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00 गीता दर्शन भाग-50
सोहै।
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ही नहीं बचता, तो बेचैन होने का कोई कारण नहीं है। आप होते हैं वर्तमान में, मन भविष्य में चला जाता है।
करने को कुछ है, तो फिर बेचैनी है। करने के पहले भी बेचैनी यह नियति की धारणा भविष्य का दरवाजा बंद करने की है। मैं रहेगी, और करने के बाद भी बेचैनी रहेगी। क्योंकि करने के बाद कुछ कर ही नहीं सकता हूं, तो भविष्य में यात्रा करने का कोई उपाय भी लगेगा कि अगर जरा ऐसा कर लिया होता, तो परिणाम दूसरा नहीं है। दस रुपए मिलें, कि दस लाख, कि कुछ भी न मिले, मैं हो सकता था। अगर मैंने ऐसा कर लिया होता, तो ऐसा हो सकता | भिखारी रह जाऊं; जो भी होगा, वह होगा। उसमें मेरा कोई हाथ था। तो आप पीछे भी परेशान रहेंगे कि अगर ऐसा न करके जरा-सा | | नहीं है। ऐसा आदमी कभी असफल नहीं होता है। फर्क किया होता, तो आज जिंदगी दसरी होती। और भविष्य के इसे थोड़ा समझ लें। लिए भी परेशान रहेंगे कि मैं क्या करूं?
ऐसे आदमी को आप असफल नहीं कर सकते, क्योंकि फिर एक आखिरी परिणाम, जब आप असफल हो जाते हैं...। | असफलता को भी वह स्वीकार कर लेगा कि यही होना था। आप और आदमी कुछ ऐसा है कि वह सफल कभी होता ही नहीं! इसे | | सफल नहीं हो सकते। आप सफलता को भी असफलता कर देंगे, थोड़ा समझ लें। .
क्योंकि जो हो गया, वह कुछ भी नहीं है, जो होना चाहिए, वह सदा . आदमी के मन का ढांचा ऐसा है कि वह सदा अंत में असफल | आगे है। ही होता है। उसका कारण यह है कि जितने आप सफल हो जाते नियति की धारणा वाला आदमी असफल नहीं किया जा सकता। हैं, वह तो व्यर्थ हो जाती है बात; और नए लक्ष्य निर्मित हो जाते | आप कुछ भी करें, वह सफल है। और जो सफल है, वह शांत है; हैं। एक आदमी को दस हजार रुपए कमाने हैं, वह कमा लेता है। और जो असफल है, वह अशांत है। और जो सफल है, वह प्रसन्न कोई दस हजार रुपए कमा लेना मुश्किल मामला नहीं है। कमा लेता | | है; और जो असफल है, वह उदास है। और जो सफल है...। और है। सफल हो गया।
एक घटना घटती है। जब आप असफल होते चले जाते हैं अपनी लेकिन उसे पता ही नहीं कि सफलता की खुशी वह कभी नहीं | | वासना की यात्रा में, तो सिवाय आपके और कोई जिम्मेवार नहीं मना पाता। क्योंकि जब तक दस हजार इकट्ठे कर पाता है, तब तक | होता असफलता के लिए। आप ही जिम्मेवार होते हैं। तो गहन पीड़ा उसकी आकांक्षा लाख की हो जाती है। जब दस हजार पा लेता है, | आदमी पर टूट पड़ती है। तो खुशी से नाचता नहीं है, केवल दुख से पीड़ित होता है कि अभी __ अकेला आदमी इस बड़ी दुनिया में लड़ता है, इस बड़ी दुनिया यात्रा और बाकी है; उसे लाख कमाने हैं! ऐसा भी नहीं है कि लाख | से। टूट जाता है। उसके कंधे पर बोझ पहाड़ों का इकट्ठा हो जाता न कमा ले। वह भी हो जाएगा। लेकिन जिस मन ने दस हजार से | है। और आखिर में सिवाय स्वयं की निंदा करने के और कोई उपाय लाख पर यात्रा पहुंचा दी थी, वही मन लाख से दस लाख पर यात्रा | नहीं है। पहुंचा देगा।
लेकिन नियति की धारणा वाला व्यक्ति अपने कंधे पर कोई भार हर आदमी असफल मरता है। कोई आदमी सफल नहीं मर लेता ही नहीं। वह कहता है, परमात्मा की मर्जी। जीतूं तो वह, हारूं सकता। क्योंकि जो भी आप पा लेते हैं, आपकी वासना उससे आगे | तो वह, सदा जिम्मेवार वही है। वह जिम्मेवार नहीं है। और जो चली जाती है। मरते वक्त भी आपकी वासना अधूरी ही रहेगी; वह | | रिस्पांसिबिलिटी, जो दायित्व का बोध और भार है व्यक्ति के ऊपर, पूरी नहीं हो सकती।
वह उसके ऊपर नहीं है। एंडु कार्नेगी, अमेरिका का सबसे बड़ा धनपति मरा, तो अपने | | आप उस आदमी की तरह हैं, जो ट्रेन में चल रहा हो और अपना पीछे देस अरब रुपए छोड़ गया। लेकिन मरने के दो दिन पहले | सब सामान सिर पर रखे हो। और नियतिवादी वह आदमी है, जो का उसका वक्तव्य है कि मैं एक असफल आदमी हूं, क्योंकि मेरे सब सामान ट्रेन में रख दिया है और खुद भी सामान के ऊपर बैठा इरादे सौ अरब रुपए छोड़ने के थे, केवल दस छोड़ जा रहा हूं। हुआ है। वह कहता है, ट्रेन चला रही है, मैं क्यों बोझ ढोऊ! दस अरब रुपए।
| आपको पक्का नहीं कि ट्रेन चला रही है। आप सोच रहे हैं, आप आप कितना पा लेंगे, इससे कोई संबंध नहीं है। आपका मन ही चला रहे हैं सारा; और जरा ही भूल-चूक हुई, तो आप ही उससे ज्यादा की मांग करेगा। मन सदा आपसे आगे चला जाता है। जिम्मेवार हैं; कुछ भी गड़बड़ हुई, तो आप ही फंस जाएंगे!
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