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8 गीता दर्शन भाग-
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पैसा खींचकर लाता है, उसे उसका कोई हिसाब नहीं है। मंदिर बनाता चलेगा। अगर उनको चार दिन अकेले बंद कर दो, तो वे दीवालों है शोषण से; सोचता है, पुण्य कर रहा हूं! और जिस पुण्य को करने | से बातचीत शुरू कर देंगे। जाना गया है ऐसा। के लिए भी पाप करना पड़ता हो, वह कितना पुण्य होता होगा! | | कारागृह में कैदी बंद होते हैं, तो थोड़े दिन के बाद दीवालों से
और मंदिर बनाता है भगवान के नाम से, लेकिन तख्ती अपनी बातचीत शुरू कर देते हैं। मकड़ी हो ऊपर, तो उससे बातचीत करने लगाता है। वह भगवान तो गौण है, वह जो मंदिर पर पत्थर लगता लगते हैं; छिपकली हो, तो उससे बातचीत करने लगते हैं। कोई न है अपने नाम का, वही असली बात है। मंदिर उसी के लिए बनाया | हो, तो अपने को ही दो हिस्सों में बांट लेते हैं। एक तरफ से प्रश्न जाता है। भगवान की प्रतिमा भी उसी पत्थर के लिए भीतर रखी उठाते हैं, दूसरी तरफ से जवाब देते हैं। जाती है। अहंकार जिस मंदिर में प्रतिष्ठित हो रहा हो, वह कितना ___ हम सभी करते रहते हैं। कोई न मिले, जरूरी भी नहीं। हमेशा पुण्य है?
श्रोता मिलना आसान नहीं। और जैसे दिन खराब आते जा रहे हैं, इसलिए अज्ञानी कुछ भी करे, कितने ही मंदिर बनाए और | श्रोता बिलकुल नाराज है; सुनने को कोई राजी नहीं है। पति कुछ कितनी ही तीर्थयात्राएं करे-मक्का जाए, और जेरूसलम जाए, | कहना चाहता है, पत्नी सुनने को राजी नहीं है। मां कुछ कहना
और काशी जाए, और जो भी करना चाहे करे–अज्ञानी कुछ भी चाहती है, बेटा सुनने को राजी नहीं है। बाप कुछ कहना चाहता है, करे, अज्ञान के कारण वह जो भी करेगा, वह पाप ही होगा। पुण्य | | कोई सुनने को राजी नहीं है! श्रोता मुश्किल होता जा रहा है। और के कितने ही मुलम्मे चढ़ाए और पुण्य के कितने ही वस्त्र ढांके, बोलना है, कहना है! एक बीमारी है। भीतर जब भी खोदकर जाएंगे, तो पाप ही मिलेगा।
बड रसेल ने इक्कीसवीं सदी की कहानी लिखी है एक। उसमें इससे उलटी बात और भी कठिन है समझनी, कि ज्ञानी कुछ भी | | उसने लिखा है कि जगह-जगह हर बड़े नगर में तख्तियां लगी हैं, करे, पुण्य ही होगा। इसलिए तो कृष्ण उससे कह रहे हैं कि तू लड़ने | | जो बड़ी अजीब हैं। उन तख्तियों पर लिखा हुआ है कि आपको कुछ की फिक्र छोड़, ज्ञान की फिक्र कर। और अगर तुझे ज्ञान मिल जाए, | भी कहना हो, तो हम सुनने को राजी हैं। सुनने की इतनी फीस! तो मैं तुझसे कहता हूं, तू काट डाल इन सारे लोगों को, जो तेरे | | और अभी ऐसा हो रहा है। पश्चिम में जिसको साइकोएनालिसिस सामने खड़े हैं, और पाप नहीं होगा। और अगर ज्ञान न हो, तो तू | | कहते हैं, मनोविश्लेषण कहते हैं, वह कुछ भी नहीं है; आपकी भाग जा जंगल, चींटी को भी मत मार, फूंक-फूंककर पैर रख; और | | बकवास सुनने की फीस! सालों चलता है एनालिसिस। पैसा जिनके मैं तुझसे कहता हूं कि पाप ही होगा।
पास है, वे एक बड़े मनोवैज्ञानिक के पास सप्ताह में तीन दफा, चार यह परम ज्ञान उस सातत्य के साथ अपना एकत्व अनुभव होने | दफा जाकर घंटेभर, जो उनको बकना है, बकते हैं। वह बड़ा से होता है।
मनोवैज्ञानिक शांति से सुनता है। यह कठिन सूत्र है। फिर इस सूत्र को समझाने के लिए ही पूरा | | सालभर की इस बकवास से मरीजों को लाभ होता है। लाभ अध्याय है। इस सूत्र को खयाल में ले लें। इसमें परम वचन, ऐसा | इलाज से नहीं होता है, इस बकवास के निकल जाने से होता है। वचन कृष्ण कहने जाने की घोषणा कर रहे हैं, जिसे बुद्धि से नहीं | | यह बीमारी है; कैथार्सिस हो जाती है सालभर। और एक बुद्धिमान समझा जा सकता, तर्क से जिस तक पहुंचने का उपाय नहीं है। हां, | | आदमी, प्रतिष्ठित आदमी, योग्य आदमी, सुशिक्षित आदमी बड़ी प्रेम और श्रद्धा का संबंध हो, तो संवाद हो सकता है। अर्जन के लगन से आपकी बात सुनता है, क्योंकि आप उसको सुनने के पैसे हित की दृष्टि से कह रहे हैं। कहने का कोई मजा नहीं है। | देते हैं। वह आपकी लगन से बात सुनता है। आप कुछ भी कहिए,
एक तो आदमी होते हैं, जिन्हें कहने का मजा होता है। जिन्हें | | वह उसको ऐसे सुनता है, जैसे कि परम सत्य का उदघाटन किया इससे प्रयोजन नहीं होता कि आपका कोई हित होगा, इसलिए कह | जा रहा हो! रहे हैं। जिन्हें कहना है, जैसे कि खुजली खुजलानी है। उन्हें कुछ | | तो पश्चिम में बड़े घरों के लोग एक-दूसरे से पूछते हैं, कितनी कहना है, वे कह रहे हैं। दिनभर हम जानते हैं चारों तरफ लोगों को, | बार साइकोएनालिसिस करवाई? कितने दिन तक? पैसे वाले का जो सुबह अखबार पढ़ लिए और फिर निकले किसी से कहने! लक्षण आज अमेरिका में यही है; खास कर स्त्रियों का। पैसे वाली उनको कहना है। कहना उनके लिए बीमारी है। बिना कहे उनसे नहीं स्त्रियों का लक्षण यही है कि उन्होंने कितने बड़े मनोवैज्ञानिक के