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________________ गीता दर्शन भाग-58 महावीर ने ईश्वर को नहीं माना। बुद्ध ने ईश्वर को नहीं माना। थी। नदी से जो लड़ेगा, वह डूबेगा। प्राचीन योग-सत्रों ने कहा है कि मानो ईश्वर को तो ठीक है: न | जिसको हम तैरने वाला कहते हैं. वह क्या सीख लेता है. मानो, तो भी चलेगा। योग साधो, घटना घट जाएगी। ईश्वर को आपको पता है! तैरना कोई कला थोड़े ही है। वह यही सीख लेता मानने, न मानने की कोई जरूरत नहीं है। है कि नदी में मुर्दा कैसे हुआ जाए, बस। तैरना कोई कला है ? तैरने लेकिन प्रेम के मार्ग पर तो ईश्वर को मानकर ही चलना होगा। | में करते क्या हैं आप? हाथ-पैर थोड़े तड़फड़ा लेते हैं। वह भी जो नहीं तो समर्पण कैसे करिएगा? किसको समर्पण करिएगा? ईश्वर सिक्खड़ है, वह तड़फड़ाता है। जो जानता है, वह हाथ-पैर हो या न हो, अगर आप समर्पण कर सकते हैं, तो आप पा लेंगे। | छोड़कर भी नदी पर तैर लेता है। वह मुर्दा होना सीख गया है। अब परम अनुभूति। वह नदी से लड़ता नहीं है। वह नदी के खिलाफ कोई कोशिश नहीं इसलिए प्रेम का मार्ग मानकर चलता है कि ईश्वर है परम केंद्र | करता। वह नदी को कहता है कि तू भी ठीक, मैं तेरे साथ राजी हूं! जीवन का, अस्तित्व का। उसमें हम अपने को छोड़ देते हैं। हम | वह तैरने लगता है। अपनी तरफ से अपने को नहीं ढोते। प्रेम के पथिक का कहना है | नदी में मुर्दे की भांति हो जाएं, तो आप अर्जुन हो जाएंगे। फिर कि सब तरह के प्रयास ऐसे ही हैं, जैसे कोई आदमी अपने जूते के कोई आपको डुबा न सकेगा। अर्जुन की योग्यता थी कि वह अपने फीते पकड़कर खुद को उठाने की कोशिश करे। यह नहीं हो | को छोड़ सका। वही भक्त की योग्यता है। सकता। छोड़ दो। कृष्ण के सामने अर्जुन की एक ही योग्यता है कि वह छोड़ सका पूरा का पूरा। अगर आप भी छोड़ सकते हैं, तो जो अर्जुन को घटा, एक मित्र ने पूछा है कि शायद मैं ठीक से समझ नहीं वह आपको भी घट जाएगा। नहीं छोड़ सकते हैं, तो बेहतर है फिर पाया। आप कहते हैं, प्रार्थना में मांगें मत; कोई अर्जुन के रास्ते पर न चलें। फिर महावीर का रास्ता है, पतंजलि का | | वासना, आकांक्षा न करें। क्या आपका यह मतलब है रास्ता है, उस पर चलें। फिर चेष्टा करें, श्रम करें। कि प्रार्थना में कुछ मांगा जाए, तो वह पूरा नहीं होगा? हम ऐसे बेईमान हैं कि हम दोनों के बीच समझौता खोज लेते हैं। चेष्टा भी नहीं छोड़ते, और चाहते हैं, मुफ्त में मिल भी जाए। कहते हैं, हम अपने को छोड़ेंगे भी नहीं, और वैसी ही घटना घट नहीं ; मेरा यह मतलब नहीं है। वह तो पूरा हो जाएगा, जाए, जैसी अर्जुन को घटी। पर अर्जुन को घटी इसलिए कि वह UI प्रार्थना बेकार हो जाएगी। आपने सस्ते में प्रार्थना बेच छोड़ सका। दी। जिससे परमात्मा मिल सकता था, उससे आपने आपको पता है, आप अगर जिंदा आदमी हों और तैरना नहीं | एक बेटा पा लिया। जिससे परमात्मा मिल सकता था, उससे आपने जानते, तो नदी में डूबकर मर जाएंगे। अगर आपको नदी में फेंक कोई नौकरी पा ली। आपने बहुत सस्ते में प्रार्थना बेच दी! दें और आप तैरना न जानते हों, तो आप डूबकर मर जाएंगे। लेकिन यह मेरा मतलब नहीं है कि प्रार्थना में आप मांगेंगे, तो पूरा नहीं आपने एक बात कभी देखी, कि जब आप मर जाएंगे, तब आपकी | होगा। पूरा हो जाएगा, यही खतरा है। क्योंकि तब आप प्रार्थना के लाश ऊपर तैरने लगेगी! उसको नदी न डुबा सकेगी! | साथ गलत संबंध जोड़ लेंगे और व्यर्थ की चीजें मांगते चले बड़े मजे की बात है! जिंदा आदमी डूब मरा; मुर्दे को नदी नहीं जाएंगे। वह पूरा हो जाएगा। पूरा इसलिए नहीं हो जाएगा कि डुबा पा रही है! मुर्दे की क्या खूबी है ? मुर्दे की पात्रता क्या है ? और परमात्मा आपकी प्रार्थना पूरी करने आ रहा है। इसलिए भी नहीं। आपकी क्या कमी थी? जिंदा थे, तब फंस मरे। और अब मरकर क्योंकि आपकी क्षुद्र प्रार्थनाओं का क्या मूल्य है! ' मजे से ऊपर तैर रहे हैं, और नदी अब कुछ भी नहीं कर सकती! प्रार्थना इसलिए पूरी हो जाती है कि प्रार्थना अगर आपने पूरे भाव मुर्दे की एक ही पात्रता है कि अब उसने नदी पर अपने को छोड़ | से की है, तो आप ही उसके पूरे करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। दिया। उसकी और कोई पात्रता नहीं है। अब वह लड़ नहीं सकता, | + अगर आपने प्रार्थना पूरे भाव से की है, तो आपका मन सशक्त हो यही उसकी योग्यता है। आप लड़ रहे थे, वही आपकी अयोग्यता | | जाता है। अगर आपने प्रार्थना पूरे भाव से की है, तो आपके मन
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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