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________________ 8 मनुष्य बीज है परमात्मा का पिन की कोशिश शुरू करें। यह विचार भी आपके जीवन में क्रांति बन बिलकुल मरणासन्न हैं। क्योंकि आप आ गए, नहीं तो आप बच जाएगी। यह विचार का बीज भी भीतर पड़ जाए, तो धीरे-धीरे, नहीं सकते थे। उनके पास आ गए, अब बच जाएंगे, नहीं तो बच धीरे-धीरे चारों तरफ आपका सब कुछ बदलने लगेगा। नहीं सकते थे। छोटी-सी फुसी आपको हो, तो वे कैंसर जैसी हमारे विचार भी क्षुद्र हैं। हम विराट विचार तक को स्वीकार घबड़ाहट पैदा कर देते हैं। क्योंकि तभी आपका शोषण किया जा करने में घबड़ाते हैं। हम क्षुद्र विचार में जीते हैं, क्योंकि हमारा | सकता है। तभी आपका शोषण किया जा सकता है। व्यक्तित्व उसके आस-पास आसानी से रह पाता है। | और फंसी भी केंसर हो सकती है, अगर भरोसा आ जाए। विराट को जगह दें थोड़ी। अभी खयाल ही सही, कोई बात नहीं। भरोसा बड़ी चीज है। बहुत बड़ी चीज है। क्योंकि भरोसा काम क्योंकि जो आज विचार है, वह कल व्यक्तित्व बन जाएगा। और | करना शुरू कर देता है। आपके भीतर एक खयाल बैठ गया कि मैं जो आज छिपा हुआ बीज है, वह कल वृक्ष हो जाएगा। जो आज | बीमार हूं, तो आप बीमार हो जाएंगे। सोचा है, वह कल हो जाएगा। मेरे एक शिक्षक थे, मेरी बात मानने से राजी नहीं थे। मैं उनसे बुद्ध ने कहा है, तुम जो भी हो गए हो, वह तुम्हारे पिछले विचारों | | कहता था, जो आदमी मान ले, धीरे-धीरे हो जाता है। वे कहते थे, का परिणाम है। और तुम जो विचार आज कर रहे हो, वह तुम कल | | यह बात ठीक नहीं है। क्योंकि कोई कितना ही मान ले कि मैं हो जाओगे। इसलिए विचार में थोड़ी बुद्धिमानी बरतना। | नेपोलियन है, नेपोलियन तो नहीं हो जाऊंगा, पागल हो जाऊंगा! • लेकिन हम विचार में कोई बुद्धिमानी बरतते नहीं। हम सोचते | | जिस यूनिवर्सिटी में मैं पढ़ता था, वे वहीं शिक्षक थे, मेरे शिक्षक हैं, विचार से क्या लेना-देना है? लेकिन एक आदमी के मन में | थे। जहां हमारा डिपार्टमेंट था, वहां से कोई एक मील के फासले अगर यह विचार बैठ जाए कि मैं परमात्मा हूं, तो एक बात पक्की | | पर वे नीचे यूनिवर्सिटी के कैम्पस में ही रहते थे। है कि उसके शैतान को सविधा मिलनी मुश्किल हो जाएगी। गी। और क दिन योजना बनाई। कोई पंद्रह दिन बाद. जब उनसे एक आदमी को यह विचार बैठ जाए कि मैं शैतान हूं, तो उसके यह बात हुई थी। पंद्रह दिन बाद मैं उनके घर गया और उनकी पत्नी शैतान को बहुत सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी। | को मैंने कहा कि मेरी प्रार्थना है, स्वीकार कर लें। एक प्रयोग में मनसविद कहते हैं कि आप वही हो जाते हैं, जिसका स्वप्न लगा हूं, किसी को कहना मत। सुबह उठते ही अपने पति को कहना आपमें पैदा हो जाता है। अभी तो मनसविद कहते हैं कि स्कूल में कि आज तबीयत कुछ खराब है क्या? पीला चेहरा मालूम पड़ता किसी बच्चे को गधा, मूर्ख नहीं कहना चाहिए। क्योंकि अगर यह है! रात सोए नहीं क्या? आंख लाल-लाल दिखाई पड़ती है! धारणा मजबूत हो जाए, तो वह यही हो जाएगा, जो उसके शिक्षक । उनकी पत्नी ने कहा, लेकिन वे बिलकुल ठीक हैं! मैंने कहा, कह रहे हैं। और दुनिया में इतने जो गधे दिखाई पड़ते हैं, इसमें नब्बे | | इसकी फिक्र न करें। छोटा प्रयोग कर रहा हूं। आप सिर्फ इतना करें। परसेंट शिक्षकों का हाथ है। ये बेचारे गधे थे नहीं, इनको गधे कहने | और वे जो भी कहें, यह कागज की एक पट्टी दे जाता हूं, इस पर वाले लोग मिल गए। और उन्होंने धारणा इतनी मजबूत बिठा दी कि | | ठीक उन्हीं के शब्द लिख देना, वे जो भी वक्तव्य दें इसके उत्तर में। अब ये भी मानते हैं, अब ये भी स्वीकार करते हैं। फिर उनके नौकर को कहा, बाहर बगीचे के माली को कहा, कि मनसविद कहते हैं. किसी को ऐसा कहना गलत है। किसी को जब वे बाहर आएं, तो कृपा करके इतना ही पूछना कि आपके पैर बीमार कहना गलत है। अभी तो मनसविद कहते हैं कि चिकित्सक | | कुछ डांवाडोल मालूम पड़ते हैं! तबीयत ठीक नहीं है क्या? वे जो के पास जब कोई बीमार आए, तो उसे ऐसे व्यवहार करना चाहिए, कहें, इस कागज पर लिख लेना। फिर रास्ते में एक पोस्ट आफिस जैसे वह बीमार नहीं है। दवा भला दे, लेकिन व्यवहार ऐसे करे, | | पड़ता था, उसके पोस्ट मास्टर को जाकर कहा कि जब वे यहां से जैसे वह बीमार नहीं है! क्योंकि उसका व्यवहार दवा से ज्यादा | | निकलें, कृपा करके तुम बाहर रहना। इतना उनसे पूछ लेना कि क्या मूल्यवान है। क्योंकि व्यवहार उसके मन में चला जाएगा; दवा | | बात है, बहुत दिन बाद दिखाई पड़े। तबीयत खराब हो गई थी क्या? केवल शरीर में जाएगी। ऐसा रास्ते में कोई दस जगह मैं लोगों को चिट्ठियां देकर आया। लेकिन जो क्वैक डाक्टर हैं, धोखेधड़ी वाले डाक्टर हैं, वे | | डिपार्टमेंट का जो चपरासी था, उससे मैंने कहा कि तू एकदम आपको देखकर ही ऐसी घबड़ाहट पैदा करते हैं कि जैसे आप| | उठकर उनको संभाल लेना कि आप बिलकुल गिरे पड़ते हैं। वह 4011
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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