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________________ 3 साधना के चार चरण इतना ही काफी होगा कि दुनिया को तुम्हारे होने का पता ही न देख रहा है अग्नि की लपटें मेरे मुंह से निकलती हुई, योद्धाओं को चले। इससे बड़ी और कोई बात तुम नहीं कर सकते हो। तुम ऐसे | | दौड़ता हुआ मृत्यु में, मेरे मुंह में, उसका कारण है। मैं लोकों का रह जाओ कि पता ही न चले कि तुम थे। तुम्हारे जाने पर कहीं कोई नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूं। इस क्षण मैं एक महानाश शोर-शराबा न हो, कहीं कोई पत्ता भी न हिले। तो तुम, परमात्मा | के लिए उपस्थित हुआ हूं। इस क्षण एक विराट विनाश होने को है। जैसा चाहता है, उस ढंग से जीए। और उस विराट विनाश के लिए मेरा मुंह मृत्यु बन गया है। मैं इस लेकिन कुछ करके दिखाओ, उसका मतलब है, अहंकार को | समय महाकाल हूं। यह मेरा एक पहलू है विध्वंस का। यह मेरा कुछ प्रकट करके दिखाओ। यह जो हमारे सोचने का ढंग है, एक रूप है। कर्मवादी, वह नियति के बिलकुल प्रतिकूल है। लेकिन इसका यह एक रूप है मेरे सृजन का, एक रूप है मेरे विध्वंस का। अभी मतलब नहीं है कि जो नियति को स्वीकार कर लेगा, वह कुछ | मैं विध्वंस के लिए उपस्थित हूं। यह तेरे सामने जो युद्ध के लिए करेगा ही नहीं। इसका यह मतलब नहीं है कि कुछ करेगा ही नहीं। तत्पर शूरवीर खड़े हैं, मैं इन्हें लेने आया हूं। ये मेरी तरफ दौड़ रहे हमारे तर्क बड़े अजीब हैं। एक मित्र कहता है कि वह कुछ करेगा हैं, ऐसा ही नहीं। मैं इन्हें लेने आया हूं। ये पतंगों की तरह दौड़ते ही नहीं; और एक मित्र कहता है, वह हत्या करेगा, चोरी करेगा। | दीए की तरफ जो योद्धा हैं, ये अपने आप दौड़ रहे हैं, ऐसा नहीं। या तो करेगा तो बुरा करेगा, नियति को करने वाला; और या फिर मैं इन्हें निमंत्रण दिया हूं। ये थोड़ी ही देर में मेरे मुंह में समा जाएंगे। कुछ करेगा ही नहीं। ये दो हमारी धारणाएं हैं। है। तूने भविष्य में झांककर देख लिया है। मेरे मुंह में तू अभी जो देख नहीं, नियति को स्वीकार करने वाला कर्ता नहीं रहेगा। परमात्मा | रहा है, वह थोड़ी देर बाद हो जाने वाली घटना है। जो करवा रहा है, करता रहेगा। अपनी तरफ से कुछ करना नहीं | - इस संबंध में थोडी-सी समय की बात समझ लें। जोड़ेगा। बहेगा, तैरेगा नहीं। उसकी धारा में बहता चला जाएगा। भविष्य वही है, जो हमें दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता, • और बुरा! बुरा तो हम करते ही तब हैं, जब अहंकार हममें गहन | इसलिए हम सोचते हैं, नहीं है। क्योंकि जो हमें दिखाई पड़ता है, होता है। सब बुराई की जड़ में मैं है। जिसके पास मैं नहीं है, उससे सोचते हैं, है। जो नहीं दिखाई पड़ता है, सोचते हैं, नहीं है। भविष्य कुछ बुरा नहीं होने वाला है। और अगर बुरा हमें दिखाई भी पड़े, हमें दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए सोचते हैं, नहीं है। तो परमात्मा की कोई मर्जी होगी, उस बुरे से कुछ भला होता होगा। लेकिन जो नहीं है, वह हो कैसे जाएगा? जो नहीं है, वह आ अब हम सूत्र को लें। कैसे जाएगा? शून्य से तो कुछ आता नहीं। जो किसी गहरे अर्थ में इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर कृष्ण बोले, हे अर्जुन! मैं लोकों | आ ही न गया हो, वह आएगा भी कैसे? का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों | एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक डेलाबार प्रयोगशाला में, आक्सफोर्ड को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं। इसलिए जो प्रतिपक्षियों की में, फूलों के चित्र ले रहा था। और एक दिन बहुत चकित हुआ। सेना में स्थित हुए योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे। | उसने एक बहुत ही संवेदनशील नई खोजी गई फिल्म पर एक इससे तू खड़ा हो और यश को प्राप्त कर तथा शत्रुओं को जीत, | गुलाब की कली का चित्र लिया। लेकिन वह चकित हो गया। कली धनधान्य से संपन्न हो। ये सब शूरवीर पहले से ही मेरे द्वारा मारे | तो थी बाहर और चित्र आया फूल का। तो घबड़ा गया कि यह हुआ हुए हैं। कैसे! पर उसने प्रतीक्षा की। और हैरानी तो तब उसकी बढ़ गई कि हे सव्यसाचिन्! तू तो केवल निमित्त मात्र हो जा। तथा इन | | जब वह कली खिलकर फूल बनी, तो वह ठीक वही फूल थी, द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह, जयद्रथ और कर्ण और भी बहत-से जिसका चित्र आ गया था। मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार और भय मत कर, | | डेलाबार प्रयोगशाला एक अनूठी प्रयोगशाला है दुनिया में। और निस्संदेह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा, इसलिए युद्ध कर। | वहां वे प्रयोग करते हैं इस बात के कि अगर फूल थोड़ी देर बाद यह नियति की धारणा की पूरी व्याख्या इस सूत्र में है। | खिलने वाला है, तो किसी गहरे सूक्ष्म तल पर अभी भी पंखुड़ियां हे अर्जुन! इस क्षण तू जो मेरा भयंकर रूप देख रहा है, खिल गई होंगी। तब तक, जब यह घटना घटी थी, आज से कोई विकराल, इस क्षण तू जो देख रहा मेरे मुंह से मृत्यु, इस क्षण तू जो | दस साल पहले, तब तक वैज्ञानिकों के पास कोई व्याख्या नहीं थी 355]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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