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________________ 3 बेशर्त स्वीकार - नहीं ले जाते थे। पूजा कोई और कर लेता। क्योंकि मंदिर में जाना गीता के संबंध में उन्हें नहीं पूछना है, क्योंकि गीता वे खतरनाक था। समझ चुके होंगे! यहां किस लिए आते हैं, पता नहीं। और जिस दिन रामकृष्ण को अनुभव हुआ, उस दिन वे यहां आने का कोई प्रयोजन नहीं है। गीता समझ ही दक्षिणेश्वर की छत पर चढ़ गए, छप्पर पर, और जोर-जोर से | | गए हों, तो यहां आने का क्या प्रयोजन है! चढ़ जाएं किसी मंदिर चिल्लाने लगे कि जिसकी मुझे खोज थी, वह मिल गया। अब | पर और चिल्ला दें कि आ जाओ, जिनको पाना हो। मुझे मिल जिनको चाहिए, वे जल्दी आओ! कहां हैं वे लोग, जिन्हें मैं बांट गया! कीर्तन के संबंध में उन्हें अड़चन है। दूं? आओ जल्दी दूर-दूर से। जहां भी, जिसको भी आकांक्षा हो, किया है कभी कीर्तन? अगर किया है, तो अड़चन नहीं हो जल्दी आ जाए। क्योंकि जो मुझे चाहिए था, वह मिल गया। सकती। और नहीं किया है, तो सवाल नहीं उठाना चाहिए। जो नहीं क्या मिल गया? एक संगति, एक संगीत, एक लयबद्धता। उस | किया है, उसके बाबत नहीं पूछना चाहिए। अड़चन यही होगी कि परमात्मा और अपने बीच एक स्वर का तालमेल मिल गया। अब, | | यह क्या है कि लोग नाचने लगते हैं, होश खो देते हैं! अड़चन यही जैसे ही वह स्वर का तालमेल बैठ जाता है. वैसे ही रामकष्ण नहीं है कि स्त्री-पुरुष साथ-साथ नाच रहे हैं! रह जाते, भगवान हो जाते हैं, परमात्मा हो जाते हैं। __ अगर इतनी भी बेहोशी न हो कि स्त्री-पुरुष भी न भूलें, तो क्या कीर्तन का मतलब ही केवल इतना है कि एक सुर-ताल बैठ खाक कुछ भूलेगा! यह भी होश बना रहा कि मैं पुरुष हूं, वह पास जाए। और वह जो आदमी होने का होश है, वह खो जाए, और वह | | में खड़ी स्त्री है, आप कीर्तन कर रहे हैं? इतना भी होश न भूले, तो जो परमात्मा होने का होश है, वह आ जाए। यह रामकृष्ण की जो | क्या खाक कीर्तन होगा? बेहोशी है, यह सिर्फ एक तरफ से बेहोशी है, आदमी की तरफ से। ___ कीर्तन तो पागलों का रास्ता है, वे जो भूलने को तैयार हैं बाहर दूसरी, भीतर की तरफ से तो परम होश है। को। फिर क्या होता है. इसे करने का थोडे ही सवाल है। कीर्तन • तो रामकृष्ण कहते थे कि तुम सोचते हो, मैं बेहोश हो गया! तुम कुछ किया थोड़े ही जाता है। कीर्तन तो अपने को धारा में छोड़ना उलटा सोचते हो। जब मैं होश में आता हूं तुम्हारे सामने, तब मैं | है, फिर जो हो जाए। पर देखने वाले को अड़चन होगी, देखने वाले बेहोश हो जाता हूं। मैं जिसको भीतर देख रहा था, वह फिर मुझे को सदा ही अड़चन होगी। क्योंकि देखने वाला बाहर खड़ा है। दिखाई नहीं पड़ता। तुम जिसे बेहोशी कहते हो, वह होश है मेरे ___ करके देखें। थोड़ी देर के लिए होश खोकर देखें। थोड़ी देर के लिए। और तुम जिसे होश कहते हो, वह बेहोशी है। जब मेरी आंख | | लिए एक दूसरे जगत में प्रवेश करें; और एक दूसरा होश उपलब्ध संसार की तरफ होश से भर जाती है, तो मैं वहां भूल जाता हूं। और | करें। थोड़ी देर को बह जाएं बाहर से और भीतर हो जाएं। और होने जब यहां मेरा पर्दा गिर जाता है, तो मैं वहां हो जाता हूं। दें, जो हो रहा है; छोड़ दें परमात्मा में। पूरे चौबीस घंटे छोड़ना कीर्तन का इतना ही अर्थ है अध्यात्म में कि उससे हम एक नाम शायद मुश्किल होगा। क्योंकि आपको खयाल है, दुकान आप के सहारे, एक शब्द के सहारे, एक गीत के सहारे, एक धुन के चलाते हैं। आपको खयाल है, आप नहीं होंगे, तो संसार का क्या सहारे, एक नृत्य की गति के सहारे, वह जो मनुष्य होने का होश होगा! आपके बिना कुछ चलेगा नहीं! शायद पूरे समय छोड़ना है, वह खो रहे हैं; और वह जो परमात्मा होने का होश है, उसकी मुश्किल हो, घड़ी, आधा घड़ी को...। तरफ जा रहे हैं। कीर्तन सिर्फ एक व्यवस्था है, जिससे थोड़ी देर को हम छोड़ देते हैं। हम अपने को नहीं चलाते, हम सिर्फ छोड़ देते हैं; एक लेट गो। अपने को ढीला छोड़ देते हैं धुन के ऊपर। और धीरे-धीरे भीतर एक मित्र ने पूछा है कि गीता के संबंध में उन्हें कुछ जहां ले जाना चाहता है, ले जाने लगता है। फिर पैर थिरकने लगते भी नहीं पूछना। लेकिन यहां जो कीर्तन होता है, उस हैं। हाथ-पैर मुद्राएं बनाने लगते हैं। आंखें बंद हो जाती हैं। किसी संबंध में उन्हें बड़ी अड़चन है! दूसरे लोक में प्रवेश हो जाता है। फिर फिक्र छोड़ें कि कौन बाहर खड़ा है। उसकी थोड़े ही फिक्र करनी है। उसकी फिक्र करिएगा, तो भीतर नहीं जा सकते। 373
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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