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ॐ मांग और प्रार्थना
आपको एक दफे भटकना पड़ेगा। एक दफे बोझ इकट्ठा करना | एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि स्वीडन के एक वैज्ञानिक पड़ेगा। अनुभव से गुजरना पड़ेगा, संसार की पीड़ा झेलनी पड़ेगी। डाक्टर जैक्सन ने आत्मा को तौलने के संबंध में कुछ और इस पीड़ा के झेलने के बाद अगर आप इस सबको छोड़ने को खोज की है और कहा है, आत्मा का वजन इक्कीस राजी हो जाएं, तो ही आपकी जिंदगी में असली बचपन का जन्म | ग्राम है। अगर आत्मा तौली जा सकती है, तो फिर होगा।
उसे पकड़ा भी जा सकता है। और अगर आत्मा को इसलिए हमने इस मुल्क में ब्राह्मणों को द्विज कहा है। सभी | पकड़ सकते हैं, तो फिर उसे उपयोग में भी ला सकते ब्राह्मण द्विज नहीं होते। सभी ब्राह्मण ब्राह्मण भी नहीं होते। लेकिन हैं। क्या आत्मा की तौल हो सकती है? हमारे कहने में बड़ा अर्थ है। द्विज का अर्थ है, ट्वाइस बॉर्न, जिसका दुबारा जन्म हुआ। उसको ही द्विज कहा जाता है, जिसने इस बचपन को पा लिया, जिसका दुबारा जन्म हो गया। जो फिर टा क्टर जैक्सन की खोज मूल्यवान है। इसलिए नहीं कि से ऐसे पैदा हो गया, जैसे गर्भ से ताजा आ रहा हो–कुंआरा, OI उन्होंने आत्मा तौल ली है, जिसे उन्होंने तौला है, उसे अछूता, जगत में जिसने रहकर भी कुछ पकड़ा नहीं।
वे आत्मा समझ रहे हैं। लेकिन उनकी तौल मूल्यवान कबीर ने कहा है, ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया। कहा कि बहुत | | है। आदमी सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि जब मृत्यु जतन से ओढ़ी तेरी चादर, और फिर जैसी थी, वैसी रख दी; जरा | | घटित होती है, तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या नहीं जाती भी दाग नहीं लगने दिया। यह बचपन का मतलब है। जिंदगी में | है? और बहत प्रयोग किए गए हैं। जीए, लेकिन इस जिंदगी की काल कोठरी में कोई कालिख न लगी। | इजिप्त में तीन हजार साल पहले भी आदमी को इजिप्त के एक यो लगी भी, तो उसे पोंछने की क्षमता जुटा ली। और जब वापस फैरोह ने कांच की एक पेटी में बंद करके रखा मरते वक्त। क्योंकि निकले इस कोठरी के बाहर, तो वैसे शुभ्र थे, जैसे इस कोठरी में अगर आत्मा जैसी कोई चीज बाहर जाती होगी, तो पेटी टूट जाएगी, कभी गए ही न हों।
| कांच फूट जाएगा, कोई चीज बाहर निकलेगी। लेकिन कोई चीज जीवन के अनुभव से गुजरना तो जरूरी है, अन्यथा जीवन का बाहर नहीं निकली। कोई उपयोग ही नहीं रह जाता। इतना ही उपयोग है। ध्यान रहे, यहां स्वभावतः, दो ही अर्थ होते हैं। या तो यह अर्थ होता है कि जो भी दुख-सुख घटित होता है, उसका इतना ही उपयोग है कि | आत्मा को बाहर निकलने के लिए कांच की कोई बाधा नहीं है। जैसे आप इस बोझ को समझ-समझकर एक दिन इसके पार उठ सकें। | कि सूरज की किरण निकल जाती है कांच के बाहर, और कांच नहीं और जिस दिन आप पार उठ जाते हैं, उसी दिन दुख-सुख बंद हो टूटता। या यह अर्थ होता है। या तो यह अर्थ होता है कि कोई चीज जाते हैं और आनंद की वर्षा शुरू हो जाती है।
बाहर नहीं निकली। पूछा है कि फिर क्या करना जरूरी है?
फैरोह ने तो यही समझा कि कोई चीज बाहर नहीं निकली। कुछ भी करना जरूरी नहीं है। इतना अगर कर लिया कि जिंदगी | क्योंकि कोई चीज बाहर निकलती, तो कांच टूटता। समझा कि कोई के कचरे को हटा दिया मन से और खाली कर लिया मन और दर्पण | आत्मा नहीं है। की तरह शांत हो गए, तो सब हो गया। परमात्मा तत्क्षण दिखाई | | फिर और भी बहुत प्रयोग हुए हैं। रूस में भी बहुत प्रयोग हुए पड़ जाएगा। वह भीतर मौजूद ही है। हम इतने भरे हैं, उस भरे के | | कि आदमी मरता है, तो उसके शरीर में कोई भी अंतर पड़ता हो, कारण वह दिखाई नहीं पड़ता। वह निकट ही मौजूद है, लेकिन | | तो हम सोचें कि कोई चीज बाहर गई। लेकिन अब तक कोई अंतर हमारी आंखों में इतने कंकड़-पत्थर पड़े हैं कि वह दिखाई नहीं | | का अनुभव नहीं हो सका था। पड़ता। बचपन की आंख मिल जाए ताजी. कंआरी। वह अभी और | जैक्सन की खोज मूल्यवान है कि उसने इतना तो कम से कम यहीं उपलब्ध हो जाता है।
| सिद्ध किया कि कुछ अंतर पड़ता है, इक्कीस ग्राम का सही। अंतर पड़ता है, इतनी बात तय हुई कि आदमी जब मरता है, तो अंतर पड़ता है। मृत्यु और जीवन के बीच थोड़ा फासला है, इक्कीस ग्राम
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