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________________ और संपादित कर पृथक से प्रकाशित किया जाए तो अटूट भाव से संस्कृति से जुड़े, गंभीर चिंतन केंद्रित और जीवन के गहन निष्कर्षात्मक शिखरों तक आरोहण कराने वाले ये विचार-रागविह्वल ललित निबंध हिंदी-साहित्य के भंगार बन जाएंगे। _ 'गीता-दर्शन' के बारहवें अध्याय के ग्यारहवें-बारहवें श्लोक के विश्लेषण-प्रवचन में उठे 'बुद्धि, भाव और कर्म' विषयक प्रश्न के उत्तर में जो कुछ कहा गया है वह बहुत दूर तक ललित निबंध के रस-गंध से ओत-प्रोत है। विशेषकर ओशो ने इस स्थल पर जो आकर्षण के तीन तलों, काम, प्रेम और भक्ति का वर्णन किया है वह मनोवैज्ञानिक निष्कर्षों से पूर्ण और गीता के भावलोक की स्वच्छंद परिक्रमा के रूप में कसी हुई रम्य रचना बन गया है। यही क्यों? पूरी पुस्तक में ऐसे स्थल बिखरे हैं तथा ओशो के अन्य विशाल साहित्य की यही स्थिति है। विशेषकर उन्होंने मीरा, सहजो बाई, कबीर, दादू और भीखा आदि पर जो कुछ कहा है वह लालित्यपूर्ण विचार-चिंतन की गहराइयों का प्रमाण है और ओशो को जादुई आकर्षणों से पूर्ण विशिष्ट शैलीकार के रूप में प्रतिष्ठित करता है। 'गीता-दर्शन' में ओशो का यह विशिष्ट शैलीकार अपनी संपूर्ण टटकाहट के साथ प्रतिष्ठित है। ___ओशो गीता को मात्र गीता के अर्थ में देखने के साथ-साथ उसे समग्र आधुनिक जीवन के व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में, दूर-दूर की खोज के साथ, पूरब-पश्चिम, विज्ञान-धर्म-राजनीति आदि से जोड़ते हुए, बटैंड रसेल, आइंस्टीन, मार्क्स, फ्रायड, जीसस, लाओत्से, मोहम्मद और गांधी आदि के साथ, भारतीय, चीनी, अरबी और यूनानी आदि विश्व-मनीषा के साथ, सबके मंथनपूर्वक साधिकार, सबके सहित, जीवंत साहित्य की भांति प्रस्तुत करते हैं। इस साहित्य का लक्ष्य गीता-ज्ञान के साथ-साथ पाठकों और श्रोताओं के भीतर एक बेचैनी, एक विशेष प्रकार की अकुलाहट-छटपटाहट पैदा करना प्रतीत होता है। उन्हें जगाने-जागरूक करने के लिए एक-एक शब्द में मंत्र फूंक कर रचनाकार जैसे चोट करता है। इन्हीं सब कारणों से वर्तमान के साथ-साथ अगली शताब्दियों के इस प्रेरक प्रज्ञापुरुष की ओर बुद्धिजीवी समाज का आकर्षण बढ़ता जाता है। विवेकीराय विवेकीराय मार्ग बड़ी बाग, गाज़ीपुर-233001 डाक्टर विवेकीराय बहुआयामी साहित्यिक प्रतिभा से संपन्न कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, निबंध की विविध विधाओं के यशस्वी लेखक, समर्थ समीक्षक और एक कुशल सम्पादक हैं। वे गांव और जनपद से लेकर राजधानियों तक अपनी सामाजिक और साहित्यिक सेवाओं के स्तर पर जुड़े हुए हैं। वे एक प्रखर विचारक और सृजनधर्मी लेखक हैं एवं शोध और समीक्षा की गहन प्रवृत्ति, मूल्यांकन की निष्पक्षता तथा रहस्य-बोध से सिक्त हैं।
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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