SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुभाषितरत्नभाण्डागारस्थपद्यानां पन्याः संहर दीर्घ ११७१८८ | परार्थव्यास (भामिनी.अ.७४) ५२।२४६ | परोपकारः कर्तव्यः (पाद्म.उ.२२) 1 पन्नगधारिकराग्रो गङ्गो १३१४ परार्थानुष्ठाने जड (मुद्रा.३.४) १३९।३ परोपकारविज्ञानमा (सु.२३१६) ५६०९१ पपात गङ्गा हरमौलि ३२११५ | परार्थे यः (शा.प.१०५२) २४२।१७९ | परोपकारशून्यस्य (शा.प.१४७८) ७४४ पपात पाथःकणि २१२।२९ | परिक्षीणः कश्चि (भर्तृ.२.३७) ६५।१५ | परोपकाराय फल (विक्रम.६६) ७५।१० पपात मेरोः सुरसिं ३२११४ | परिचरितव्याः (भर्तृ.२.१०८)३८६।३४८ | परोपकृतिकैवल्ये लोल ७४१५ पम्पासरसि रामेण १९३।५ परिचुम्बति सं (शा.प.३७८५) ३३१।५ | परोपदेशकुशला दृश्यन्ते । ८४ पयःपीठं दत्ते त्वरि ३५७१५२ | परिच्छिन्नखादोऽमृत ३१।४० | परोपदेशवेलायां १५६।१५९ पयसि सलिल (शिशु.११.४५) ३२७।१४ | परिच्छेदाती (मालती.१.३३) ३७५।२४७ | परोपदेशे पाण्डित्यं (हि.१.१० ३) ४५।२६ पयोदकेशेषु विकृ २४७।१५ परिच्छेदो हि (हि.१.१५०) १६३६४५५ हि.१.१५० १६३१४५५ परोपसर्पणानन्त (भामिनी.अ.८४) २३६५ पयोद हे वारि (उत्त.चातक.६)२१२।३५ परिच्युतस्तत्कुच(रत्ना.२.१४)२८३।१५७ | १२५ | परिच्यतस्तत्कचारबा.२.१४) २८३।१५७ | परोऽपि हितवा (सु.२७०५) १५६।१५२ पयोधरघनीभाव २६४।२५३ | परिणयविधौ भक्त्वा २०८० | परोऽप्यपत्यं(भाग.७.५.३७) ३८७।४१३ पयोधरस्तावदयं २६७३५५ | परितप्यत.एव (शिशु.१६.२३)५९।२०१ | परोऽवजाना(किरात.१४.२३)१७४।९०३ पयोधराकारध (शा.प.३९२७) ३४६३४ | परितोषयिता न(शिशु.१६.२८)५९।१९७ | पर्जन्य इव भूता (शा.प.१२८३) १४२।। पयोधेः सबैखं शिर २१४१५७ परिपतति पयो (शा.प.३५८८)२९४।४५ | | पर्यङ्कः स्वास्तर (शा.प.३७६६) ३५२१३ पयोमुचः प (काव्या.२.१७३)३८८।४३० परिपीड्य करद्वयेन २४६॥३७ पर्यङ्कग्रन्थिबन्धद्वि (मृच्छ.१.१) ८१११ पर क्षिपति (भा.५.१००७) ३८६३४५ परिपूर्णगुणाभोगगरि (सु.५०५) ७०।१७ पर्यङ्कीकृतनागनायक १५३६ परं तदिह नास्ति २४२११६६ | परिपूर्णेऽपि तटाके ५६।१२३ | पर्यको राजलक्ष्म्या . ११८१११ परं पलितकायेन १६५१५६० परिभ्रमन्या (शा.प.३९१४) ३४५।५० पर्यच्छे सरसि (शिशु.८.४६) ३३९।१० पर विनीतत्वमुपै (भाव.४.३) १५२।४०० | परिमन्थराभि (शिशु.९.७८) ३११११० पर्याप्तपुष्पस्तबक परकाव्येन क(राजत.५.१५९)३९७१४२२ / परिमलसुरभित (शा.प.९९०) २३७१३९ | पर्वतमेदि पवित्रं जैत्रं ९/१२ परगुह्यगुप्ति (भामिनी.अ.८७) ५॥१३९ परिमृदितमृणा (मालती.१.२५) २७५।२५ | पर्वताग्रे रथारूढो १८५।२७ परदारपरद्रव्यपर (शा.प.६६७)१५४।४६ | परिम्लानं पीन (रबा.२.१२) २७५।२७ | १८५११९ परदारं परद्र (सं.पाठो.