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ॐ साधना के चार चरण
चल गया कि मैं नहीं हूं। यह बड़ी ऊंचाई आ गई। इस ऊंचाई से वे आ चुकी है। इनकी मृत्यु एक अर्थ में घटित हो चुकी है। मैं इन्हें चीजें दिखाई पड़ने लगती हैं, जो बहुत दूर हैं; कभी होंगी। फिर एक मार ही चुका हूं अर्जुन। अब तू तो सिर्फ मुर्दो को मारने के काम में
और ऊंचाई है, जहां कि मैं नहीं हूं, यह भी नहीं बचा। यह आखिरी लगाया जा रहा है। ऊंचाई है। इससे ऊपर जाने का कोई उपाय नहीं है। यहां से सब मुल्ला नसरुद्दीन की मुझे एक घटना याद आती है। मुल्ला दिखाई पड़ने लगता है। ऐसी अवस्था के व्यक्ति को हमने सर्वज्ञ | | नसरुद्दीन के गांव में एक योद्धा आया। और वह योद्धा काफी हाउस कहा है। इसके लिए फिर कुछ भी भविष्य नहीं रह जाता है। इसके | | में बैठकर अपनी बहादुरी की बड़ी चर्चा करने लगा। और उसने लिए सभी कुछ वर्तमान हो जाता है।
| कहा, आज युद्ध बड़ा घमासान था। और मैंने न मालूम कितने ___ यह जो कृष्ण में अर्जुन को दिखाई पड़ा योद्धाओं का समा जाना | लोगों की गर्दने साफ कर दीं। गिनती भी नहीं है। कितने लोगों को
और वह घबड़ाकर पूछने लगा। कृष्ण उससे कह रहे हैं कि तू | | मैंने काटकर गिरा दिया, जैसे कोई घास काट रहा हो। भयभीत न हो अर्जुन। मैं इन युद्ध के लिए इकट्ठे हुए वीरों का अंत नसरुद्दीन भी बैठा था, उससे नहीं रहा गया। उसने कहा, यह करने के लिए आया हूं। मैं इस समय महाकाल हूं। उसकी ही | | कुछ भी नहीं। एक दफा मेरे जीवन में भी ऐसा मौका आया था। झलक तूने देख ली, जो थोड़ी देर बाद होने वाला है। उसका | युद्ध में मैं भी गया था। और गिनती तो नहीं की, लेकिन फिर भी प्रि-व्यू, उसकी पूर्व-झलक तुझे दिखाई पड़ गई है।
अंदाज से कहता हं. कम से कम पचास आदमियों की टांगें मैंने ऐसे इससे तू खड़ा हो, यश को प्राप्त कर, शत्रुओं को जीत। ये काट डाली, जैसे घास काटा हो। शूरवीर पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। तू यह चिंता भी मत | उस योद्धा ने कहा, टांगें! हमने कभी सुना नहीं कि टांगें भी युद्ध कर कि तू इन्हें मारेगा। तू यह ध्यान भी मत रख कि तू इनके मारने में काटी जाती हैं! सिर काटने चाहिए थे। नसरुद्दीन ने कहा, सिर का कारण है। तू कारण नहीं है, तू निमित्त है।
| तो कोई पहले ही काट चुका था। वह मौका मुझे नहीं मिला। मैं तो निमित्त और कारण में थोड़ा फर्क हमें समझ लेना चाहिए। कारण गया तो देखा कि सिर तो कटे पड़े थे, मैंने कहा, क्यों चूकना। मैंने का तो अर्थ होता है, जिसके बिना घटना न घट सकेगी। निमित्त का टांगें काट डालीं। कोई गिनती नहीं है। अर्थ होता है, जिसके बिना भी घटना घट सकेगी।
यह कृष्ण अर्जुन से यही कह रहे हैं कि तू बहुत परेशान मत हो, आप पानी गर्म करते हैं। गर्म करना, आग कारण है। अगर आग | जिनको तू मारने की सोच रहा है, उनको मैं पहले ही काट चुका हूं। न हो, तो फिर पानी गर्म नहीं हो सकेगा। कोई उपाय नहीं है। लेकिन | | टांगें ही काटने का तेरे ऊपर जिम्मा है, सिर कट चुके हैं। और ये जिस बर्तन में रखकर आप गर्म कर रहे हैं, वह कारण नहीं है, वह | टांगें काटने के कारण, अकारण ही तू यश को प्राप्त हो जाएगा, धन निमित्त है। इस बर्तन के न होने पर कोई दूसरा बर्तन होगा, कोई को, राज्य को। वह तेरी मुफ्त उपलब्धि होगी, सिर्फ निमित्त होने के तीसरा बर्तन होगा। बर्तन न होगा, तो कोई और उपाय भी हो सकता कारण। जिन्हें तू सोचता है कि इन्हें मारने से हिंसा लगेगी, वे मर है। जिस चल्हे पर आप गर्म कर रहे हैं. यह चल्हा न होगा. तो कछचके हैं. वे मत हैं। त सिर्फ मर्दो को आखिरी धक्का दे रहा है। जैसे और होगा। कोई सिगड़ी होगी। कोई स्टोव होगा। कोई बिजली का | | ऊंट पर कोई आखिरी तिनका रखे और ऊंट बैठ जाए। बस, तू यंत्र होगा। कोई और उपाय हो सकता है। गर्मी तो कारण है। लेकिन | आखिरी तिनका रख रहा है। और ऊंट बैठने के ही करीब है। तू ये सब निमित्त हैं।
| नहीं सहारा देगा, तो कोई और यह तिनका रख देगा। यह पैर काटने आप गर्म कर रहे हैं, यह भी निमित्त है। कोई और गर्म कर | | का काम दूसरा भी कर सकता है, क्योंकि गर्दन काटने का असली सकता है-कोई पुरुष, कोई स्त्री, कोई बच्चा, कोई बूढ़ा, कोई | | काम हो चुका है। नियति उन्हें काट चुकी है। जवान। आप भी नहीं होंगे, तो कोई गर्म नहीं होगा पानी, ऐसा नहीं | | इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि दुर्योधन जहां खड़ा है, है। एक बात, आग चाहिए, वह कारण है। बाकी सब निमित्त है।। | उसके साथी जहां खड़े हैं, उसके मित्रों की फौज जहां खड़ी है, वे निमित्त बदले जा सकते हैं, कारण नहीं बदला जा सकता। | जो कुछ भी कर चुके हैं, घड़ा भर चुका है, फूटने के करीब है। तू
कृष्ण यह कह रहे हैं, कारण तो मैं हूं, तू निमित्त है। अगर तू नहीं | | मुफ्त ही यश का भागी हो जाएगा। तू यह मौका मत छोड़। और मारेगा, कोई और मारेगा। इनकी मृत्यु होने वाली है। इनकी मृत्यु ध्यान रखना कि तू निमित्त ही था, इसलिए किसी अहंकार को बनाने
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