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* शोषण या साधना *
इस भीड़ में आपको पहचान ही नहीं हो पाएगी, क्योंकि तुलना | कोई गवाह भी नहीं था। वह बात अकबर की अदालत तक कैसे पैदा हो! कहते हैं, ऊंट जब तक पहाड़ के नीचे न जाए, तब | | पहुंची। एक भी गवाह नहीं, उपाय भी नहीं कोई। यह आदमी कहता तक उसे पता ही नहीं चलता कि मुझसे ऊंचा भी कुछ है; तब तक | है, रख गया। और दूसरा आदमी कहता है, नहीं रख गया। अब ऊंट पहाड़ है।
कैसे निर्णय हो? आप जब तक अपने से बिलकुल भिन्न जीवन चेतना के करीब । अकबर ने बीरबल से सलाह ली। बीरबल ने, जो आदमी रुपए न जाएं, तब तक आपको अपना आसुरीपन दिखाई पड़ेगा नहीं। | रख गया था, उससे कहा कि कोई भी तो गवाह हो! उसने कहा, उसके पास जाते ही आपको झलक होनी शुरू हो जाएगी, क्योंकि गवाह तो कोई भी नहीं है; सिर्फ जिस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने इसे विपरीत पृष्ठभूमि में आप दिखाई पड़ने शुरू हो जाएंगे। | संपत्ति दी थी, वह वृक्ष ही गवाह है। बीरबल ने कहा, तब काम तो प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि खोजें।
चल जाएगा। तुम जाओ, वृक्ष को कहो कि बुलाया है अदालत ने। दूसरी बात, प्रज्ञावान पुरुषों ने जो-जो कहा है-गीता है, लगा तो उस आदमी को कि यह पागलपन का मामला है, उपनिषद हैं, लाओत्से का ताओ तेह किंग है, महावीर के वचन हैं, | | लेकिन कोई और उपाय भी नहीं है। सोचा, पता नहीं इसमें कुछ राज. बुद्ध का धम्मपद है, और हजारों-हजारों वक्तव्य हैं सारी जमीन पर | हो। उसने कहा, मैं जाता हूं प्रार्थना करूंगा। फैले हए-प्रज्ञावान पुरुषों ने जो कहा है, उस पर तर्क मत करें, | वह आदमी गया। दसरा. जिसके पास रुपए जमा थे. वह बैठा उस पर प्रयोग करें। वही तर्क है। उस पर सोच-विचार मत करें । रहा. बैठा रहा। बडी देर हो गई। तो बीरबल ने कहा. बडी देर हो क्योंकि सोच-विचार करने का कोई उपाय नहीं है। जिस बात की गई. यह आदमी लौटा क्यों नहीं। तो उस आदमी ने कहा कि आपको कोई प्रतीति नहीं है, आप सोच-विचार भी कैसे करिएगा? | जनाब, वह वृक्ष बहुत दूर है। तो बीरबल ने कहा, मामला हल हो उस पर प्रयोग करें, और प्रयोग करके देखें।
| गया। तुमने रुपए लिए हैं, अन्यथा तुम्हें उस वृक्ष का पता कैसे चला प्रयोग ही तर्क है। क्योंकि प्रयोग से आपको लगेगा कि वे ठीक कि वह कितने दूर है! कह रहे हैं। उसका स्वाद आएगा, तो ही लगेगा कि वे ठीक कह | | हमारे भीतर भी हमें पता चलने के लिए कुछ संकेत चाहिए, रहे हैं। और जब तक आपको आपसे अन्यथा कोई चीज ठीक न | परोक्ष। प्रत्यक्ष तो कोई उपाय नहीं है। प्रत्यक्ष तो आप जैसे हैं, उससे लगने लगे, तब तक आप अपने को गलत न मान पाएंगे। गलत | | भिन्न होने का कोई उपाय नहीं है। परोक्ष कोई उपाय चाहिए। के लिए तुलना चाहिए।
प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि में आपको परोक्ष झलकें मिलना शुरू सुना है मैंने कि अकबर के समय में एक धार्मिक व्यक्ति | | होंगी और लगेगा कि आप गलत हैं। क्योंकि जैसे ही आपको तीर्थयात्रा पर गया। उन दिनों बड़े खतरे के दिन थे। संपत्ति को पीछे लगेगा कि प्रज्ञावान पुरुष सही है, वैसे ही आपको लगेगा कि मैं छोड़ जाना और अकेला ही आदमी था, बच्चे-पत्नी भी नहीं थे, गलत हूं। काफी संपदा थी। तो एक मित्र के पास रख गया, जिस पर भरोसा __ और यहां एक बड़ी महत्वपूर्ण बात समझ लेनी जरूरी है। अगर था। और कहा कि अगर जीवित लौट आया, तो मुझे लौटा देना; | आप बहुत चालाक हैं, तो आप प्रज्ञावान पुरुष के पास भी बैठकर अगर जीवित न लौटूं, तो इसका जो भी सदुपयोग बन सके कर | यही सोचते रहेंगे कि वह गलत है। क्योंकि अपने को बचाने का लेना। यात्रा कठिन भी थी पुराने दिनों में, तीर्थ से बहुत लोग नहीं | | वही एक उपाय है, और कोई उपाय नहीं है। भी लौट पाते थे।
इसलिए लोग गुरुओं के पास भी जाते हैं और गुरुओं की गलती वह लंबी मानसरोवर तक की यात्रा पर गया था। पर भाग्य से | | देखकर वापस लौट आते हैं। उन्होंने अपनी सुरक्षा कर ली। क्योंकि जीवित वापस लौट आया। मित्र ने तो मान ही लिया था कि लौटेगा दो ही रास्ते थे। अगर गुरु ठीक था, तो उनको गलत होना पड़ता। नहीं। लेकिन जब वह लौट आया, तो अड़चन हुई। संपत्ति काफी और अगर उनको ठीक ही बने रहना है जैसे वे हैं, तो गुरु को गलत थी और देना मित्र को भी मुश्किल हुआ। मित्र नट गया। उसने कहा | | सिद्ध कर लेना जरूरी है। कि रख ही नहीं गए! कैसी बातें करते हो? तुम्हारा दिमाग तो खराब | | लेकिन गुरु को गलत सिद्ध करने से गुरु का तो कुछ भी खोता नहीं हो गया?
नहीं; आपको एक परोक्ष मौका मिला था-सोचने का, विमर्श
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