५४) १६१३३४९ परिम्लाने माने मुख (अमरु.२५) ३१०१४ | पलायिता तवारि ११८१०१ परदारा न गन्त (सु.२९) १५४।४४ परिलुठति ललाटे ३०६।३६ पलाशकुसुमभ्रा (कुव.२५) २२२४३ परदुःखं समा (राजत.१.२२७) ४४१८१ परिशिथिलित (शिशु.११.११) ३२३।२५ | पल्लवतः कल्पतरोरे (कुव.५७) १०३७९ परपतिनिर्दयकुलटा ३५१।२६ परिशुद्धामपि वृ (शा.प.३५५) ५७।१३० | पल्लवोपमितिसा(शिशु.१०.५३) ३१७४१५ परपरितापनकुतुकी परिश्रमज्ञं जनमन्त (सु.१९५) ३८।२१ पल्लीनामधिपस्य पङ्क ५८।१५७ परभृतशिशो (सक्ति.१४.९) २२५।१३८ परिसुरपतिसू (किरात.१०.२०)३४०।२२ | पवनापनीतसौरभदूरो २२२६६० परमर्मघट्टनादिषु (सु.४०३) ५८।१७८ परिस्फुरन्मीन (किरात.८.४५) ३३८८८ | | पवित्रमतितृप्तिकृ . २०३।१०५ परिहर कृता (गीत.१०.१९.३) ३०६।४९ पश्चादनी प्रसार्य (सु.२४२०) २०७।१३ परमर्मदिव्यदर्शिषु (सु.३९२) ५४१३९ परिहरत पराङ्गना १७५।९४१ / | पश्यति परस्य युवतिं १७१।७८० परमो मरुत्स (शा.प.७९३) २१४१३ | परिहरति भयात्तवा २०१।६८ | पश्यन्ति नैव कवयो १७६।९६१ परवाने दशवदनः (सु.३८९) ५७।१२ | परिहरति यथा य(भाव.३.११) २५५।१५ | पश्यन्ति स्निग्धमुग्धं ३५४१६५ परश्लोकान्स्तोकान (स.१७९) ४१।६० परिहरति रति मतिं २९३।२ पश्यन्ती परिणामक ३२०४६ परस्परानु (शा.प.१९२९) १५०।३५० | परिहृत्य दुरारोहं २६॥३३१ / पश्यन्त्यसंख्यपथगां १०२॥३८ परस्परेण (रघु.७.५३) १२८१३६ परीक्ष्य सत्कुलं वि (शा.प.४०५) ६५।४ पश्यन्हतो (सूक्ति.५३.८०) २६९।३९६ परां विनीतः (कामं.नी.१.६५) ३७८०४६ पश्य पक्कफलिनीफ परीवादस्तथ्यो (लक्ष्मणसेन) १७७।९७७ २९९।२६ परागैः कापूरैस्तुहि २८०७१ परेषां क्लेशदं (शा.प.१५१३) १५४।६८ पश्य पश्चिमदिगन्त २९४।१३ पराधीनं वृथा १६०३२८ परेषां चेतांसि (भर्तृ.३.६२) ३६८०४५ पश्यानुरूपमिन्दि २४१६१५७ परानं प्राप्य दुर्बुद्धे (सु.२३११) ३६३३३ परेषामात्मनः (पंच.३.८७) ३७७१२१ | पश्यामः किमियं (अमरु.२०) ३११।२४ परानेन मुखं दग्धं(वृ.चा.४.२३) ९८१३ परैः प्रोक्का गुणा यस्य ८३१/ पश्यामि तामि (मालती.१.४३) २७८१४९ परः संभुज्यते रा (हि.२.१७६)-१३९१ पश्यत्काश्चच्चलचपल. १३२।२३ पराभवं परिच्छे (हि.२.१५०)१६४४९० | परोक्तमात्रं (वृ. चा.४.४९) ३८१।१७२ | पश्योदञ्चदवाञ्चदञ्चित २०७३ परामृशन्तो लिङ्गानि ४३।१ | परोक्षे कार्यहन्तार (सं.पाठो.५४) ८८।१ | पश्योदेति वि (प्र.राघव.७.५९) ३०१।९१
SR No.002425
Book TitleSubhashit Ratna Bhandagaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayanram Acharya
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1952
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy