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* गीता दर्शन भाग-7*
साधना के माध्यम से हल करने में क्या मौलिक भिन्नता है?
अर्जुन उवाच कैलिङ्गस्त्रीनगुणानेतानतीतो भवति प्रभो। किमाचारः कथं चैतांस्त्रीनगुणानतिवर्तते ।। २१ ।।
श्रीभगवानुवाच प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव । न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति । । २२ ।।
उदासीनवदासीनो गुणैयों न विचाल्यते । गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते ।। २३ ।।। अर्जुन ने पूछा कि हे पुरुषोत्तम, इन तीनों गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त होता है? और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है? तथा हे प्रभो, मनुष्य
किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है? इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर श्रीकृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन, जो पुरुष सत्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर बुरा समझता है और न
निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है। तथा जो साक्षी के सदृश स्थित हआ गणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता है और गुण ही गुणों में बर्तते हैं, ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहता है एवं उस स्थिति से
चलायमान नहीं होता है।
17 श्न महत्वपूर्ण है और बहुत गहरे से समझने की प्र जरूरत है। इसलिए महत्वपूर्ण है कि पश्चिम में
वैज्ञानिक उन विधियों को खोज लिए हैं, जिनसे मनुष्य | का रासायनिक परिवर्तन हो सकता है, जिनसे मनुष्य के शारीरिक
गुणधर्म बदले जा सकते हैं। और निश्चित ही, उसका आचरण भिन्न हो जाएगा।
आपके भीतर क्रोध का जो विषाक्त रासायनिक द्रव्य है, वह अलग किया जा सकता है। उसके विपरीत तत्व आपके शरीर में डाले जा सकते हैं, जो आपके आचरण को सौम्य और शांत बना | देंगे। लेकिन ध्यान रखें, आचरण को, आपको नहीं।
आपकी कामवासना को बिना किसी साधना के, मात्र शारीरिक | परिवर्तन से क्षीण किया जा सकता है; नष्ट भी किया जा सकता है। | वासना जगाई भी जा सकती है, मिटाई भी जा सकती है। | यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है कि पश्चिम में अब हमारे पास | साधन उपलब्ध हैं पहली दफा मनुष्यता के इतिहास में, जब हम | आदमी को बिना साधना में उतारे भी आचरण की दृष्टि से बदल | सकते हैं। लेकिन यह बदलाहट ऊपरी होगी, और इस बदलाहट से कोई आत्मिक उत्थान नहीं होगा। बल्कि आत्मिक उत्थान की सारी संभावना ही नष्ट हो जाएगी। उत्थान तो होगा ही नहीं, जिन परिस्थितियों के कारण उत्थान हो सकता था, वे परिस्थितियां भी मिट जाएंगी। ___ आपके भीतर क्रोध दो घटनाओं पर निर्भर है। एक तो आपके शरीर में क्रोध के परमाणु चाहिए, हार्मोन चाहिए, रस चाहिए। और दूसरा, इन रसों के साथ चेतना को जोड़ने का तादात्म्य और भ्रांति चाहिए। इन दो बातों पर निर्भर है।
कामवासना के लिए आपके शरीर में काम के तत्व चाहिए, और उन काम के तत्वों से जुड़ने की आकांक्षा चाहिए, एक होने की आकांक्षा चाहिए। अगर काम के तत्व भीतर न हों, तो आप जुड़ना भी चाहें तो भी जुड़ न सकेंगे; कामवासना में उतरना चाहें, तो भी | उतर न सकेंगे। इसलिए आचरण आपका ब्रह्मचारी जैसा हो | जाएगा। यद्यपि वह ब्रह्मचर्य नपुंसकता का दूसरा नाम होगा। लेकिन भीतर कोई क्रांति घटित न होगी।
पहले प्रश्न। पहला प्रश्नः साक्षी, द्रष्टा, चैतन्य सदा ही अलग कुंवारा और अनबंधा है। और सारी जीवन-लीला गुणों का ही स्वयं में वर्तन है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति से सत्व, रज, तम के गुणों को वैज्ञानिक या रासायनिक ढंग से शांत कर दिया जाए या व्यक्ति को सात्विक बना दिया जाए, तो क्या वह उस हमेशा से मुक्त साक्षी को उपलब्ध हो जाएगा? यदि साक्षी सदा ही मुक्त एवं उपस्थित है, तो त्रिगुणों को रासायनिक ढंग से बदल देने पर वह क्या प्रकट न हो जाएगा? क्या व्यक्ति तब धार्मिक नहीं हो जाएगा? त्रिगुणों से उत्पन्न समस्या को रासायनिक ढंग से हल करने में या
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