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________________ 3 गीता दर्शन भाग-568 पर छोटा तूफान आता है। जमीन पर जो युद्ध होते हैं, उनका | अभी भी हैं। नहीं तो अभी तक तिरोहित हो गए होते। अगर पहचान पीरियाडिकल जो वर्तुल है, वह ग्यारह साल है। गए होते, तो वह रास्ता आपको दिख गया होता, तो आप अभी तक अमेरिका में ऐसा अध्ययन हो, तो समझ में आता है। रूस में | वाष्पीभूत होकर दूसरे लोक में प्रवेश कर जाते। हम हैं इसलिए, भी इस तरफ अध्ययन हुए हैं। और रूस के मनोवैज्ञानिक और | | तभी तक हम हैं, जब तक हम नहीं पहचान पाते, जब तक हमें नहीं वैज्ञानिक भी चकित हो गए हैं। और रूस में तो मानना बहुत | दिखाई पड़ पाता। मुश्किल है कि उन्नीस सौ सत्रह की जो क्रांति है, वह लेनिन, एक व्यक्ति में भी हमें झलक मिल जाए विराट की, तो फिर सब ट्राटस्की और कम्यूनिज्म के कारण नहीं हुई, बल्कि चांद या सूरज | | में मिलने लगेगी। वह तो शुरुआत है। कोई राम और कृष्ण अंत पर कोई उपद्रव हुआ, उसके कारण हुई। थोड़े ही हैं, शुरुआत हैं। उनमें दिखाई पड़ जाए, तो फिर कहीं भी पर रूस भी क्या करे! आज का सारा अध्ययन यह बता रहा है | | दिखाई पड़ने लगेगी। फिर हमारा अनुभव हो गया। कि सूरज पर जो भी घटित होता है, आदमी उससे तत्क्षण प्रभावित | | इसलिए हमने पत्थर की भी मूर्तियां बनाईं। जिन्होंने पत्थर की होता है। तत्क्षण! और आदमी के जगत में जो भी घटित होता है, | । मूर्तियां बनाईं, बड़े होशियार लोग थे। क्योंकि उन्हें एक दफा दिखाई वह सूरज से, तारों से जुड़ा है। | पड़ गया, तो फिर पत्थर में भी दिखाई पड़ने लगा। एक दफा दिखाई कहां आप समाप्त होते हैं? कहां आपकी सीमा है? | पड़ जाए, तो कहीं भी दिखाई पड़ेगा। फिर पत्थर में भी वही दिखाई आपकी भी सीमा नहीं है। राम की तो फिक्र छोड़ें, कृष्ण की तो | | पड़ेगा। फिर कोई कारण नहीं है। फिर कहीं कोई बाधा नहीं है। फिर फिक्र छोड़ें। आप भी असीम हैं। यहां प्रत्येक बिंदु विराट है। और | | कोई रुकावट रोक नहीं सकती। जो मुझे दिख गया एक दफा, वह यहां प्रत्येक बूंद सागर है। हमें बूंद दिखाई पड़ती है, क्योंकि देखने | | फिर मैं कहीं भी देख लूंगा। की हमारी क्षमता सीमित है। लेकिन देखने के लिए बड़ी बात यह नहीं है कि राम भगवान हैं तो जैसे-जैसे क्षमता बढ़ती है. वैसे-वैसे आकार छटने लगता| या नहीं। यह बड़ा सवाल नहीं है। यह असंगत है। बड़ा सवाल यह है और निराकार दिखाई पड़ने लगता है। जैसे-जैसे क्षमता विराट है कि मेरे पास भगवान को देखने की आंख है या नहीं! होने लगती है, बड़ी होने लगती है, विराट प्रकट होने लगता है। | बुद्ध के पिछले जन्म की घटना है कि बुद्ध पिछले जन्म में, जब जिस दिन हमारे पास देखने का कोई ढांचा नहीं रह जाता, दृष्टि पूरी वे अज्ञानी थे और बुद्ध नहीं हुए थे...। अज्ञान का एक ही मतलब मुक्त और शून्य हो जाती है, उस दिन हम विराट के सामने खड़े हो | | है हमारे मुल्क में कि जब तक उनको पता नहीं चला था कि मैं जाते हैं। | भगवान हूं। जब तक वे जानते थे कि मैं आदमी हूं। तब जब वे राम को आप देखते, तो आप तो आदमी ही कहते। क्योंकि आप अज्ञानी थे, उनके गांव में एक बुद्धपुरुष का आगमन हुआ। तो बुद्ध आदमी के सिवाय राम में भी कुछ नहीं देख सकते हैं। आप कृष्ण उनका दर्शन करने गए। उनके चरणों में गिरकर नमस्कार किया। को देखते, तो उनको भी आदमी कहते। क्योंकि आपके देखने का और जब वे नमस्कार करके खड़े हुए, तो बहुत चकित हो गए। ढंग! लेकिन कुछ और तरह के देखने वाले लोग भी हैं। उन्होंने कृष्ण समझ में नहीं पड़ा कि क्या हो गया! वे जो बुद्धपुरुष थे, उन्होंने में देख लिया भगवान को, उन्होंने राम में देख लिया भगवान को। बुद्ध के चरणों में सिर रखकर नमस्कार किया। __लोग मुझसे पूछते हैं कि राम हुए, कृष्ण हुए, बुद्ध, महावीर हुए, | तो बुद्ध बहुत घबड़ा गए और उन्होंने कहा, आप यह क्या करते जीसस हुए, लाओत्से हुए, ये सब बहुत पहले हुए, अब क्यों नहीं | हैं! इससे मुझे पाप लगेगा। मैं आपके पैर छुऊं, यह उचित है। होते हैं? क्योंकि आप पा चुके हैं, मैं अभी भटक रहा हूं। आप मंजिल हैं, __ अब भी होते हैं। लेकिन पहले उन्हें पहचानने वाले ज्यादा लोग | मैं अभी रास्ता हूं। मैं आपके चरणों में झकं, यह ठीक है। अभी मेरी थे, अब उन्हें पहचानने वाले कम लोग हैं। बस, उतना ही फर्क है। खोज बाकी है, आपकी खोज पूरी हो गई। आप क्यों मेरे चरणों में और आप इस फिक्र में न पड़ें। अगर आप बुद्ध के समय भी होते, झुकते हो? तो आप बुद्ध को पहचान नहीं सकते थे। और आप थे। यह कहना । तो उन बुद्धपुरुष ने बुद्ध को कहा, तुझे वही दिखाई पड़ता है ठीक नहीं कि होते; आप थे। और नहीं पहचान पाए, इसीलिए आप अभी, जो तू देख सकता है। मैं तेरे भीतर उसको भी देखता हूं, जो | 382|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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