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________________ 3 गीता दर्शन भाग-500 मंदिर से। कभी कोई उत्सव आ गया धर्म का, मना लिया। तो धर्म एक सामाजिक कृत्य होकर रह जाता है। __इससे जागना पड़े। इससे जागना पड़े, तो हम किसी दिन जान पाएं उस प्रकाश को, उस अमृत को, उस आशीर्वाद को, उस लोक को, जिसकी कृष्ण जैसे लोग चर्चा करते हैं। वह हमारे बिलकुल निकट है, बस जरा ही मुड़ने की बात है। और हम अपने इस तथाकथित बंधे हुए मन से जरा भी हिल सकें, तो वह किनारे ही है हमारे। एक छलांग में वह हमें उपलब्ध हो जाए। लेकिन हम इस मन को ही पकड़कर बैठे रहें, तो शब्दों की घंटियां बजती रहेंगी और अनुभव की झूठी लार टपकती रहेगी, कहीं उसका कोई संबंध नहीं है। किसी ने कहा, ईश्वर; किसी ने कहा, गीता; और हमारे भीतर जरूर कोई घंटी बज जाती है। ___ मैं इधर हैरान हुआ। अगर मैं गीता के नाम से वही बात कहूं, तो घंटी बज जाती है आपके भीतर। और अगर गीता का नाम न लं और वही बात कहूं, कोई घंटी नहीं बजती! यही बात मैं कुरान का नाम लेकर कहं, मुसलमान के भीतर घंटी बजने लगती है। यही बात गीता का नाम लेकर कहूं, घंटी बंद हो जाती है! आश्चर्यजनक है। बहुत आश्चर्यजनक है! ऐसा बंधा हुआ, ऐसा तोते जैसा मन, यंत्र जैसा मन, धार्मिक नहीं हो सकता। इस मन को तोड़ना, इस मन को रोकना, इस मन के पार होना जरूरी है। आज इतना ही। लेकिन कोई उठेगा नहीं। पांच मिनट बैठे। संन्यासी कीर्तन करेंगे। राम-नाम का प्रसाद लें, और फिर जाएं।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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