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________________ गीता दर्शन भाग-500 परमात्मा के लिए तो हम उसके ही भीतर हैं, लेकिन वह हमारे से। रास्ते से गुजर रहा था नाचता हुआ। अंग्रेजों की छावनी पड़ी भीतर नहीं है। जब मैं कहता हूं, वह हमारे भीतर नहीं है, तो यह थी, गदर का मौसम था, हवा खराब थी। अंग्रेजों के लिए संकट कोई अस्तित्वगत वक्तव्य नहीं है। जब मैं कहता हूं, वह हमारे । का समय था। उन्होंने पकड़ लिया उसे। उससे पूछा, कौन हो? भीतर नहीं है, तो इसका कल इतना मतलब हआ कि वह तो हमारे संदिग्ध पाया. क्योंकिन वह आदमी बोले। नाचे जरूर, हंसे जरूर: भीतर है, लेकिन हमें उसके भीतर होने का कोई भी पता नहीं है। बोले नहीं! तो समझा कि कोई जासूस है और छावनी के इर्द-गर्द यह ज्ञानगत वक्तव्य है। कुछ पता लगाने आया है। तो उसकी छाती में भाला मार दिया। आपके खीसे में हीरा रखा है। आपको पता नहीं है। आप सड़क उस संन्यासी ने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि मरते वक्त एक बार पर भीख मांग रहे हैं। हीरे के होने और न होने में कोई फर्क नहीं है। बोलूंगा। छाती में भाला लगा, तो बस एक मौका था उसे जीवन में न होता, तो भी आप भीख मांगते; है, तो भी भीख मांग रहे हैं। बोलने का। उसने जो शब्द बोले, वह तत्व से जानता होगा, आप भिखारी हैं। हीरा आपकी जेब में पड़ा है। हीरा है या नहीं है, इसलिए बोले। . बराबर है। उसके होने, न होने का कोई भी बाजार के मूल्य में फर्क | उसने उपनिषद के महावचन का उपयोग किया, तत्वमसि नहीं है। श्वेतकेतु। उसने कहा, दैट आर्ट दाउ श्वेतकेतु। उस अंग्रेज से, लेकिन आपका हाथ खीसे में जाए। कोई आपको खीसे का पता जिसने छाती में भाला भोंका, उससे कहा कि तुम भी परमात्मा हो, बता दे। आप हाथ भीतर डालें। हीरा आपको मिल जाए। तो आप श्वेतकेतु। और गिर गया। यही कहेंगे कि हीरा मुझे मिला। लेकिन ज्यादा उचित होगा कहना मृत्यु के क्षण में जब कोई छुरा भोंक रहा हो छाती में या भाला कि हीरा मेरे पास था; मुझे मिला ही हुआ था; सिर्फ मुझे पता नहीं | | भोंक रहा हो, तब भी उसमें परमात्मा को देखने की क्षमता तत्व से था। मुझे स्मरण आया। मुझे पहचान आई। मैंने जाना कि हीरा है। आती है, विश्वास से नहीं आती। मान लेने से नहीं आती, समझ कृष्ण का अर्थ है यहां कि जो पुरुष मेरी योगशक्ति को तत्व से लेने से नहीं आती, जान लेने से आती है। जानता है, वह निश्चित हो जाता है। वह जानता है कि परमात्मा में तो एक तो ईश्वर की धारणा है, जो हम समझ लेते हैं बुद्धिगत मैं स्थापित ही हूं, मिला ही हुआ हूं। उसका हाथ मेरे हाथ तक आ रूप से, इंटलेक्चुअली। उसका बहुत मूल्य नहीं है। एक ईश्वर की ही गया है। सिर्फ मुझे मेरे हाथ को बांधना है, सिर्फ मुझे मेरे हाथ प्रतीति है, जो हम संवेदना से जानते हैं, सेंसिटिवली। इन थोड़े दो को उसके हाथ में दे देना है। हाथ उसका दूर नहीं है। उसके हृदय शब्दों को ठीक से समझ लें-इंटलेक्चुअली, बुद्धि से; संवेदना की धड़कन मेरे हृदय की ही धड़कन है। मेरे हृदय की धड़कन ही से, सेंसिटिवली, प्रतीति से। उसके हृदय की धड़कन भी है। हवाएं छूती हैं शरीर को, तो अनुभव होता है, वही छू रहा है। ऐसा जो तत्व से जानता है! आंख उठती है सूरज की तरफ, तो अनुभव होता है, उसी की रोशनी यह तत्व शब्द का बहुत प्रयोग कृष्ण जगह-जगह करते हैं, सिर्फ | है। फूल खिलता है, तो लगता है, उसी की सुगंध है। कोई सुंदर एक फासला बनाने को कि सुनकर जान लेने से नहीं कुछ होगा। चेहरा दिखाई पड़ता है, तो लगता है, उसी का सौंदर्य है। रोएं-रोएं मैंने आपसे कहा, आपने सुन लिया। एक अर्थ में आपने जान | | से, उठते-बैठते, सोते-चलते, जो भी संवेदना होती है, सभी लिया। आप मान सकते हैं कि ठीक है। मान लिया। लेकिन इससे | संवेदनाओं में उसी का संदेश प्रतीत होता है। तो धीरे-धीरे जीवन कुछ भी न होगा। आपकी जिंदगी तो वैसी ही चलती रहेगी, जैसी | के सब द्वार उसी की खबर लाने लगते हैं। और भीतर एक तब चलती थी, जब आपने यह नहीं जाना था। और जिंदगी में कोई | क्रिस्टलाइजेशन, एक तत्व संगृहीत होता है। और भीतर एक केंद्र, फर्क न पड़ेगा। आदमी क्या मानता है, इससे उसके धार्मिक होने एक सेंटरिंग घटित होती है। का कोई पता नहीं चलता। आदमी कैसा जीता है, इससे उसके ___ उस जानने को, कृष्ण तत्व से जानना कहते हैं। उस जानने को, धार्मिक होने का पता चलता है। तत्व से जानना कहते हैं। अठारह सौ सत्तावन में एक मौन संन्यासी को अंग्रेजों ने छाती | क्या करें इसके लिए? हमारी तो संवेदना बोथली हो गई है, मर में भाला भोंक दिया था, भूल से। नग्न संन्यासी था, मौन था वर्षों गई है। किसी का हाथ भी छूते हैं, तो कुछ पता नहीं चलता। चमड़ी 40
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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