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________________ * आसुरी संपदा उनके साथ ही साथ दिव्यता खिलने लगी। आप छोड़े लक्षणों की | | पड़ेगा। बहिर्मुखी व्यक्ति कोई हो, तो उसे आचरण से शुरू करना चिंता। आप दिव्यता को साधने में लग जाएं। | पड़ेगा। दोनों संभावनाएं हैं। जो लोग लक्षणों को साधने चलते हैं, उन्हें तो आप लक्षण से शुरू करें या दिव्यता से; शुरू करें! दूसरी आचरण से अपने को बदलना शुरू करना पड़ता है। आचरण | | घटना अपने आप घट जाएगी। आचरण को बदलते-बदलते आप आपकी बहिर परिधि है। आप क्या करते हैं, उसमें बदलाहट करेंगे, | भीतर आने लगेंगे। क्योंकि आचरण की जड़ें तो भीतर हैं, सिर्फ तो लक्षण सध जाएंगे। जो लोग दिव्यता साधना चाहते हैं, उन्हें | शाखाएं बाहर हैं। अगर आप आचरण को बदलने लगे, तो आज अंतःकरण बदलने से शुरू करना पड़ता है। अंतःकरण आपका केंद्र | शाखाएं बदलेंगे, कल आप जड़ों को पकड़ लेंगे; जड़ें भीतर हैं। है। आप बदल जाएंगे, आपका आचरण बदल जाएगा। अगर आप अंतःकरण को बदलते हैं, तो अंतःकरण में जड़ें तो जहां से आपको सुगमता लगती हो, अगर आप बहिर्मुखी | | भीतर हैं, लेकिन शाखाएं बाहर हैं। आप जड़ों से शुरू करेंगे, यात्रा व्यक्ति हैं...। करते-करते आज नहीं कल बाहर पहुंच जाएंगे। मनसविद दो विभाजन करते हैं व्यक्तियों केः बहिर्मुखी, | ___ बाहर और भीतर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। न तो बाहर एक्सट्रोवर्ट; और अंतर्मुखी, इंट्रोवर्ट। अगर आप बहिर्मुखी व्यक्ति | अलग है भीतर से, न भीतर अलग है बाहर से। बाहर और भीतर हैं, कि आपको बाहर की चीजें ज्यादा दिखाई पड़ती हैं, तो आपके | एक का ही विस्तार है। कहीं से भी शुरू करें, दूसरा छोर प्रकट हो लिए उचित होगा कि आप लक्षण साधे। क्योंकि भीतर का आपको | जाएगा। लेकिन शुरू करें। जो शुरू नहीं करता...बहुत लोग हैं, कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता। अगर आपसे कोई कह भी दे कि आंख | जो सोचते ही रहते हैं। बंद करो और भीतर देखो; तो आप कहेंगे, भीतर क्या है देखने | आज ही एक युवक मेरे पास आया। उसने कहा, मैं सोचता हूं, को? देखने को तो सब बाहर है। अगर भीतर आंख भी बंद कर | सोचता हूं, और सोचने में इतना खो जाता हूं कि निर्णय तो कुछ कर लें, तो भी बाहर की ही याद आएगी। मित्र दिखाई पड़ेंगे, मकान | | ही नहीं पाता। और जो भी निर्णय करता हूं, उससे विपरीत भी मेरी दिखाई पड़ेंगे, घटनाएं दिखाई पड़ेंगी, वह सब बाहर है। समझ में आता है कि ठीक है। और जब तक तय न हो जाए, तब __वैज्ञानिक है, वह बहिर्मुखी है। क्षत्रिय है, वह बहिर्मुखी है। कवि | तक निर्णय कैसे करूं! और तय कुछ होता नहीं। और जितना है, चित्रकार है, वह अंतर्मुखी है। उसे सब भीतर है। सोचता हूं, उतना ही तय होना मुश्किल होता जाता है। प्रसिद्ध डच चित्रकार हुआ, वानगाग। उसके चित्र बिक नहीं ___ अगर आप ज्यादा सोचेंगे, तो कठिनाई खड़ी होगी। अगर आप सके, क्योंकि उसके चित्र बिलकुल समझ के बाहर थे। वह वृक्ष | | सोचते ही रहेंगे, तो धीरे-धीरे सारी ऊर्जा सोचने में ही व्यतीत हो बनाएगा, तो इतने बड़े, कि आकाश तक चले जाएं। चांद वगैरह जाएगी। उसका कोई कृत्य नहीं बन पाएगा। और ध्यान रहे, जीवन बनाएगा, तो छोटे-छोटे लटका देगा, और वृक्ष चांद के ऊपर चले | की संपदा कृत्य से उपलब्ध होती है, सिर्फ विचार से नहीं! जा रहे हैं! वृक्षों को ऐसे रंग देगा, जैसे वृक्षों में होते ही नहीं रंग। | विचार सपनों की भांति हैं। जैसे समुद्र पर झाग और फेन उठती वृक्ष हरे हैं, उसके वृक्ष लाल भी हो सकते हैं। है, ऐसे चेतना की झाग और फेन की भांति विचार है। उनका कोई तो लोग कहते, यह तुम क्या करते हो। वह कहता, जब मैं आंख | मूल्य नहीं है। समुद्र की लहर पर लगता है, जैसे शिखर आ रहा है बंद करता हूं, तो जो मुझे दिखाई पड़ता है, वह मैं...। क्योंकि जब | | फेन का; लगता है, हाथ में ले लेंगे। लेकिन हाथ में पकड़ते हैं, तो भी मैं देखता हूं, तो मुझे वृक्ष पृथ्वी की आकांक्षाएं मालूम पड़ते हैं, | पानी के बबूले फूट जाते हैं, कुछ हाथ आता नहीं। ऐसा ही फेन और आकाश को छूने की आकांक्षाएं। जब भी मैं आंख बंद करता हूं, तो झाग है विचार आपकी चेतना का। वह लहर पर दूर से बड़ा कीमती मैं देखता हूं, पृथ्वी कोशिश कर रही है वृक्षों के द्वारा आकाश को | | दिखाई पड़ता है। सूरज की किरणों में बड़ी चमक मालूम होती है। छूने की, इसलिए मेरे वृक्ष आकाश तक चले जाते हैं। जो काम पृथ्वी घर में तिजोरी में सम्हालकर रखने जैसा लगता है। लेकिन हाथ में नहीं कर पाती, वह मैं करता हूं। पर वृक्षों को मैं ऐसे ही देखता हूं। | लेते ही पता चलता है, वहां कुछ भी नहीं है, पानी के बबूले हैं। __यह एक अंतर्मुखी व्यक्ति की, जिसका जगत भीतर है...। यह इस झाग से थोड़ा नीचे उतरना जरूरी है। उस लहर को पकड़ना अंतर्मुखी व्यक्ति अगर कोई हो, तो उसे दिव्यता से शुरू करना | | जरूरी है जिस पर यह झाग है। और लहर के नीचे छिपे सागर को 323
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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