________________
गीता दर्शन भाग-
58
है कि रिश्वत की तलाश में था परमात्मा! जब तक आप हाथ-पैर कर रहा है। न जोड़ो, फूल-पत्ती न चढ़ाओ, नारियल न पटको, सिर न पटको | यहां एक बात समझ लेने जैसी जरूरी है कि विराट का और उनके पैरों में, तब तक वे राजी न होंगे। आपकी स्तुति की खोज | व्यक्ति का संबंध मां और बेटे का संबंध है। कहता हूं, मां और बेटे थी, खुशामद, कोई रिश्वत! तो यह तो ब्लैकमेलिंग है। आदमी को का; बाप और बेटे का नहीं-सोचकर। पीछे आपसे बात करूंगा। नौकरी दिलवाना है, तो पहले सिर पटकवाओ।
विराट और व्यक्ति के बीच जो संबंध है वह मां और बेटे का नहीं, न परमात्मा आपकी रिश्वत की तलाश में है, न आपकी संबंध है। क्योंकि हम विराट से उत्पन्न होते हैं। उसकी ही लहरें, स्तति की. न आपकी प्रार्थना की। लेकिन जो आप कर रहे हैं, उससे | उसकी ही तरंगें हम हैं। वही हममें खिला। वही हममें फूल-पत्ता आप बदल रहे हैं। आप दूसरे आदमी होकर प्रवेश कर रहे हैं। | बना। वही हमारा व्यक्तित्व है।
यह जो आपका आकर्षण है पाजिटिव बिंदु का, विधायक बिंदु । तो हमारे और विराट के बीच जो संबंध है, वह वही होगा जो का, इसका परिणाम होगा। नौकरी मिल सकती है। और नौकरी | एक मां और बेटे के बीच है। क्योंकि मां के गर्भ में बेटा बड़ा होता मिल जाएगी, तो आपका एक भाव दृढ़ हो जाएगा कि प्रार्थना से | है उसके अंग की भांति, उसके शरीर की भांति। कुछ भेद नहीं मिली। अब आप और मजबूत हो जाएंगे। अब दुबारा किसी दूसरी | होता। मां मरेगी, तो उसका बेटा मर जाएगा। और बेटा भीतर मर । जगह प्रार्थना करके जाएंगे, तो आपके पैरों की ताकत अलग होगी। | जाए, तो मां की मौत घट सकती है। दोनों एक हैं। एक से ही जुड़े आप हवा में उड़ेंगे। यह आत्मविश्वास काम करता है। | हैं। बेटा अपनी सांस भी नहीं लेता; मां से ही जीता है। मां का ही प्रार्थना आत्मविश्वास देती है। आत्मविश्वास आपकी शक्तियों।
प्राण उसका प्राण है। मां के साथ एक साथ एक है। जैसे लहर को विधायक बना देता है। अविश्वास अपने पर, नकारात्मक बना | सागर के साथ एक है। देता है।
फिर यह बेटा पैदा होता है। तो जैसे मां का ही एक हिस्सा बाहर तो यह मैंने नहीं कहा कि प्रार्थना करेंगे, तो कोई मांग पूरी नहीं | गया, जैसे मां का ही एक अंग अनंत की यात्रा पर निकला। यह होगी। पूरी हो जाएगी, यही खतरा है। पूरी न होती, तो शायद आप | कहीं भी रहे, कितना ही दूर रहे, मां से बहुत सूक्ष्म तंतुओं से जुड़ा कभी न कभी प्रार्थना में मांग बंद कर देते। वह पूरी हो जाती है, तो रहता है। मांग आदमी जारी रखता है।
अगर सच में ही मां और बेटे की घटना घटी हो...। सच में धन्यभागी हैं वे, जिनकी प्रार्थनाएं कभी पूरी नहीं होतीं। क्योंकि | | इसलिए कहता हूं कि सभी के भीतर नहीं भी घटती। कुछ माताएं तब उनको समझ में आ जाएगा कि प्रार्थना में मांग व्यर्थ है। तो केवल जननी होती हैं, माताएं नहीं। कोई बहुत भाव से जन्म नहीं शायद किसी दिन वे उस सार्थक प्रार्थना को कर सकें, जिसमें मांग देती। एक जबरदस्ती थी, एक बोझ था, एक काम था, निपटा नहीं होती, सिर्फ भाव होता है।
दिया। इन माताओं का बस चलेगा, तो आज नहीं कल, जैसा आज ठीक से समझ लें, प्रार्थना मांग नहीं, दान है। अगर आप | वे बच्चे के पैदा होने के बाद नर्स को पालने के लिए रख लेती हैं, परमात्मा को अपने को देने गए हैं, तो प्रार्थना है; अगर उससे कुछ | आज नहीं कल वे किसी नर्स को गर्भ के लिए भी रख लेंगी। और लेने गए हैं, तो प्रार्थना नहीं है।
पश्चिम में उपाय हो गए हैं अब कि आपका बेटा किसी दूसरे के अब हम सूत्र लें।
| गर्भ में बड़ा हो सकता है। तो जो सुविधा-संपन्न हैं, वे अपने गर्भ इस प्रकार के मेरे इस विकराल रूप को देखकर तेरे को | में बड़ा नहीं करेंगी, वे किसी और के गर्भ में बड़ा कर लेंगी। व्याकुलता न होवे और मूढ़भाव भी न होवे और भयरहित, ___मां का मतलब तो यह है कि इस बेटे में मैं जन्मी, इस बेटे में प्रीतियुक्त मन वाला तू उस ही मेरे इस शंख, चक्र, गदा, पद्म सहित | | मेरा जीवन आगे फैला। जैसे वृक्ष की एक शाखा दूर आकाश में चतुर्भुज रूप को फिर देख।
| निकल जाए, बस ठीक मेरी एक शाखा आगे गई। कृष्ण ने कहा, मैं लौट आता हूं वापस साकार में, सगुण में, | जीवन इतना इकट्ठा मालूम पड़े जिस मां को भी, उसके और ताकि तुझे भय न होवे, तेरे मन को राहत मिले, सांत्वना मिले। | उसके बेटे के बीच हजारों मील के बीच भी संबंध होता है। इस पर इसलिए मैं अपने उसी रूप में वापस लौट आता हूं, जिसकी तू मांग | बड़ा काम हुआ है। और अगर बेटा बीमार पड़ जाए, तो मां बेचैन
1420|