आपो ज्ञानामृत वृंद।
. अंतर वात हुँ खोलु.....जिन.
मूलनायक श्री आदिनाथजी
१३. श्री देवास तीर्थ
देवास जन मदिरजी