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ॐ गीता दर्शन भाग-500
किया। बहुत बैंड-बाजे बजाए। उनका मौन तोड़ने की कोशिश की। इसलिए वही ठीक आदमी है, जो खबर दे सके। उनको हिलाया-डुलाया। उन्हें काफी डांवाडोल किया, ताकि उन्हें अब हम सूत्र को लें। खयाल आ जाए कि पीछे एक बड़ा संसार भी है, जिससे उन्हें | और हे राजन्! आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने अपनी बात कह देनी है।
| से उत्पन्न हुआ जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के बुद्ध को देवताओं ने कहा कि आप चुप क्यों हो गए हैं? | प्रकाश के सदृश कदाचित ही होवे। अनेक-अनेक युगों के बाद कभी कोई व्यक्ति इस परम अनुभव को | पहला अनुभव उसने कहा ऐश्वर्य का। संजय ने कहा कि अर्जुन उपलब्ध होता है। लाखों लोग प्यासे हैं, आप उनसे कहें। बुद्ध ने ने देखा, परमात्मा का महिमाशाली ऐश्वर्य रूप। जो सुंदर है, जो कहा, जो समझ सकते हैं उस अनुभव को, वे मेरे बिना कहे समझ श्रेष्ठ है, जो बहुमूल्य है, वह सब। जगत का जैसे सारा सौंदर्य जाएंगे। और जो नहीं समझ सकते, उनके सामने मैं सिर पटकता | निचोड़ लिया हो, और जगत की जैसे सारी सुगंध निचोड़ ली हो, रहूं, तो भी वे समझने वाले नहीं हैं। तो मुझे क्यों परेशान करते हैं! और जगत का जैसे सारा प्रेम निचोड़ लिया हो, और तब उस सार
बुद्ध ने कहा, मुझे छोड़ें। मेरा बोलने का कोई भी मन नहीं है। में जो अनुभव हो, वह ऐश्वर्य है परमात्मा का। अर्जुन ने पहले। फिर जो मैंने जाना है, वह बोला भी नहीं जा सकता। और जो मैं | | परमात्मा का ऐश्वर्य रूप देखा। बोलूंगा, वह वही नहीं होगा, जो मुझे घटा है। शब्द में उसे बांधना दूसरी बात संजय कहता है कि परमात्मा का प्रकाश रूप देखा। मुश्किल है। और फिर जो नहीं समझेंगे, वे नहीं ही समझेंगे। और | यह उचित है कि ऐश्वर्य के बाद प्रकाश दिखाई पड़े। क्योंकि ऐश्वर्य जो समझ सकते हैं, वे मेरे बिना भी देर-अबेर पहुंच ही जाएंगे। | भी धीमा प्रकाश है। ऐश्वर्य भी धीमा प्रकाश है। जैसे सुबह होती इसलिए मैं क्यों परेशान होऊ?
| है। रात भी चली गई और अभी दिन भी हुआ नहीं है और बीच में कुशल लोग थे वे देवता, क्योंकि उन्होंने बुद्ध को किसी तरह वे जो भोर के क्षण होते हैं, जब धीमा प्रकाश होता है, जो आंख को राजी कर लिया। राजी उन्होंने इस तरह किया, उन्होंने बुद्ध को कहा। परेशान नहीं करता, जो आंख पर चोट नहीं करता, जिसमें कोई कि आप बिलकुल ठीक कहते हैं। जो समझ सकते हैं, वे आपके चमक नहीं होती, सिर्फ आभा होती है। या सांझ को जब सूरज ढल बिना भी समझ जाएंगे। जो बिलकल नासमझ हैं. वे. आप उनके गया, और रात अभी उतरी नहीं, और बीच का वह जो संधिकाल सामने सिर पटकते रहें जिंदगीभर, तो भी नहीं समझेंगे या कुछ है, तब धीमा-सा आलोक रह जाता है। ऐश्वर्य आलोक है। समझेंगे, जो आपने कहा ही नहीं है। मगर इन दोनों के बीच में भी | __ऐश्वर्य आंखों को तैयार कर देगा अर्जुन की कि वह प्रकाश को कुछ लोग हैं, जो अधूरे खड़े हैं। जो नासमझ भी नहीं हैं, जो | | देख सके। अन्यथा परमात्मा का प्रकाश, आंखें बंद हो जाएंगी। समझदार भी नहीं हैं। आपके बिना वे समझदार न हो सकेंगे। और | अन्यथा परमात्मा का प्रकाश, वह चकाचौंध में होश खो जाएगा। आपके बिना वे नासमझ रह जाएंगे। आप उन बीच में खड़े थोड़े से ऐसा बहुत बार हुआ है। ऐसा बहुत बार हुआ है कि कुछ साधना लोगों के लिए बोलें, जिनके लिए तिनका भी सहारा हो जाएगा। | पद्धतियां हैं, जिनसे व्यक्ति सीधा परमात्मा के प्रकाश स्वरूप को बुद्ध को कठिन पड़ा उत्तर देना; वे राजी हुए।
| देख लेता है। तो वह प्रकाश इतना ज्यादा है कि सहा नहीं जा संजय अधरा आदमी है। वह दोनों तरफ देख रहा है। उसे सकता। और सदा के लिए भीतर घप्प अंधेरा छा जाता है। धृतराष्ट्र की पीड़ा भी पता है, उसे अर्जुन का आनंद भी। वह यह यह शायद आपने नहीं सुना होगा। आपको भी खयाल नहीं है। भी देख रहा है कि अर्जुन को क्या घट रहा है, किस परम हर्षोन्माद | | अगर आप सूरज की तरफ सीधा देखें और फिर कहीं और देखें, तो में उसका रोआं-रोआं नाच रहा है, किस महाप्रकाश में अर्जुन | | सब तरफ घुप्प अंधेरा मालूम पड़ेगा। अगर रात आप रास्ते से गुजर डूबकर खड़ा हो गया है, यह भी। और धृतराष्ट्र का अंधापन और | रहे हैं, अंधेरा है, अमावस की रात है, लेकिन फिर भी आपको अंधेपन में घिरी हुई आत्मा की पीड़ा और नर्क। और अंधेपन में डूबा | कुछ-कुछ दिखाई पड़ रहा है। फिर पास से एक तेज प्रकाश वाली हुआ धृतराष्ट्र, जो टटोल रहा है, और कहीं कोई रास्ता नहीं कार गुजर जाती है। वह प्रकाश आंखों को चौंधिया जाता है। फिर मिलता, कहीं कुछ समझ में नहीं आता। इसकी पीड़ा भी उसके कार तो गुजर जाती है, रात और अंधेरी हो जाती है। अभी तक उस खयाल में है, अर्जुन का आनंद भी। वह बीच में खड़ा आदमी है। रास्ते पर चल रहे थे, अब अंधेरा और घना हो जाता है।
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