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________________ 邋邋邋骣激露露露露嚼嚼嚼嚼嚼嚼露露露露露曬露 मुद्रण का कार्य, स्केन, सुशोभित कार्य तथा उसके आयोजन के लिए हमें गेलेक्सी प्रिन्टर्स (राजकोट) वाले श्री भरतभाई मेहता तथा श्री महेन्द्रभाई मोदी को कार्य सौंपा। उन्होंने भी अनेक विकल्पों अड़चनों के बीच प्रयत्न किया फिर भी निश्चित समय पर प्रथम भाग प्रगट नहीं हो सका। परंतु उनके अथाह परिश्रम से इस प्रकाशन में पू. आचार्य देव श्रीजी का सतत मार्गदर्शन को लेकर ही कार्य किया है। वही इस प्रकाशन की सुंदरता सौष्ठवता का कारण बने है। इसलिए उनका आभार मानकर उनके भ्रम की कीमत दिये बिना नहीं रह सकते। उसी प्रकार दूसरे भाग के लिए भी थोड़ी देर हुई परंतु उन्होंने निष्ठा से कार्य किया है। अंत में हमारी संस्था ने, चित्र प्रकाशन में नारकी चित्रावली (गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी) सत्कर्म चित्रावली, (गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी) कल्पसूत्र चित्रावली सचित्र, कल्प ( बारसा) सूत्र, बालबोध तथा गुजराती लिपि में इस प्रकार अनेक प्रकाशन प्रगट किये हैं। उसके उपरांत भी श्वे. जैन तीर्थ दर्शन का प्रकाशन यह हमारे चित्र प्रकाशनों में सर्वश्रेष्ठ हैं। और ऐसा प्रकाशन प्रगट करते हुए हमारी संस्था धन्यता अनुभव करती है। इस श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन का प्रथम भाग प्रगट हुआ उसके बाद दूसरा भाग १०५२ में प्रगट करने की हमने भावना रखी है। हमारे मन के आनंद का विषय है। यह प्रगट हुआ जिससे हमारा बोझ कम हुआ है। हमारे शुभेच्छकों और ग्राहकों को संतुष्ट न कर सके उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। अब जब भाग प्रगट हो गया है तब हमने कार्य का प्रचार बराबर हो उसके लिए शुभेच्छकों, पाठको और प्रतिनिधियों को प्रयत्न करने के लिए विनंती करते हैं। तुम्हारे सर्किल में इस ग्रन्थ का स्वरूप और महत्त्व समझाना और ज्यादह से ज्यादह प्रचार-प्रसार हो यह हमारा हेतु सफल बनाना । इस श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन के लिए हिंदी, अंग्रेजी आवृत्तिओं के लिए जो भी मांग आती है, उस मांग को संतोषित करने के लिए पूज्य आचार्यदेव श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के मार्गदर्शन अनुसार प्रयत्न चालू है और यह भी कार्य कर सकूंगा ऐसी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इस श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन के दर्शन, खाते-पीते, धुम्रपान करते या अविनय हो इस प्रकार नहीं करना। पूज्य भाव, बहुमान पूर्वक और तारकों की तारक आज्ञा के आलंबन से तिरने की भावना के साथ सभी करें ऐसी आशा व्यक्त करते हैं और सभी इसके दर्शन द्वारा आत्मा को निर्मल बनायें और तारक तीर्थकर देवों के द्वारा प्ररूपित परम कल्याण मार्ग को सेवन कर सभी शिवसुख के भोक्ता बने यही अभिलाषा । ता. ९-८-९६ श्रुत ज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लॉट जामनगर (गुजरात) लि. संस्था के प्रतिनिधि महेता मगनलाल चत्रभुज शाह कानजी हीरजी मोदी शाह देवचंद पदमशी गुडका
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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