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________________ ॐ मांग और प्रार्थना इस क्षण में ही जीसस क्राइस्ट हो गए। इस एक वाक्य के फासले चलना होगा। महात्मा आपके धीरज और सांत्वना के लिए बहुत बार में दूसरे आदमी हो गए। एक क्षण पहले जब जीसस ने कहा, यह आपकी मर्जी के अनुकूल भी चलता है। वह दया से भरा है। तू मुझे क्या दिखा रहा है। यह मनुष्य की आवाज है, जिसमें मनुष्य मैं पढ़ रहा था, एक यहूदी विचारक है, अब्राहिम हैसिल। उसने की वासनाएं ईश्वर के अनुकूल-प्रतिकूल खड़ी हैं। जिसमें मनुष्य एक बहुत पुरानी यहूदी किताब से उल्लेख किया है। बड़ा मीठा कह रहा है कि आखिरी मेरी इच्छा पूरी होनी चाहिए। तू भी मेरी वचन है। हिब्रू में है। उसका अंग्रेजी अनुवाद उसने किया है। वह इच्छा पूरी कर, तो ही मैं प्रसन्न रहूंगा। मेरी प्रसन्नता में शर्त है, जो बड़ा अजीब मालूम पड़ता है। वाक्य यह है, गॉड इज़ नाट योर मैं चाहता हूं, वह हो। और आदमी को पता नहीं कि वह जो चाहता | | अंकल; ही इज़ नाट नाइस, ही इज़ नाट गुड; गॉड इज़ एन है, वह अगर पूरा हो जाए, तो वह कभी प्रसन्न नहीं होता। मगर अर्थक्वेक। ईश्वर आपके चाचा नहीं हैं; न भले हैं, न दयावान हैं; सोचता है। ईश्वर एक भूकंप है। एक क्षण में जीसस ने कहा कि दाइ विल बी डन-तेरी मर्जी ईश्वर तो भूकंप है। इसलिए जो मरने को तैयार हैं, वही उसमें पूरी हो। मैं छोड़ता हूं। भूल हो गई। क्षमा कर दे। आदमी विलीन | प्रवेश कर पाते हैं। लेकिन अगर हमारी मांग सीमा की है, तो हो गया। ईश्वर, भगवत्पुरुष प्रकट हो गया। इसी क्षण जीसस, महात्मा प्रकट होते हैं। महात्मा ईश्वर का वह रूप है. जो हमारे मरियम का बेटा, ईश्वर का बेटा क्राइस्ट हो गया। | अनुकूल है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। महात्मा परमात्मा का वह फर्क हो गया। ये दो व्यक्तित्व हैं अलग-अलग। जीसस मर | | रूप है, जो हमारे अनुकूल है। गया, सूली के पहले। सूली जीसस को नहीं लगी। वह तो जीसस इसलिए कृष्ण को हमने पूर्ण अवतार कहा, क्योंकि बहुत जगह इसी वक्त बंद हो गया, जब उसने कहा कि तेरी मर्जी। सूली क्राइस्ट वह हमारे अनुकूल नहीं हैं। राम को हमने आंशिक अवतार कहा, को लगी। इसलिए फिर सूली सूली नहीं थी। फिर सूली भी आनंद क्योंकि वे बिलकुल हमारे अनुकूल हैं। राम में भूल-चूक खोजनी था। फिर कोई फर्क न रहा। फिर सूली भी उससे मिलन का द्वार है। मुश्किल है। कृष्ण में भूल-चूक काफी हैं। भूल-चूक इसलिए नहीं फिर वह चाहता है सूली, तो यही सेज है उसकी। फिर इसमें कोई कि उनमें भूल-चूक हैं। भूल-चूक इसलिए हैं कि हमारे साथ फर्क नहीं है। | तालमेल नहीं खाता। ___ कृष्ण ने कहा कि मैं पूरा किए देता हूं। तू जैसा चाहता है, वैसा राम और सीता का संबंध समझ में आता है। कृष्ण और उनकी मैं वापस हुआ जाता हूं। | गोपियों का संबंध सज्जन से सज्जन आदमी को जरा चिंता में डाल ___ वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे | | देता है कि यह जरा ठीक नहीं है। जरा ऐसा लगता है कि यह बात ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखाया। और फिर महात्मा कृष्ण ने | न ही उठाओ। कृष्ण में कुछ है, जो हमें डराता भी है। सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत हुए अर्जुन को धीरज दिया। इसलिए हम उनको पूर्ण अवतार कहे हैं, क्योंकि हम उनसे पूरे जैसा मैं अभी कह रहा था कि जीसस और क्राइस्ट का फर्क, राजी नहीं हो पाते। वे पूर्ण हैं। हम इतने अधूरे हैं कि हम उनके ऐसा संजय और व्यास ने बड़ा फर्क कर दिया। आधे हिस्से से ही राजी हो सकते हैं। राम को हमने अधूरा अवतार कहा, वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति दयावान होकर अपने | | कहा है, क्योंकि हम उनसे पूरे राजी हो जाते हैं। हम पूरे राजी हो चतुर्भुज रूप को ग्रहण किया और फिर महात्मा कृष्ण ने...। | जाते हैं, वे हमारे इतने अनुकूल हैं कि पूरे नहीं हो सकते, बात फिर भगवान कृष्ण नहीं कहा संजय ने। क्योंकि जैसे ही वे सीमा | जाहिर है। हमसे इतना उनका मेल है कि वे अधूरे ही होंगे। वे में आ गए, वे जैसे ही रूप में बंध गए, जैसे ही उनकी चारों भुजाएं आंशिक अवतार होंगे। प्रकट हो गईं, और जैसे ही अर्जुन के मनोनुकूल वे खड़े हो गए, | इसलिए व्यास कहते हैं, महात्मा कृष्ण ने सौम्यमूर्ति होकर इस भगवान शब्द छोड़ दिया। तत्क्षण कहा, महात्मा कृष्ण ने सौम्यमूर्ति | भयभीत अर्जुन को धीरज दिया। होकर इस भयभीत हुए अर्जुन को धीरज दिया। हे जनार्दन, आपके इस अतिशांत मनुष्य रूप को देखकर अब __महात्मा और परमात्मा में इतना ही फर्क है। परमात्मा आपकी मर्जी | मैं शांत-चित्त हुआ अपने स्वभाव को प्राप्त हो गया हूं। के अनुकूल नहीं चल सकता। आपको उसकी मर्जी के अनुकूल । अर्जुन ने कहा कि यह देखकर आपका सीमा में वापस लौट 423
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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