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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः। | होता है। यदि भविष्य अनिश्चित है, तो अशांत होना होगा, बेचैन तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि होना होगा, असंतुष्ट होना होगा। उसे बदलने की कोशिश करनी समृद्धवेगाः ।। २९।। होगी। यदि बदलाहट हो सकी, तो भी तृप्ति नहीं मिलेगी, क्योंकि लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनवलभिः । भविष्य का कोई अंत नहीं है। एक बदलाहट पचास और बदलाहट तेजोभिरापूर्य जगत्समधे भासस्तवोग्राः . की आकांक्षा पैदा करेगी। अगर बदलाहट न हो सकी, तो बहुत गहन प्रतपन्ति विष्णो ।।३०।। पीड़ा, उदासी, विपदा घेर लेगी। मन संतप्त हो जाएगा, हारा हुआ, आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद । पराजित हो जाएगा। दोनों ही स्थितियों में, भविष्य अगर अनिश्चित विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव है और आदमी के हाथ में है, तो आदमी परेशान होता है। प्रवृत्तिम् ।।३१।। पश्चिम ने यह दृष्टिकोण लिया है। पश्चिम मानकर चलता है अथवा जैसे पतंग मोह के वश होकर नष्ट होने के लिए | कि अतीत तो निश्चित है, हो गया। वर्तमान हो रहा है। आधा प्रज्वलित अग्नि में अति वेग से युक्त हुए प्रवेश करते हैं, निश्चित है, आधा अनिश्चित है। भविष्य पूरा अनिश्चित है, अभी वैसे ही ये सब लोग भी अपने नाश के लिए आपके मुखों में बिलकुल नहीं हुआ है। अति वेग से युक्त हुए प्रवेश करते हैं। अगर भविष्य अनिश्चित है, तो मुझे आज वर्तमान के क्षण को और आप उन संपूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा प्रसन भविष्य के लिए अर्पित करना होगा। आज ही मुझे काम में लग करते हए सब ओर से चाट रहे हैं। हे विष्णो. आपका उग्र जाना होगा कि भविष्य को मैं अपनी आकांक्षा के अनुकूल बना लूं। प्रकाश संपूर्ण जगत को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके ___ इसके दो परिणाम होंगे। एक तो वर्तमान का क्षण मेरे हाथ से तपायमान करता है। चूक जाएगा। उसे मैं भविष्य के लिए समर्पित कर दूंगा। मैं आज हे भगवन, कृपा करके मेरे प्रति कहिए कि आप उग्र रूप | नहीं जी सकूँगा। मैं आशा रखूगा कि कल जब मेरे मनोनुकूल वाले कौन हैं! हे देवों में श्रेष्ठ, आपको नमस्कार होवे। | स्थिति बनेगी, तब मैं जीऊंगा। आज को मैं भविष्य के लिए कुर्बान आप प्रसन्न होइए। आदिस्वरूप, आपको मैं तत्व से जानना कर दूंगा, पहली बात। और कल की चिंता मुझे आज सताएगी, चाहता हूं, क्योंकि आपकी प्रवृत्ति को मैं नहीं जानता। खींचेगी, परेशान करेगी। पश्चिम ने इसका प्रयोग किया है और परिणाम में पश्चिम को गहन अशांति उपलब्ध हुई है। लेकिन भौतिक अर्थों में पश्चिम एक मित्र ने पूछा है कि महाभारत युद्ध शुरू होने के अपने जीवन को नियत करने में बहुत दूर तक सफल भी हुआ है। पहले ही अर्जुन देखता है कि परमात्मा के विराट यह बड़ी उलझन की बात है, इसे थोड़ा गौर से समझ लेना चाहिए। स्वरूप के अंदर सब योद्धा मृत्यु-मुख में प्रविष्ट हो रहे पश्चिम अपनी भौतिक स्थिति को मनुष्य के मन के अनुकूल हैं। तो क्या यह महायुद्ध उस क्षण एक अपरिहार्य बनाने में बहुत दूर तक सफल हो गया है। तो एक अर्थ में तो उनकी नियति थी, जिसे संपन्न करने के लिए सब मजबूर थे? जो धारणा है, सत्य सिद्ध हो गई है कि वर्तमान को अगर हम | भविष्य के लिए अर्पित करें, तो भविष्य को मन के अनुकूल कुछ दूरी तक निश्चित ही निर्मित किया जा सकता है। इस मामले में न वन को देखने के दो दृष्टिकोण हैं। एक दृष्टिकोण है | पश्चिम की सफलता साफ है। बीमारी कम हुई है। लोगों की उम्र UII कि भविष्य अनिश्चित है और परिवर्तनीय भी। मनुष्य बढ़ी है। भौतिक समृद्धि बढ़ी है। साधन बढ़े हैं। वैभव की सुविधा चाहे तो भविष्य वैसा ही हो सकता है, जैसा वह | बढ़ी है। उन्होंने अपने मन के अनुकूल जो कल भविष्य था और चाहता है। भविष्य पूर्व से निश्चित नहीं है, मनुष्य के हाथ में है कि | | आज वर्तमान हो गया है, उसे निर्मित करने में सफलता पाई है। भविष्य को निर्मित करे। लेकिन दूसरे अर्थों में वे हार गए हैं। यह सब हो गया है और यह जो दृष्टि है, इसका अपरिहार्य परिणाम मनुष्य की अशांति आदमी इतना अशांत हो गया है, इतना भीतर विक्षिप्त हो गया है 330/
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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