________________
* शोषण या साधना *
रहता है। दिन और रात की तरह यह बदलाहट नोन और अननोन | नहीं। इसलिए वह तत्व सदा ही अज्ञेय बना रहता है, अननोएबल में होती रहती है। लेकिन धर्म कहता है, एक और चीज है, जो दोनों | बना रहता है। जाना भी जाता है, फिर भी जाना नहीं जाता। जान भी के पार है, वह अज्ञेय है। वह कभी ज्ञात भी नहीं होता, कभी अज्ञात | लिया जाता है, फिर भी ज्ञान का हिस्सा नहीं बनता, जानकारी नहीं भी नहीं होता।
बन पाती। हम परमात्मा को वही तत्व कहते हैं। वह सदा अज्ञेय ही बना इसीलिए तो हम विज्ञान की शिक्षा दे सकते हैं, लेकिन धर्म की रहता है। हम उसे जान भी लेते हैं, तब भी हम उसे पूरा जान नहीं कोई शिक्षा नहीं दे सकते। पाते। और जो उसे जान लेता है, वह दावा नहीं कर पाता कि मैंने | एडिसन एक सत्य को जान लेता है, या न्यूटन एक सत्य को जान जान लिया। क्योंकि उसके जानने की एक अनिवार्य शर्त है कि | लेता है, या आइंस्टीन एक थिअरी खोज लेता है, एक सिद्धांत खोज जानने वाला उसे जानने में ही खो जाता है। इसलिए दावा करने को | | लेता है, फिर हर एक को खोजने की जरूरत नहीं है। एक दफा एक कोई पीछे बचता नहीं।
आदमी ने खोज लिया, फिर वह किताब में लिख गया, फिर उसे उपनिषदों ने कहा है, जो कहे कि मैं जानता हूं, जानना कि उसे | | बच्चे पढ़ते रहेंगे। जिस काम को करने में आइंस्टीन को वर्षों अभी कुछ पता नहीं। जानने वाले की शर्त ही यही है कि वह कह | लगेंगे, उसे कोई भी व्यक्ति दो घंटे में समझ लेगा, घंटे में समझ नहीं सकेगा कि मैं जानता हूं। क्योंकि वहां कोई मैं नहीं बचता। | | लेगा। फिर साधारण बच्चे, जिनमें बुद्धि नहीं है, वे भी उसे समझ — कबीर ने कहा है कि मैं खोजता था; और बहुत खोजा और तू न | | लेंगे और परीक्षा देकर उत्तीर्ण होते रहेंगे। फिर दुबारा उसे खोजने मिला। और जब तू मिला तब बड़ी अड़चन हुई, क्योंकि तब तक की जरूरत नहीं। एक दफा विज्ञान जो जान लेता है, वह ज्ञान का मैं खो चुका था।
हिस्सा हो जाता है। अगर ठीक से समझें, तो मनुष्य और परमात्मा का मिलन कभी | लेकिन धर्म के मामले में बड़ी अजीब बात है। हजारों लोगों ने . भी नहीं होता। क्योंकि जब तक मनुष्य होता है, तब तक परमात्मा | परमात्मा को जाना, फिर भी हम किताब में लिखकर उसको दूसरे को से मिलना नहीं हो पाता। और जब परमात्मा प्रकट होता है, तब तक | नहीं जना सकते। कृष्ण ने जाना होगा, बुद्ध ने जाना होगा, क्राइस्ट मनुष्य पिघलकर उसमें लीन हो गया होता है। इसलिए मिलन की ने जाना होगा, मोहम्मद ने जाना होगा। लेकिन फिर उस जानने से घटना नहीं घटती दो के बीच। या तो मनुष्य होता है, या परमात्मा | | कोई फर्क नहीं पड़ता। आप सिर्फ पढ़कर नहीं जान सकते। आपको होता है।
भी जानना है, तो उसी जगह से गुजरना होगा, जहां से कृष्ण गुजरते एक अमेरिकी विचारक एलन वाट एक झेन फकीर के पास | हैं। और जब तक आप कृष्ण जैसे न हो जाएं, कृष्ण-चैतन्य का जन्म साधना कर रहा था। उस झेन फकीर ने एलन वाट को पूछा कि तुम न हो आपके भीतर, तब तक आप न जान सकेंगे। क्या खोज रहे हो? ध्यान तुम कर रहे हो किस लिए? तो एलन वाट आइंस्टीन की थिअरी आफ रिलेटिविटी समझने के लिए ने कहा कि परमात्मा की तलाश के लिए। तो वह झेन फकीर हंसने | आइंस्टीन होना जरूरी नहीं है, न आइंस्टीन की बुद्धि चाहिए। कोई लगा। उसने कहा कि तुम बड़े अजीब काम में लगे हो। यह काम | | आवश्यकता नहीं है। एक दफा सिद्धांत जान लिया गया, वह ज्ञान पूरा हो नहीं पाएगा।
का हिस्सा हो गया। लेकिन धर्म के सत्य जाने भी जाते हैं, तो भी एलन वाट हैरान हुआ। उसने कहा कि हम तो सोचते थे कि कभी ज्ञान के हिस्से नहीं होते। वे सदा ही अज्ञेय बने रहते हैं। पूरब के लोग मानते हैं कि यही काम करने योग्य है। और तुम यह इसलिए विज्ञान आसुरी संपदा वाले व्यक्ति से राजी है। या हम क्या कह रहे हो! उसने कहा कि यह नहीं होगा; या तो तुम न ऐसा कह सकते हैं कि अभी जो विज्ञान है, वह आसुरी संपदा के बचोगे या परमात्मा न बचेगा। मगर मिलन नहीं हो सकता। या तो | | ही वर्तुल में काम कर रहा है। मनुष्य अगर और विकसित होगा, तो तुम खो जाओगे, तो परमात्मा बचेगा; या परमात्मा खो जाएगा, | हम दैवी संपदा वाले विज्ञान को भी विकसित करेंगे। तब विज्ञान तो तुम बचोगे।
एक नए आयाम में गति करेगा। ___ जो उसे जानते हैं, वे जानने में ही शून्य हो जाते हैं। जितना जानते और दूसरी बात में भी विज्ञान राजी है आसुरी संपदा वाले व्यक्ति हैं, उतने ही शून्य हो जाते हैं। इसलिए दावा करने को कोई बचता से। क्योंकि विज्ञान भी मानता है कि जगत में कोई प्रयोजन नहीं है,
| 353