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आसुरी संपदा
बोले थे कि यह सच है। झूठ का यह दूसरा स्वभाव है कि उसको आप पुनरुक्त करें, तो वह सच जैसा मालूम होने लगता है। और हर झूठ को और झूठों की जरूरत है।
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मैंने काशी में एक दुकान पर एक तख्ती लगी हुई देखी । घी की दुकान थी। उस पर तख्ती लगी है, असली घी की दुकान। नीचे लिखा है, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब का शुद्ध देशी घी यहां मिलता है। नकली सिद्ध करने वाले को पांच रुपया नकद इनाम और उसके नीचे लिखा है लाल अक्षरों कि इस तरह इनाम यहां कई बार बांटे जा चुके हैं।
ऐसी हमारे चित्त की दशा हो जाती है।
पाखंड का अर्थ है, आप कुछ हैं, कुछ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जो आप हैं, वह आपकी सब कोशिश के भीतर से भी झांकता रहेगा। आप उसे बिलकुल छिपा भी नहीं सकते। उसे बिलकुल मिटाया नहीं जा सकता; वह आपके भीतर छिपा है। इसलिए भला आपको न दिखाई पड़े, दूसरों को दिखाई पड़ता है।
अक्सर यह होता है कि आपके संबंध में दूसरे लोग जो कहते हैं, वह ज्यादा सही होता है; बजाय उसके, जो आप अपने संबंध में कहते हैं। नब्बे प्रतिशत मौका इस बात का है कि दूसरे जो आप में देख पाते हैं, वह आप नहीं देख पाते। क्योंकि आप अपने धोखे में इस भांति लीन हो गए हैं। लेकिन दूसरा आपको देखता है, तो आपकी जो झीनी पर्त है धोखे की उसके पीछे से आपका असली हिस्सा भी दिखाई पड़ता है।
पाखंडी व्यक्ति की कई परतें हो जाएंगी। जितना पाखंडी होगा, उतनी परतें हो जाएंगी। और इन सारी परतों का कष्ट है। और हर पर्त को बचाने के लिए नई परतें खड़ी करनी पड़ेंगी।
सत्य की एक सुविधा है, उसे याद रखने की जरूरत नहीं, उसको स्मरण रखने की जरूरत नहीं। झूठ को याद रखना पड़ता है। झूठ के लिए काफी कुशलता चाहिए। सत्य तो सीधा आदमी भी चला लेता है, क्योंकि याद रखने की कोई जरूरत नहीं । सत्य सत्य है। उससे दस साल बाद पूछेंगे, वह कह देगा। लेकिन झूठ आदमी को दस साल तक याद रखना पड़ेगा कि उसने एक झूठ बोला, फिर उसको सम्हालने के लिए कितने झूठ बोले ।
तो झूठ के लिए बड़ी स्मृति चाहिए। इसलिए छोटी-मोटी बुद्धि आदमी से झूठ नहीं चलता । झूठ चलाने के लिए काफी फैलाव चाहिए। इसलिए जितना आदमी शिक्षित हो, तार्किक हो, गणित का जानकार हो, उतना ज्यादा झूठ बोलने में कुशल हो सकता है।
दुनिया में जितनी शिक्षा बढ़ती है, उतना झूठ बढ़ता है इसीलिए, क्योंकि लोगों की स्मृति की कुशलता बढ़ती है। वे याद रख सकते हैं, वे मैनिपुलेट कर सकते हैं, वे नए झूठ गढ़ सकते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे से कह रहा है, तेरे झूठ को अब हम | बरदाश्त ज्यादा नहीं कर सकते । तू गजब के झूठ बोल रहा है! उस | लड़के ने कहा, मैं और झूठ ! नसरुद्दीन ने सिर्फ उसको दिखाने के लिए, मित्र एक साथ खड़ा था, तो उसको कहा कि अच्छा तू एक | झूठ अभी बोलकर बता, यह एक रुपया तुझे इनाम दूंगा । उसके | लड़के ने कहा, पांच रुपए कहा था !
वह कह रहा है, एक रुपया तुझे दूंगा, तू झूठ बोलकर बता । वह लड़का कह रहा है, पांच रुपया कहा है आपने झूठ बोलने की आगे कोई जरूरत नहीं है।
यह जो हमारी चित्त की स्थिति है, इस स्थिति में अगर आप परमात्मा को खोजने निकले, तो खोज असंभव है। अगर परमात्मा भी आपको खोजने निकले, तो भी खोज असंभव है। क्योंकि आपको खोजेगा कहां ? आप जहां-जहां दिखाई पड़ते हैं, वहां-वहां नहीं हैं। जहां आप हैं, उस जगह का आपको भी पता नहीं है। और किसी को आपने पता बताया नहीं ।
यहूदियों में एक सिद्धांत है कि आदमी तो परमात्मा को खोजेगा कैसे ? कमजोर, अज्ञानी ! यहूदी मानते हैं, परमात्मा ही आदमी को खोजता है । यहूदी फकीर बालशेम से किसी ने पूछा कि यह सिद्धांत | बड़ा अजीब है। अगर परमात्मा आदमी को खोजता है, तो अभी तक हमें खोज क्यों नहीं पाया? हम खोजते हैं, नहीं खोज पाते, यह | तो समझ में आता है। परमात्मा खोजता है, तो हम अभी तक क्यों भटक रहे हैं?
बालम ने कहा कि तुम्हें खोजे कहां ? तुम जहां भी बताते हो कि तुम हो। वहां पाए नहीं जाते। वहां जब तक वह पहुंचता है, तुम | कहीं और वह तुम्हारा पीछा कर रहा है। लेकिन तुम पारे तरह | हो; तुम छिटक-छिटक जाते हो। तुम्हारा कोई पता-ठिकाना नहीं है, कोई आइडेंटिटी नहीं है। तुम्हारी कोई पहचान नहीं है। तुम्हें कैसे पहचाना जाए ?
मैंने सुना है, एक बैंक में बड़े कैशियर की जगह खाली थी। बहुत-से लोगों ने इंटरव्यू दिए। बड़ी पोस्ट थी, बड़ी तनख्वाह थी पोस्ट की। और बड़े दायित्व का काम था, बहुत बड़ी बैंक थी। फिर | जब डायरेक्टर्स की बैठक हुई और उन्होंने मैनेजिंग डायरेक्टर को पूछा कि किस आदमी को चुना है? तो जिस आदमी को खड़ा
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