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________________ 0 कौन है आंख वाला आप कोशिश करके देखें। अगर आपको डर लगता हो दूसरों __ आपका मन चलता ही रहता है। आप चाहें भी रोकना, तो रुकता का, तो किसी दिन अकेले में ही पहले करके देख लें। आपको पता | नहीं। कोशिश करके देखें। रोकना चाहेंगे, तो और भी नहीं रुकेगा। चल जाएगा कि पागल कौन है। लेकिन राहत भी बहुत मिलेगी। | और जोर से चलेगा। और सिद्ध करके बता देगा कि तुम मालिक अगर इतनी हिम्मत कर सकें मित्रों के साथ, तो यह खेल बड़े ध्यान | | नहीं हो, मालिक मैं हूं। छोटी-सी कोई बात रोकने की कोशिश का है; बहुत राहत मिलेगी। क्योंकि भीतर का बहुत-सा कचरा | | करें। और वही-वही बात बार-बार मन में आनी शुरू हो जाएगी। बाहर निकल जाएगा, और एक हल्कापन आ जाएगा और पहली - लोग बैठकर राम का स्मरण करते हैं। राम का स्मरण करते हैं, दफा यह अनभव होगा कि मेरी असली हालत क्या है। मैं अपने नहीं आता। कुछ और-और आता है, कुछ दूसरी बातें आती हैं। को बुद्धिमान समझ रहा हूं; बड़ा सफल समझ रहा हूं; बड़े पदों पर एक महिला मेरे पास आई, वह कहने लगी कि मैं राम की भक्त पहुंच गया हूं; धन कमा लिया है; बड़ा नाम है; इज्जत है; और | हूं। बहुत स्मरण करती हूं, लेकिन वह नाम छूट-छूट जाता है और भीतर यह पागल बैठा है! और इस पागल से छुटकारा पाने का नाम | दूसरी चीजें आ जाती हैं! अध्यात्म है। ___ मैंने कहा कि तू एक काम कर। कसम खा ले कि राम का नाम मेहरबाबा उन्नीस सौ छत्तीस में अमेरिका में थे। और एक व्यक्ति कभी न लूंगी। फिर देख। उसने कहा, आप क्या कह रहे हैं! मैंने को उनके पास लाया गया। उस व्यक्ति को दूसरों के विचार पढ़ने | | कहा, तू कसम खाकर देख। और हर तरह से कोशिश करना कि की कुशलता उपलब्ध थी। उसने अनेक लोगों के विचार पढ़े थे। | राम का नाम भर भीतर न आने पाए। वह किसी भी व्यक्ति के सामने आंख बंद करके बैठ जाता था; और | __वह तीसरे दिन मेरे पास आई। उसने कहा कि आप मेरा दिमाग वह व्यक्ति जो भीतर सोच रहा होता, उसे बोलना शुरू कर देता। | खराब करवा दोगे। चौबीस घंटे सिवाय राम के और कुछ आ ही - मेहरबाबा वर्षों से मौन थे। तो उनके भक्तों को, मित्रों को | | नहीं रहा है। और मैं कोशिश में लगी हूं कि राम का नाम न आए, जिज्ञासा और कुतूहल हुआ कि वह जो आदमी वर्षों से मौन है, वह | | और राम का नाम आ रहा है! भी भीतर तो कुछ सोचता होगा! तो इस आदमी को लाया जाए, | __मन सिद्ध करता है हमेशा कि आप मालिक नहीं हैं, वह मालिक क्योंकि वे तो कुछ बोलते नहीं। है। और जब तक मन मालिक है, आप पागल हैं। जिस दिन आप तो उस आदमी को लाया गया। वह मेहरबाबा के सामने आंख | | मालिक हों, उस दिन स्वस्थ हुए, स्वयं में स्थित हुए। बंद करके, बड़ी उसने मेहनत की। पसीना-पसीना हो गया। फिर अध्यात्म से गुजरे बिना कोई भी स्वस्थ नहीं होता है। उसने कहा कि लेकिन बड़ी मुसीबत है। यह आदमी कुछ सोचता ही नहीं। मैं बताऊं भी तो क्या बताऊं! मैं बोलं, तो भी क्या बोलू! मैं आंख बंद करता हूं और जैसे मैं एक दीवाल के सामने हं, जहां एक मित्र ने पूछा है कि ऐसा कहा जाता है कि कोई विचार नहीं है। भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। यदि इस निर्विचार अवस्था का नाम विमुक्तता है। जब तक भीतर यह बात सच है, तो हमारा सारा जीवन उनकी इच्छा विचार चल रहा है, वह पागल है, वह पागलपन है। यह ऐसा ही | के अनुसार ही चलता है। तो फिर हमें जो भले-बुरे समझिए कि आप बैठे-बैठे दोनों टांग चलाते रहें यहां। तो आपको विचार आते हैं, अच्छे-बुरे काम बनते हैं. वह भी पड़ोसी आदमी कहेगा, बंद करिए टांग चलाना! आपका दिमाग उनकी ही इच्छा के अनुसार होता है! फिर तो साधना ठीक है? आप टांगें क्यों चला रहे हैं? टांग को चलाने की जरूरत | का भी क्या प्रयोजन है? फिर तो स्वयं को बदलने है, जब कोई चल रहा हो रास्ते पर। बैठकर टांग क्यों चला रहे हैं? | का भी क्या अर्थ है? मन की भी तब जरूरत है, जब कोई सवाल सामने हो, उसको हल करना हो, तो मन चलाएं। लेकिन न कोई सवाल है, न कोई बात सामने है। बैठे हैं, और मन की टांगें चल रही हैं। यह 27 गर यह बात समझ में आ गई, तो साधना का फिर कोई विक्षिप्तता है; यह पागलपन है। 21 प्रयोजन नहीं है। साधना शुरू हो गई। अगर इतनी ही 353
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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