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________________ ॐ पुरुष में थिरता के चार मार्ग ® बहुत मार्ग खोजते हैं। घटना तो एक ही घटानी है। और वह घटना सिर्फ इतनी ही है। कि आप साक्षी हो जाएं। आप जागकर देख लें जगत को। मूर्छा टूट जाए। आपको यह खयाल में आ जाए कि मैं जानने वाला है। और जो भी में जान रहा है, वह में नहीं है। यह इतनी-सी घटना घट जाए. इसके लिए सारा आयोजन है। इसके लिए इतने उपनिषद हैं, इतने वेद हैं, इतनी बाइबिल, कुरान, गीता, और सब है। बुद्ध हैं, महावीर, जरथुस्त्र और मोहम्मद, और सारे लोग हैं। लेकिन वे कह सभी एक बात रहे हैं, बहुत-बहुत ढंगों से, बहुत-बहुत व्यवस्थाओं से। वह एक बात मूल्यवान है। लेकिन आपको अगर वह बात सीधी कह दी जाए, तो आपको सुनाई ही नहीं पड़ेगी। और मूल्य तो बिलकुल पता नहीं चलेगा। आपको बहुत तरह से प्रलोभित करना होता है। जैसे मां छोटे बच्चे को प्रलोभित करती है, भोजन के लिए राजी करती है। राजी करना है भोजन के लिए, प्रलोभन बहुत तरह के देती है। बहुत तरह की बातें, बहुत तरह की कहानियां गढ़ती है। और तब बच्चे को राजी कर लेती है। कल वह दूसरे तरह की कहानियां गढ़ेगी, परसों तीसरे तरह की कहानियां गढ़ेगी। लेकिन प्रयोजन एक है कि वह बच्चा राजी हो जाए भोजन के लिए। कृष्ण का प्रयोजन एक है। वे अर्जुन को राजी करना चाहते हैं उस परम क्रांति के लिए। इसलिए सब तरह की बातें करते हैं और फिर मूल स्वर पर लौट आते हैं। और फिर वे वही दोहराते हैं। इसके अंत में भी उन्होंने वही दोहराया है। __ हे अर्जुन, जो कुछ भी स्थावर-जंगम वस्तु उत्पन्न होती है, उस संपूर्ण को तू क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न हुई जान। वह जो भीतर क्षेत्रज्ञ बैठा है और बाहर क्षेत्र फैला है, उन दोनों के संयोग से ही सारे मन का जगत है। सारे सुख, सारे दुख; प्रीतिअप्रीति. सौंदर्य-करूपता, अच्छा-बरा. सफलता-असफलता. यश-अपयश, वे सब इन दो के जोड़ हैं। और इन दो के जोड़ में वह पुरुष ही अपनी भावना से जुड़ता है। प्रकृति के पास कोई भावना नहीं है। तू अपनी भावना खींच ले, जोड़ टूट जाएगा। तू भावना करना बंद कर दे, परम मुक्ति तेरी है। पांच मिनट रुकेंगे। कोई बीच से उठे नहीं। कीर्तन पूरा हो जाए, तभी उठे।
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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