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* शोषण या साधना *
वेद कहते हैं। वेद कोई किताब नहीं है; सभी प्रज्ञावान पुरुषों के कमजोर शरण में जा ही नहीं सकता, क्योंकि वह डरता है कि वचन वेद हैं। इन वचनों को अगर हम मनन करें, विचार नहीं! और | शरण में गए तो दूसरा कब्जा कर लेगा। वह कमजोरी का डर है। विचार और मनन का फर्क ठीक से समझ लेना चाहिए। शक्तिशाली चला जाता है। शक्तिशाली ही समर्पण करता है।
विचार का तो मतलब होता है, मैं अपनी बुद्धि लगाऊं कि क्या कमजोर तो सदा डरता है, भयभीत रहता है कि कहीं किसी के हाथ ठीक है, क्या गलत है; पक्ष-विपक्ष में सोचूं। मेरे पास बुद्धि ही | में अपने को सौंप दिया, फिर पता नहीं, क्या हो। सिर्फ शक्तिशाली होती, तो फिर क्या था! और मैं जानता कि क्या ठीक है और क्या | सौंपने की हिम्मत करता है कि सौंप दिया, अब जो भी हो। गलत है, तो वेद की कोई जरूरत न थी। फिर मैं खुद ही प्रज्ञावान __ और ध्यान रहे, जो सौंपने की हिम्मत जुटाता है, उसके पास था। वह मेरे पास नहीं है।
प्रज्ञावान पुरुष अनिवार्य रूप से प्रकट हो जाते हैं। अगर तुमने मनन! मनन बड़ी अलग बात है। मनन का अर्थ है, प्रज्ञावान गलत आदमी के भी चरणों में अपने को सौंपा और सौंपना बेशर्त पुरुष के वचन को अपने हृदय में उतार लेना, उसका रस चूसना, रहा, तो गलत आदमी हट जाएगा और ठीक आदमी प्रकट हो उसका स्वाद लेना। सोचना नहीं कि ठीक है कि गलत है। उसको | जाएगा। और अगर तुम ठीक आदमी के पास भी अपने को पीना। इसको हम पाठ कहते हैं।
सिकोड़कर बैठे रहे, बचाते रहे, तो ठीक आदमी भी तुम्हारे लिए इसलिए एक आदमी रोज गीता का पाठ करता है। पश्चिम के गलत आदमी ही है। लोग पूछते हैं कि यह क्या पागलपन है! एक दफा किताब पढ़ ली, यह न हो सके, मन बहुत कमजोर हो, निर्बल हो, तो फिर शास्त्र बात खतम हो गई। और किताब को दुबारा पढ़ने का क्या अर्थ है! खोजना चाहिए। गुरु शक्तिशाली के लिए, शास्त्र कमजोर के तिबारा पढ़ने का क्या अर्थ है! और फिर जिंदगीभर रोज सुबह उठकर | | लिए। मगर हिम्मत तो वहां भी जुटानी पड़ेगी। क्योंकि वहां भी पढ़ने का तो कोई भी अर्थ नहीं है। वही किताब है, उसको बार-बार शास्त्र को मौका देना होगा कि आपके भीतर जा सके, रोएं-रोएं में पढ़कर क्या फायदा? इससे तो बुद्धि और जड़ हो जाएगी! डूब जाए, उतर जाए, श्वास-श्वास में समा जाए, जगह-जगह
उनकी बात थोड़ी दूर तक सही है। अधिक लोगों की बुद्धि जड़ आपके कण-कण में उसकी ध्वनि गूंजने लगे। हो गई है। लेकिन जड़ हो जाने का कारण है कि उन्हें पाठ का रहस्य | स्वामी राम अमेरिका से वापस लौटे, तो पंजाब के एक बहत मालूम नहीं है। गीता रोज सुबह पढ़ने का अर्थ पढ़ना है ही नहीं। बड़े विचारक सरदार पूर्णसिंह उनके साथ थे। तो एक ही कोठरी में वह तो जैसे रोज आदमी भोजन करता है, पानी पीता है, श्वास लेता एक रात हिमालय में सोए थे। चारों तरफ सन्नाटा था, हिमालय का है, ऐसे रोज सुबह प्रज्ञावान पुरुष के वचनों को आत्मसात करना सन्नाटा। न कोई पास गांव, न कोई आवाज, न कोई शोरगुल। है, अपने में डुबाना है, उनको अपने में फेंकना है, उलीचना है। अचानक पूर्णसिंह को लगा कि कोई राम-राम की रट लगाए हुए क्योंकि वे वचन बीज की तरह भीतर पड़ जाएंगे और किसी सम्यक | है। तो नींद न आए। उठकर वे बाहर गए, बरांडे में चारों तरफ क्षण में और हम नहीं जानते वह सम्यक क्षण कब आएगा, | | घूमकर देखा, सन्नाटा है। कोई नहीं है वहां। हैरानी तो तब हुई कि इसलिए रोज करना है-किसी भी दिन वह सम्यक क्षण आ जब बाहर गए, तो आवाज कम आने लगी। और जरा दूर जाकर जाएगा, तो बीज ठीक जगह पहुंच जाएंगे। उनसे अंकुरण होगा। बरांडे में घूमे, तो और कम आने लगी। नीचे के कंपाउंड में उतरकर और उस अंकुरण में हमको पहली बार दिखाई पड़ना शुरू होगा कि दरवाजे तक गए, तो आवाज बिलकुल खो गई। फिर जैसे वापस क्या आसुरी है, क्या दैवी है। उसके पहले दिखाई नहीं पड़ सकता। लौटे करीब, आवाज बढ़ने लगी। कोठरी में आए, तो आवाज फिर
तो दो उपाय हैं। अगर हिम्मत हो, तो जीवित प्रज्ञावान पुरुष की | सुनाई पड़ने लगी। तब वे चकित हुए। क्योंकि सिवाय राम और शरण में चले जाना चाहिए। अगर कमजोर आदमी हो. हिम्मत न हो, तो शास्त्र की शरण में चले जाना चाहिए। आपको उलटा | | तो राम की खाट के पास गए। जैसे पास गए, तो आवाज और लगेगा। आप अक्सर सोचते हैं कि जो ताकतवर है, वह किसी की बढ़ने लगी। तब उन्हें खयाल आया कि यह तो कुछ अनूठा घट शरण में नहीं जाता। और मैं आपसे कह रहा हूं कि ताकत हो, तो | | रहा है! राम के शरीर के अंग-अंग से राम की आवाज निकल रही शरण में चले जाना चाहिए।
| है। तो पैर के पास कान रखकर देखा, तो आवाज; हाथ के पास
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