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त्रिगणात्मक जीवन के पार ... 17
कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को गीता क्यों नहीं कही? / शास्त्र और परंपरा का मृत बोझ / विचारक और साधक में फर्क / युधिष्ठिर अस्तित्वगतरूप से धार्मिक नहीं हैं / नियमानुसार चलना / शास्त्र और परंपरा से मुक्त व्यक्ति ही कृष्ण से जुड़ सकता है / अर्जुन का अंतद्वंद्व / जीवन-मरण का प्रश्न / अर्जन जीवंत है / मृत्यु की सघनता में जीवन की जिज्ञासा प्रगाढ़ / अर्जन के प्रश्न सारी मनुष्यता के प्रश्न हैं / अर्जुन की चिंतना मौलिक है / सदा चल रहा महाभारत / सारी मनुष्यता एक परिवार है / प्रतिष्ठित लोगों का मुरदापन / क्या रूपांतरण के लिए युद्ध और मृत्यु की पार्श्वभूमि जरूरी है? / मृत्यु की चुनौती में प्रश्न का जन्म / मृत्यु का बोध और अमृत की खोज / धर्म है मृत्यु के पार जाने का उपाय / क्या ज्ञान में भी श्रेणी-क्रम है? / व्यक्ति भिन्न भिन्न हैं / जो विधि आपको पहुंचा दे, वही श्रेष्ठतम / कृष्ण सभी मार्गों को परम श्रेष्ठ कहते हैं / किसी एक दृष्टि को पूरी गीता पर थोपना गलत है । रामानुज की भक्ति / शंकर का ज्ञान / तिलक-गांधी-विनोबा का कर्म / कृष्ण के विराट हृदय में सब समा जाता है / सब कुछ ठीक है-ज्ञानी कह सकता है या परम मूढ़ / कृष्ण जैसे व्यक्ति अरस्तू के तर्क से नहीं जीते / किसी एक मार्ग पर बोलते समय कृष्ण उसमें तल्लीन हो जाते हैं / संसार माया है, स्वप्न है, तो गुरु द्वारा शिष्यों पर श्रम करना भी क्या सपना है? / निश्चित ही / सपने में भोगा गया दुख भी सच है / दुख के सपनों से तुम्हें जगाना जरूरी है / झूठी चीजों से भी सत्यभोग भोगना / रस्सी को सांप समझने पर हार्ट फेल का हो सकना / गुरु करुणा करते हैं-श्रम नहीं / तीन मौलिक तत्वों से बना जीवन / तमस अर्थात अगति, मृत्यु और विश्राम का तत्व / चलना भी जरूरी, रुकना भी जरूरी / रजस अर्थात शक्ति, गति, जीवन / बच्चों की चंचलता रजोगण के कारण / जवानी का सौंदर्य तम और रज के समान तनाव के कारण / सत्व है-संतुलन, संयम, संगीत, सौंदर्य / विकास का दृश्य शिखर-सत्व / बुद्धत्व गुणातीत है / तामसी बुद्ध पुरुष को बिलकुल ही पहचान न सकेगा / राजसी को बुद्ध आलसी, पलायनवादी और कमजोर लगेंगे / बुद्ध के पास केवल सात्विक लोग रुक सकते हैं / त्रिगुण की खोज की-सांख्य प्रणाली ने / विज्ञान के भी तीन तत्व–इलेक्ट्रॉन, पाजिट्रॉन, न्यूट्रॉन / सत्व, रज और तम के पौराणिक प्रतीकः विष्णु, ब्रह्मा और शिव / तमोगुणी मादक द्रव्य / पश्चिम की रजोगुणी विक्षिप्तता / मादक द्रव्यों की शरण / मूर्छा है तम / दौड़ है रज / और सत्व है लयबद्धता, समता / साधु है सत्वगुणी और संत है गुणातीत–निर्गण / प्रकृति है त्रिगुणा और परमात्मा है निर्गुण / सत्व में खतरा है-साधुता के अभिमान का / सत्व स्वर्ग तक ले जाता है-मोक्ष तक नहीं / शरीर और मन त्रिगुणमयी प्रकृति से मिलता है। चेतना परमात्मा से आती है / तीनों गुणों के कारण ही चेतना शरीर में बंधती है / सत्व गुण से उत्पन्न-सुख में आसक्ति और ज्ञान का अभिमान / दुख से तादात्म्य तोड़ना सरल है / सुख से तादात्म्य तोड़ना बहुत कठिन है / दुख साधना बन जाए तो तपश्चर्या / दुखवादी और तपस्वी का अंतर / शरीर से तादात्म्य तोड़ने के प्रयोग / तीनों गणों के बंधन से मुक्त हो जाना परम ज्ञान है।
हे निष्पाप अर्जन ... 33
परम आनंद की मंजिल पर पहुंचने के पहले क्या यात्रा में भी आनंद हो सकता है? / मन चीजों को तोड़कर देखता है / बिना मार्ग पर चले, मंजिल पाने की कोशिश / मार्ग है गर्भ और मंजिल है जन्म / आनंद प्रतिपल बढ़ता जाएगा / मार्ग की फिक्र करें / दूरी स्थान की नहीं समग्रता के अभाव की है / अभी और यहीं जीएं / धीरे-धीरे आनंद को झेलना सीखना / साधना झेलने की तैयारी भी है / सुख-दुख से विचलित न होने का अभ्यास / मंजिल को पहचानने के लिए आंखों को तैयार करना / परमात्मा है-दूर से दूर और पास से पास / मंजिल दूर है हमारे कारण / हमारी योग्यता ही दूरी है / विराट को भोगने के लिए विराट हृदय चाहिए / तेरह अध्यायों को सुनकर भी अर्जुन के मन में प्रश्न और शंकाएं क्यों उठ रही हैं? / अर्जुन का सहयोग पूरा नहीं हुआ है / गुरु की कृपा और शिष्य के राजीपन का संयोग / अर्जुन आत्म-रक्षा में लगा हुआ है / गुरु शिष्य के मन को मारना चाहता है / बचने