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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * अच्छे फल। फिर फल बड़ा होता जाता है, सुस्वादु होता चला | | उदबोधित किया है। जाता है। ___ तो चाहे इस अध्याय में, चाहे किसी और अध्याय में, आपके तो अनेक पीढ़ियों में समुराई चुने गए हैं। वह क्षत्रियों की जाति लिए भी कहे गए वचन हैं। इतनी थोड़ी-सी मेहनत आपको करनी है। समुराई का एक ही लक्ष्य है कि जब मैं युद्ध में लडूं, तो युद्ध तो पड़ेगी कि अपने को थोड़ा समझें और अपने योग्य, अपने अनुकूल हो, मैं न रहूं। मेरी तलवार तो चले, लेकिन चलाने वाला न हो। वचनों को थोड़ा पहचानें। और उचित ही है कि इतनी मेहनत आप तलवार जैसे परमात्मा के हाथ में आ जाए, वही चलाए; मैं सिर्फ करें। क्योंकि बिलकुल चबाया हुआ भोजन मिल जाए, तो निमित्त हो जाऊं। आत्मघाती है। थोड़ा आप चबाएं और पचाएं। और यहां उत्तर बंधे इसलिए कहते हैं कि अगर दो समुराई युद्ध में उतर जाएं, तो बड़ा | हुए नहीं हैं, उत्तर खोजने पड़ेंगे। मुश्किल हो जाता है कि कौन जीते, कौन हारे। क्योंकि दोनों ही अपने | | मैंने सुना है, एक अदालत में मुकदमा चला एक आदमी पर, को मिटाकर लड़ते हैं। दोनों की तलवारें चलती हैं; लेकिन दोनों की | | उसने हत्या की थी। और एक गवाह को मौजूद किया गया, गांव के तलवारें परमात्मा के हाथ में होती हैं। कौन हारे, कौन जीते। एक किसान को। और उस गवाह से वकील ने पूछा कि जब रामू ने समुराई-सूत्र है कि वही आदमी हार जाता है, जो थक जाता है | | पंडित जी पर कुल्हाड़ी से हमला किया, तो तुम कितनी दूर खड़े थे? जल्दी और वापस अपने अहंकार को लौट जाता है। जिसको भाव | उसने कहा कि छः फीट साढ़े छः इंच; उस किसान ने कहा। वकील आ जाता है मैं का, वह हार जाता है। जो आदमी धैर्यपूर्वक परमात्मा भी चौंका, अदालत भी होश में आ गई, मजिस्ट्रेट भी चौंका। और पर छोड़कर चलता जाता है, उसके हारने का कोई भी उपाय नहीं है। वकील ने कहा, तुमने तो इस तरह बताया है कि जैसे तुमने पहले से कृष्ण कह रहे हैं, तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की | | ही सब नाप-जोखकर रखा हो। छः फीट साढ़े छ: इंच! व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है, ऐसा जानकर तू शास्त्र-विधि से उस किसान ने कहा, मुझे पता था कि कोई न कोई मूर्ख आदमी नियत किए हुए कर्म को ही करने के लिए योग्य है। यह सवाल मुझसे यहां जरूर पूछेगा; तो यहां आने के पहले पहला यह कर्तव्य और अकर्तव्य की व्याख्या कृष्ण ने की। क्या करने | काम मैंने यह किया। बिलकुल नापकर आया हूं। योग्य है, क्या करने योग्य नहीं है! क्या त्याग देना है, और क्या | इस तरह बंधे हुए सवाल और उत्तर आपको गीता में नहीं मिल · जीवन में बचा लेना है! कौन-से नरक के द्वार हैं, वे बंद हो जाएं, | सकते। सब जवाब वहां मौजूद हैं, सब सवालों के जवाब मौजूद तो कैसे मोक्ष का द्वार खुल जाता है! हैं। लेकिन पहले एक तो आपको अपना सवाल पहचानना पड़ेगा, ये सारी बातें आपने सुनीं। ये बातें अर्जुन को कही गई हैं। इन | | फिर अपने सवाल को लेकर गीता में खोजना पड़ेगा। जवाब पर आप सोचना। अगर आपकी चित्त-दशा अर्जुन जैसी हो, तो ये | | आपको मिल जाएगा। और वह जवाब जब तक न मिले, तब तक बातें आपके लिए बिलकुल सीधा मार्ग बन जाएंगी। अगर आपकी | गीता को ऊपर से ओढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि वह चित्त-दशा अर्जुन जैसी न हो, और आप कोई संबंध ही न जोड़ पाते | खतरनाक हो सकती है। हों अपने और अर्जुन में, तो आप इन बातों को अपने पर ओढ़ने । गीता एक आदमी के लिए कही गई है, लेकिन एक आदमी के की कोशिश मत करना। क्योंकि वह भूल हो जाएगी वही, जो बहाने सब आदमियों से कही गई है। इसलिए उसमें बहउत्तर हैं, अर्जुन कर रहा था। अनंत उत्तर हैं, आपका उत्तर भी वहां है। और आप अपने को इन बातों को समझना, सोचना, इनके साथ-साथ अपने स्वभाव | पहचानते हों, तो उस उत्तर को खोज ले सकते हैं। फिर वही उत्तर को समझना और सोचना। दोनों को समानांतर रखना। अगर उनमें आपके जीवन की साधना बन सकता है। कोई मेल उठता हो, अगर दोनों में एक-सी धुन बजती हो, अगर आज इतना ही। दोनों में संयोग बनता हो, तो ये सूत्र आपके काम आ सकते हैं। लेकिन गीता में करीब-करीब कृष्ण ने वे सारे सूत्र कह दिए हैं, जितने प्रकार के मनुष्य हैं। वे सारे सूत्र कह दिए हैं। इसलिए गीता इतनी लंबी चली। अर्जुन के बहाने कृष्ण ने पूरी मनुष्य जाति को 1416
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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