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________________ 3 गीता दर्शन भाग-58 एतां विभूति योगं च मम यो वेत्ति तत्वतः। | किनारे पड़ा है। लेकिन वही पत्थर जब एक सुंदर मूर्ति बन जाता है, सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः।।७।। | तब उससे प्रकट होना उसे आसान हो जाता है। ईश्वर तो कण-कण अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्व प्रवर्तते । में है, लेकिन उसके दो रूप हैं। छिपा हुआ रूप, गुप्त रूप, जब वह इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ।।८।। | दिखाई नहीं पड़ता और अनुभव में नहीं आता; और उसका प्रकट और जो पुरुष इस मेरी परम ऐश्वर्यपूर्ण विभूति को और | रूप, जब उसकी अभिव्यक्ति होती है और वह दिखाई पड़ता है। योगशक्ति को तत्व से जानता है, वह पुरुष निश्चल ध्यान ऐश्वर्य का अर्थ है, जीवन के परम रहस्य की अभिव्यक्ति, योग द्वारा मेरे में ही एकीभाव से स्थित होता है, इसमें कुछ | उसका एक्सप्रेशन, उसकी अभिव्यक्ति की आखिरी सीमा।. भी संशय नहीं है। कृष्ण ने इस सूत्र में कहा है कि जो पुरुष मेरी परम ऐश्वर्यपूर्ण में ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूं और मेरे से ही | विभूति को...। जगत सब चेष्टा करता है, इस प्रकार तत्व से समझ कर, ___ हम सभी सुनते हैं और कहते भी हैं कि सब जगह ईश्वर छिपा श्रद्धा और भक्ति से युक्त हुए बुद्धिमान जन मुझ परमेश्वर | है, लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि जब भी उस ईश्वर की परम को ही निरंतर भजते हैं। | विभूति प्रकट होती है, तो हम उसे नहीं पहचान पाते हैं। जिन लोगों ने जीसस को सूली दी, वे भी कहते थे, कण-कण में ईश्वर छिपा है, लेकिन जीसस को वे न पहचान पाए। जिन लोगों ने बुद्ध को " र जो पुरुष इस मेरी परम ऐश्वर्यपूर्ण विभूति को और पत्थर मारे, वे लोग भी कहते थे कि कण-कण में परमात्मा का वास । योगशक्ति को तत्व से जानता है, वह पुरुष निश्चल है, लेकिन बुद्ध को वे न पहचान पाए। जिन्होंने महावीर के कानों ध्यान योग द्वारा मेरे में ही एकीभाव से स्थित होता है, में खीले ठोंक दिए, वे भी सोचते थे कि परमात्मा तो सब जगह इसमें कुछ भी संशय नहीं है। | छिपा है, लेकिन महावीर में उन्हें वह परमात्मा दिखाई न पड़ा। इस सूत्र में प्रवेश के लिए कुछ बातें प्राथमिक रूप से समझें। । | यह बहुत आश्चर्य की बात है कि जो लोग मानते हैं कि सब जीवन के परम रहस्य को हमने ईश्वर कहा है। जीवन के परम जगह छिपा है. वे भी जब उसकी परम अभिव्यक्ति होती है. तो न आधार को हमने ईश्वर कहा है। और रोज हम ईश्वर शब्द का केवल उसे नहीं पहचान पाते, बल्कि उसके विपरीत खड़े हो जाते प्रयोग भी करते हैं। लेकिन शायद हमें खयाल न हो कि ईश्वर शब्द हैं। निश्चित ही, इनका कहना सिर्फ कहना ही होगा; इन्होंने जाना ऐश्वर्य का ही रूप है। जहां भी ऐश्वर्य प्रकट होता है, जिस आयाम | | नहीं है, इन्होंने पहचाना नहीं है। अन्यथा जीसस को सूली लगनी में भी, वहां ईश्वर की झलक निकटतम हो जाती है। | असंभव थी, क्योंकि वह परमात्मा को ही सूली है। अन्यथा बुद्ध जब कोई फूल अपने परम सौंदर्य में खिलता है, तो उस परम को पत्थर मारे जाने असंभव थे, क्योंकि वे परमात्मा को ही मारे गए सौंदर्य का नाम ऐश्वर्य है। और जब कोई ध्वनि संगीत की | पत्थर हैं। आत्यंतिक ऊंचाई को छू लेती है, तो उस ध्वनि का नाम भी ऐश्वर्य | __ और मजे की बात तो यह है कि पत्थर में भी परमात्मा छिपा है, है। और जब कोई आंखें सौंदर्य की गहनतम स्थिति में डूब जाती | | लेकिन उसे कोई पत्थर मारने नहीं जाता है। लेकिन बुद्ध में जब हैं, तो उस सौंदर्य का नाम भी ऐश्वर्य है। परमात्मा प्रकट होता है, तो लोग पत्थर मारने पहुंच जाते हैं! जहां ऐश्वर्य का अर्थ है, किसी भी दिशा में और किसी भी आयाम | | परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता, वहां शायद हम पूजा भी कर लें; में जो परम उत्कर्ष है. जो अंतिम सीमा है. जिसके पार नहीं जाया | लेकिन जहां परमात्मा दिखाई पड़ता है, वहां हम शत्रु हो जाते हैं। जा सकता है। चाहे वह सौंदर्य हो, चाहे वह सत्य हो, चाहे वह | जरूर कुछ गहरा कारण होगा। और गहरा कारण समझने जैसा है। शिवम् हो, कोई भी हो आयाम, लेकिन जहां जीवन अपनी अत्यंत | | जहां परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता, वहां हम कितना ही कहें कि आत्यंतिक स्थिति को छू लेता है, अपने परम शिखर को पहुंच जाता | | परमात्मा है, हम उस परमात्मा से बड़े बने रहते हैं और हमारे है, गौरीशंकर को छू लेता है, वहां ईश्वर निकटतम प्रकट होता है। | अहंकार को कोई बाधा नहीं पहुंचती। लेकिन जब परमात्मा अपने ईश्वर तो सब जगह छिपा है, उस पत्थर में भी जो रास्ते के परम ऐश्वर्य में प्रकट होता है कहीं भी, तो हमारे अहंकार को चोट 34
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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