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गीता दर्शन भाग-7
चूहे को पकड़ने वाला पिंजड़ा कभी चूहे के पीछे नहीं दौड़ता। चूहा खुद ही उसमें आता है, वह तो साफ है। पिंजड़े को कभी किसी ने चूहे के पीछे भागते तो देखा नहीं !
जिंदगी में जितने पिंजड़े हैं आपके, वे कोई आपके पीछे नहीं भागे । आप खुद ही उनकी तलाश किए हैं। और कोई कारण है, जिसकी वजह से पिंजड़ा अच्छा लगता है। कुछ सुरक्षा है उसमें भय वहां कम है, सहारा वहां ज्यादा है; खतरा वहां कम है, जोखम वहां बिलकुल नहीं है। एक बंधा हुआ जीवन है। एक परिधि है, उस परिधि के भीतर प्रकाश है, परिधि के बाहर अंधकार है। उस अंधकार में जाने में भय लगता है। फिर अपने ही पैरों पर खड़ा होना होगा।
स्वतंत्रता का अर्थ है, अपने ही पैरों पर खड़ा होना। और स्वतंत्रता का अर्थ है, अपने निर्णय खुद ही लेना ।
दुनिया में जो इतने उपद्रव चलते हैं, उन उपद्रवों के पीछे भी कारण यह है कि बहुत से लोग गुलामी खोजते हैं। सौ में निन्यानबे लोग ऐसे होते हैं कि बिना नेता के नहीं रह सकते। कोई नेता चाहिए। इस मुल्क में, सारी जमीन पर सब जगह नेता की बड़ी जरूरत है ! नेता की जरूरत क्या है ?
नेता की जरूरत यह है कि कुछ लोग खुद अपने पैरों से नहीं चल सकते। कोई आगे चल रहा हो, तो फिर उन्हें फिक्र नहीं है। फिर वह कहीं गड्ढे में ले जाए, और हमेशा नेता गड्ढों में ले जाते हैं। लेकिन पीछे चलने वाले को यह भरोसा रहता है कि आगे चलने वाला जानता है। वह जहां भी जा रहा है, ठीक है। और कम से कम इतना तो पक्का है कि जिम्मेवारी हमारी नहीं है। हम सिर्फ पीछे चल रहे हैं।
दूसरे महायुद्ध के बाद जर्मनी के जो नेता बच गए, हिटलर के साथी, उन पर मुकदमे चले। तो जिस आदमी ने लाखों लोगों को जलाया था, आकमंड, जिसने वहां भट्ठियां बनाईं, जिसमें हजारों लोग जलाए गए। कोई तीन करोड़ लोगों की हत्या का जिम्मा उसके ऊपर था, आकमंड के ऊपर।
पर आकमंड बहुत भला आदमी था। अपनी पत्नी को छोड़कर कभी किसी दूसरी स्त्री की तरफ देखा नहीं। रविवार को नियमित चर्च जाता था, बाइबिल का अध्ययन करता था। शराब की आदत नहीं, सिगरेट पीता नहीं था। रोज ब्रह्ममुहूर्त में उठता था। कोई बुराई नहीं थी। मांसाहारी नहीं था । हिटलर में भी यही खूबियां थीं; मांसाहार नहीं करता था, शराब नहीं पीता था, सिगरेट नहीं पीता था। भले आदमी के सब लक्षण उसमें थे।
आकमंड पर जब मुकदमा चला, तो लोग चकित थे कि इस आदमी ने कैसे तीन करोड़ लोगों की हत्या का इंतजाम किया ! जब | उससे पूछा गया, तो उसने कहा कि मैं सिर्फ अनुयायी हूं, और | आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है । जिम्मेवारी मुझ पर है ही नहीं। ऊपर से आज्ञा दी गई, मैंने पूरी की। मैं सिर्फ एक अनुयायी हूं, एक सिपाही हूं।
दुनिया में लोगों की कमजोरी है कि उनको नेता चाहिए। फिर नेता कहां ले जाता है, इसका भी कोई सवाल नहीं है। नेता को भी कुछ पता नहीं कि वह कहां जा रहा है। अंधे अंधों का नेतृत्व करते रहते हैं। बस, नेता और अनुयायी में इतना ही फर्क है कि अनुयायी को कोई चाहिए जो उसके आगे चले, और नेता को कोई चाहिए जो उसके पीछे चले।
नेता भी निर्भर है पीछे चलने वाले पर। अगर पीछे कोई न चले, तो नेता को लगता है कि भटक गया। जब तक लोग पीछे चलते रहते हैं, उसे लगता है, सब ठीक चल रहा है। अगर मैं ठीक न होता, तो इतने लोग पीछे कैसे होते? जैसे ही पीछे से लोग हटते | हैं, नेता का विश्वास चला जाता है। जैसे ही अनुयायी हट जाते हैं, | नेता की आत्म-आस्था खो जाती है। उसे लगता है, बस, कहीं भूल हो रही है। अन्यथा लोग मेरे पीछे चलते। इसलिए जो बहुत बुद्धिमान नेता हैं, उनकी तरकीब अलग है।
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने गधे पर भागा | जा रहा है। कुछ मित्रों ने उसे रोका और पूछा कि कहां जा रहे हो | इतनी तेजी से ? उसने कहा, मुझसे मत पूछो, गधे से पूछो। क्योंकि मैं इसको चलाने की कोशिश करता हूं, तो यह अड़चन डालता है; और चार आदमियों के सामने बाजार में भद्द होती है । मैं इसको कहता हूं, बाएं चलो। तो यह चलेगा नहीं; दाएं जाएगा । तो लोग समझते हैं, इसका गधा भी इसकी नहीं मानता ! तो मैंने एक तरकीब निकाली, गधा जहां जाता है, मैं उसके साथ ही जाता हूं। इससे इज्जत भी बनी रहती है और गधे को भी यह खयाल नहीं आता कि मालिक का विरोध कर सकता है।
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सभी नेताओं की कुशलता यही है। वे हमेशा देखते रहते हैं, अनुयायी कहां को जा रहा है, अनुयायी कहां जाना चाहता है, इसके पहले नेता मुड़ जाता है। तो ही नेता अनुयायी को बचा सकता है, नहीं तो अनुयायी भटक जाएगा, अलग हो जाएगा।
सब नेता अपने अनुयायियों के अनुयायी होते हैं, एक विसियस सर्किल है। तो नेता तापमान देखता रहता है कि अनुयायी क्या