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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् । मार्ग मंजिल से जुड़ा है। इसलिए मार्ग मंजिल में ले जाता है। तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसफ़न देहिनम् ।। ७ ।। साधन और साध्य भिन्न नहीं हैं। और जो उन्हें भिन्न मानता है, बड़ी तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् । भूल करता है। क्योंकि जैसे ही हमें यह खयाल आ गया कि साधन प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।।८।। और साध्य भिन्न हैं. मार्ग और मंजिल अलग हैं. वैसे ही हम मंजिल सत्त्वं सुखे संजयति रजः कर्मणि भारत । की तो चिंता करते हैं और मार्ग से बचने की कोशिश शुरू हो जाती ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे संजयत्युत ।।९।। | है। फिर हमारा मन कहता है, अगर बिना मार्ग के भी मंजिल मिलती हे अर्जुन, रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से | हो, तो हम मार्ग को छोड़ दें और मंजिल पर पहुंच जाएं। शार्टकट उत्पन्न हुआ जान । वह इस जीवात्मा को कमों की और की खोज बेईमानी का हिस्सा है। उनके फल की आसक्ति से बांधता है। फिर हम सोचते हैं, मार्ग जितना कम हो जाए; क्योंकि मार्ग कोई और हे अर्जुन, सर्व देहाभिमानियों के मोहने वाले तमोगुण | मंजिल तो नहीं है। और किसी चालाकी से, किसी तरकीब से अगर को अज्ञान से उत्पन्न हुआ जान । वह इस जीवात्मा को हम बिना मार्ग पर चले मंजिल तक पहुंच जाएं, तो हम जरूर पहुंचना . प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है। चाहेंगे। हमारी दृष्टि फिर भविष्य में हो जाती है। और वर्तमान से जो क्योंकि हे अर्जन, सत्वगण सख में लगाता है और रजोगण बचता है, उसका भविष्य बिलकल अंधकारपर्ण है। क्योंकि सभी कर्म में लगाता है तथा तमोगुण तो ज्ञान को आच्छादन भविष्य वर्तमान से ही पैदा होगा; कल आज से पैदा होगा। करके अर्थात ढंककर प्रमाद में भी लगाता है। ___मार्ग तो आज है; मंजिल कल है। और जो आज से बचेगा, वह कल से वंचित रह जाएगा। क्योंकि कल जो भी होने वाला है, वह आज से ही जन्मेगा; आज के ही गर्भ में छिपा है। सूत्र के पहले थोड़े प्रश्न। ऐसा समझ लें कि मार्ग है गर्भ और मंजिल है जन्म। बांटें मत। पहला प्रश्नः परम जीवन और परम आनंद की बात | और तब यह बात समझ में आ जाएगी। जो आप बार-बार करते हैं, उसका तो कोई अनुभव परम आनंद तो मंजिल पर मिलेगा। मंजिल का मतलब है, मार्ग मुझे हुआ नहीं है, लेकिन इस मार्ग पर चलने में भी | जहां पूरा हो जाएगा, जहां मार्ग पूर्णता पर पहुंच जाएगा। जहां जाने आनंद आता है। तो क्या मंजिल तक पहुंचने के पहले | | के लिए और कोई आगे जगह न रहेगी, परम आनंद तो वहां यात्रा में भी आनंद हो सकता है? मिलेगा। लेकिन आनंद की पहली घटना तो पहले कदम पर ही घट जाएगी। मार्ग पर चलने का खयाल भी आनंद से भर देगा। चलना तो दूर, सिर्फ यह संकल्प कि मैं मार्ग पर चलूंगा, खोचूंगा, इस र मारी आदत है सभी चीजों को बांटकर देखने की, संकल्प से भी मन एक नई झलक आनंद की ले लेगा। इसलिए हम मार्ग और मंजिल को भी बांट लेते हैं। __एक कदम भी जो रखेगा, एक कदम के योग्य मंजिल तो मिल बिना बांटे हमारा मन मानता नहीं। मन सभी चीजों को | ही गई। समझें कि अगर मंजिल हजार कदमों पर मिलेगी, तो एक तोड़ता है। और वस्तुतः कुछ भी टूटा हुआ नहीं है। मार्ग का ही बटा हजार मंजिल तो पहले कदम पर ही मिल गई। उतने आनंद के अंतिम हिस्सा मंजिल है। और मंजिल का पहला चरण मार्ग है। हम हकदार हो गए। ऐसी कोई जगह नहीं, जहां मार्ग समाप्त होता हो और मंजिल शुरू और ध्यान रहे, यह आनंद ऐसा नहीं है कुछ जो अंत में मिलेगा होती हो। | फल की तरह, यह प्रतिपल बढ़ेगा; यह जीवन है। प्रतिपल मिलेगा मार्ग और मंजिल दो नहीं हैं, वे एक ही हैं। अगर वे दो होते, तो और प्रतिपल बढ़ता रहेगा। मार्ग से चलकर आप मंजिल तक पहुंचते कैसे? अगर उनके बीच मार्ग पर जो चलता है, वह मंजिल पर पहुंचने ही लगा। मार्ग पर रत्तीभर भी फासला होता, तो आप मार्ग पर ही रह जाते, मंजिल पर जो खड़ा हो गया, उसने दूर सही, लेकिन मंजिल पर हाथ रख कैसे पहुंचते? लिया। झलकें आनी शुरू हो जाएंगी। निर्णय लेते ही चलने का. 34
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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